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माघ मकर संक्रान्ति 14 और 15 जनवरी को, खाएं व बाटें खिचड़ी

January 13, 2018 12:24 PM
मदन गुप्ता सपाटू,ज्योतिषाचार्य, 98156 19620
  
नवग्रहों में सूर्य ही एकमात्र ग्रह है जिसके आस पास सभी ग्रह घूमते हैं। यही प्रकाश देने वाला पुंज है जो धरती के अलावा अन्य ग्रहों पर भी जीवन प्रदान करता है। प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है जिसे सामान्य भाषा में मकर संक्रान्ति कहते हैं। यह पर्व दक्षिणायन के समाप्त होने और उत्तरायण प्रारंभ होने  पर मनाया जाता है। वर्ष में 12 संक्रातियां आती है। परंतु विशिष्ट कारणों से इसे ही  सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है।
यह एक खगोलीय घटना है जब सूर्य हर वर्ष धनु से मकर राशि में प्रवेश करता है और हर बार यह समय लगभग 20 मिनट बढ़ जाता है। अतः 72 साल बाद एