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संपादकीय

अरविन्द बाबू दिल्ली का सिंहासन कोई फूलों की सेज नहीं काँटों भारा ताज है ...

February 17, 2015 12:47 PM

मनीराम शर्मा
केजरीवाल जी आपने जनता को काफी कुछ मुफ्त में देने और भ्रष्टाचारमुक्त शासन देने का वादा किया है| लोकपाल कानून तो आपके दायरे में ही नहीं है और इस कानून से भी जनता का कितना भला हो सकता है मैं नहीं जानता किन्तु यह अवश्य जानता हूँ कि राजस्थान में लोकायुक्त कानून 40 से अधिक वर्षों से बना हुआ है और वहां कितना भ्रष्टाचार है आप जानते ही होंगे| कानून तो जनता को भ्रमित करने के लिए बुना जाने वाला वह मकड़जाल है जिसमें जनता को मछली की तरह फंसाया जा सके| दिल्ली सरकार तो एक स्थानीय निकाय से अधिक कुछ भी नहीं है जिसके पास बिजली, पानी, सफाई, परिवहन आदि मुद्दे ही हैं और वे भी केंद्र सरकार के रहमोकरम पर निर्भर है| उसके पास न न्यायालय है न पुलिस .. फिर भ्रष्टाचारियों को कौन पकड़ेगा.. कौन दंड देगा... फिर... आपके पास तो वही सरकारी मशीनरी –उपकरण हैं जो आज तक थे| पूर्व में जो मुख्य सचिव आपको मिले थे वे शीला दीक्षित सरकार में स्कूलों में कंप्यूटर घोटाले में मुख्य भूमिका निभाने वालों में से एक थे| क्या आप कोई अधिकारी विदेशों से आयात करेंगे? स्मरण रहे जंग खाए हुए और भोंथरे औजारों से युद्ध नहीं जीता जा सकता| जनता के लिए सबसे बड़ा सरदर्द दिल्ली पुलिस ही है जिसमें 100 तो बलात्कार के आरोपी कार्यरत हैं| पुलिस और प्रशासनिक पद तो सरकारों में लगभग नीलाम होते हैं जो ऊँची बोली लगाने वाले को मिलते हैं। आपके पास अपना स्वतंत्र कौनसा तंत्र है? आपके सदस्यों में भी एक तिहाई दागी हैं| जिस समुदाय विशेष का आपको समर्थन मिला है, आंकड़े बताते हैं कि वे भी आम भारतीय से 24% अधिक अपराधी हैं| आपकी पार्टी पर यह भी आरोप है कि उत्तराखंड के बाढ़ पीड़ित लोगों के लिए इकठा किया गया चन्दा भी आपने उनको नहीं दिया है| शीला दीक्षित के घोटालों की फाइलें आपके पास काफी लम्बे अरसे से हैं किन्तु आपने उन पर कोई कार्यवाही नहीं की –शायद अब राजनीतिक लाभ मिल सके| आपने पहले गडकरी पर आरोप लगाए औए बाद में उनसे माफ़ी मांगी|
जनता पर आपको कर लगाने के बहुत ही सीमित अधिकार हैं| पिछली बार जब हाई कोर्ट की फीस बढाई गयी थी उसे भी दिल्ली सरकार के दायरे से बाहर मानकर उसे निरस्त कर दिया था| अब नए वर्ष से जीएसटी लागू हो रहा है –केंद्र का सिकंजा कसेगा, राज्यों की मुश्किलें और बढ़ जायेंगी| इस वर्ष व्यापार और उद्योग लगभग ठप हैं, कर संग्रहण मात्र आधा ही हो पाया है| ऐसी स्थिति में राज्य कर और केंद्र से मिलने वाली राशि में कटौती ही होगी फिर आपके इन वादों का क्या होगा| जनता आपके इन लुभावने भाषणों को कितने दिनों तक सुनेगी? जनता को भाषण नहीं राशन चाहिए अब तक तो आपको भी पता लग गया होगा| जहां तक केंद्र से सहयोग मिलने का प्रश्न है सो शीला दीक्षित भी केंद्र को कोसती रहती थी जबकि केंद्र में उनकी ही पार्टी का शासन था| केंद्र में अब तो आपका कोई विशेष हस्तक्षेप भी नहीं है|
आम नागरिक इस देश में स्वभावतः बेईमान नहीं है और उनको बेईमान बनाने का श्रेय भी राजनेताओं को ही जाता है| एक भूखे द्वारा अपने पेट की भूख मिटाने और ऐश के लिए चोरी करने में अंतर होता है| मेरा अनुभव है कि वर्षा व फसल अच्छी होने पर खेत में रास्ते पर पड़े फलों को भी यहाँ कोई नहीं उठाता है| वैसे भी 20000 रुपये महीना या अधिक कमाने वाले इस देश में मात्र 3% लोग ही हैं और उनमें से भी 70% तो संगठित क्षेत्र के कर्मचारी हैं| देश की 70% जनसंख्या सब्सिडी से मिलने वाले अन्न से अपना पेट भरती है| इस क्षुद्र राजनीति के परिवेश में में आप क्या कुछ कर पाएंगे? न्यायाधीश जगमोहन लाला सिन्हा जब इंदिराजी के विरुद्ध निर्णय देने वाले थे तो उनकी जान को भी ख़तरा था और मजबूरन निर्णय उनको स्वयं ही टाइप करना पडा था| इंदिरा सरकार को नसबंदी ले डूबी और मोरारजी को नशाबंदी| एक शराब निर्माता ने 6 करोड़ रूपये खर्च करके मोरारजी सरकार गिरा दी थी और चरणसिंह प्रधान मंत्री बने थे किन्तु वे तो जांच आयोग और कमिटी की फाइलों में ही उलझकर रह गए, कभी संसद के दर्शन भी नहीं कर पाए और वे सारी जांचें भी धरी रह गयी थी|

 
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