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संपादकीय

जीएसटी बिल— फायदा किसको

August 10, 2016 03:48 PM

संतोष गुप्ता (एफपीएन)
देश में आज आम—खास सभी में जीएसटी गुड्स एण्ड सेवाकर बिल के चर्चे हैं, क्या व्यापारी, क्या अधिकारी, आंखें गड़ाए है सरकार की इस कवायद पर। कभी कांग्रेस सरकार बिल पास करना चाहती थी तो भाजपा अपना मिजाज दिखाती रही। भाजपा सरकार में आई तो बिल पास करना चाहा, अब कांग्रेस तुनकमिजाजी पर उतर आई। कभी किसी पार्टी को एतराज तो कभी राज्य अपनी कम होने वाली आय का रोना ले बैठते। सरकार को अपने फायदे दिखाई देते तो दूसरों को अपने नुक्सान। हार कर केन्द्र सरकार ने राज्यों के नुक्सान की भरपाई की हामी भर ली तो उन्होंने अपनी सहमति भी दे दी है।
यानि संसद में डेढ दशक से अधिक समय तक गोते खाने के बाद राज्यसभा में यह बिल सात घंटे की बहस के बाद पास हो गया। याद रहे कि लोकसभा ने यह पिछले वर्ष भी पारित कर दिया था किन्तु राज्यसभा में पारित न हो पाने के कारण अधर में लटका था, न डूब रहा था और न तैर रहा था बस गोते खा रहा था किन्तु केन्द्र सरकार के लिए चूंकि यह प्रेस्टिज इश्यू बन चका था अतः मश्क्कत जारी रही और भाजपा सरकार की मेहनत रंग लाई। मजेदार बात यह कि राज्यसभा में इसके हक में 203 वोट पड़े जबकि विरोध में एक भी नहीं। राज्यसभा में सात घंटे की बहस के दौरान 6 संशोधनों के बाद कांग्रेस सांसदों ने इसे अपना समर्थन दे दिया। राज्यसभा से पास होने के बाद इसे अब लोकसभा में भी दोबारा पारित करवाया गया। चूंकि लोकसभा में भाजपा पहले ही बहुमत में है तो यूं भी कोई अड़चन नहीं आने वाली थी। अब यह ड्रफ्ट राज्यों को भेजा जाएगा। नियमों के मुताबिक 29 में से 15 राज्यों की सहमति मिलना अनिवार्य है। तब राष्ट्रपति की मोहर लगने के बाद संविधान में किया जाने वाला 122वां संशोधन होगा।
जीएसटी काउंसिल में इसकी दर तय की जाएगी। अभी तक हालांकि 18 प्रतिशत का फैसला किया गया है। केन्द्र सरकार इसे एक अप्रैल 2017 से लागू करने का प्रयत्न कर रही है किन्तु माहिरों का मत है कि सारी प्रक्रिया से गुजरने के बाद यह अक्तूबर तक भी लागू हो जाए तो गनीमत है।
जीएसटी के बहुत से लाभ है तो कुछ नुक्सान भी हैं। लेकिन इसका सबसे बड़ा फायदा जो दिखाई दे रहा है वह है इंस्पैक्टरी राज पर नकेल। लालफीताशाही का प्रभाव कम होना। भारत को दुनियां भर में एक गरीब देश की संज्ञा दी जाती है विशेषतः इस की बढ़ती आबादी के कारण जबकि सच यह है कि भारत अपने संसाधनों की बहुलता की बदौलत विश्व का सबसे अमीर देश है। गरीब तो यह नेताओं व अफसरशाही के भ्रष्टाचार के कारण बना हुआ है। यदि जीएसटी ने अफसरशाही के भ्रष्टाचार पर भी नकेल कस दी तो देश की तस्वीर दो चार सालों में बदलनी आरम्भ हो जाएगी। आज अधिकतर व्यापारी इंस्पैक्टरी राज के चलते अपने सीधे-सादे व्यापार को भी कई पर्दों में छुपा कर करते हैं, नतीजतन जहां वे खुद चैन की नींद नहीं सो पाते वहां देश को भी बड़ा नुक्सान होता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार देश को होने वाली 46 प्रतिशत आय काले धन के रूप में जमा हो जाती है जिनमें से 16 प्रतिशत हिस्सा व्यापारी के पास रहता है और 30 फीसदी अफसरशाही की तिजौरी में। सरकार की इन्हीं नीतियों की बदौलत देश में काले धन का उपार्जन तमाम कौशिशों के बावजूद कम होने की बजाए बढता रहा है।
जीएसटी लागू हो जाने के बाद चूंकि कारोबार की दृष्टि से सारा देश एक हो जाएगा अतः निवेशकों के लिए मांग का एक बड़ा बाजार खुल जाएगा। अब तक विश्व के लगभग 140 देशों में जीएसटी लागू है। बताया जा रहा है कि जीएसटी वाले देश में एक ट्रक 800 किलोमीटर प्रति दिन की दूरी तक तय कर लेता है जबकि भारत में टैक्स बैरियरों के चलते माल ढोने वाले ट्रक 285 किलोमीटर से आगे भी नहीं बढ पाते। जीएसटी के बाद बनावटी अवरोध खत्म हो जाएंगे।
प्रधानमंत्री नरिन्द्र मोदी ने इस बिल को 'कर आंतकवाद से मुक्ति' का नाम दिया किन्तु इस बिल का सबसे नाकारात्मक पहलू है छोटे व मझौले दर्जे के व्यापारी व उत्पादकों का खात्मा यानि अब तक छोटे व मझौले दर्जे के उद्योगपति, जिनका कारोबार डेढ करोड रूपए सलाना तक का है, अभी कोई उत्पादन शुल्क नहीं देते। इसी कारण वे अपने उत्पाद बड़ी कंपनियों के मुकाबले काफी कम दामों पर बेच कर अपना घर-परिवार चलाते हैं किन्तु इस बिल के लागू होने के बाद उन्हें भी 18 प्रतिशत वस्तु एवं सेवा कर देना होगा जिसके बाद उनके उत्पाद मंहगे हो जाएंगे और वे बड़ी कंपनियों के मुकाबले नहीं टिक पाएंगे। चूंकि छोटे व मध्यम वर्ग के कारोबार में रोजगार की संभावना अधिक होती है अतः देशवासियों को यह बड़ा आघात सहना पड़ेगा। विशेषज्ञों के मतानुसार सभी टाटा, बिरला, अंबानी या अडानी नहीं बन सकते तो क्या उन्हें सम्मानपूर्वक अपनी रोजी रोटी कमा कर जीने का अधिकार नहीं। सरकार सबको सरकारी नौकरी तो दे नहीं सकती तो क्या अब बाकी सब लोगों को कारपोरेट वर्ग के रहमोकर्म पर गुजर-बसर करने को बाध्य होना पड़ेगा। आम आदमी को पहले अफसरशाही, लालफीताशाही व इंस्पैक्टरीर राज के सहम में जीना पड़ रहा था और अब अरब व खरपतियों की गुलामी में अपने व अपने बच्चों को झोंकने को मजबूर होना पड़ेगा। कम्युनिस्टों की भाषा में सरकार ने समाज को सीधे सीधे अमीर और गरीब दो तबकों में बांट दिया है। एक लूटने वाले और दूसरे लुटने वाले।
सरकार दावा कर रही है कि ज्यादातर वस्तुओं पर टैक्स रेट कम हो जाएगा। इसका फायादा ग्राहकों को मिलेगा किन्तु इसकी कोई गांरटी नहीं कि उत्पादक यह फायदा उपभोक्ताओं को दे दे। पिछले तमाम अनुभव इस मामले में कड़वे सिद्व हुए हैं। सरकारें जितनी राहत व अनुदान इन उद्योगपतियों व व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को देती है वे उन्हें आम आदमी तक पहुंचाने ही नहीं देते। जिसकी लाठी उसकी भैंस का चलन भारतीय लोकतंत्र में घटने की बजाए निरंतर बढ रहा है और हमारी सरकारें आम आदमी की वोटें लेकर खास आदमियों की तिजोरियां भरने की खातिर ही सारा परिश्रम करती दिखाई देती है। कहा तो यह भी जा रहा है कि पिछले लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने कारपोरेट वर्ग सेे तगड़ा चुनाव फंड इसी वायदे से लिया था कि सरकार बनने पर उनका यह सारा धन कई गुणा कर के लौटा देंगे और उन्होंने जीएसटी लागू करके उनसे किया वायदा पूरा कर दिया है। जनता की किस्मत में तो पिसना लिखा है सो वह पिसती रहेगी।

 
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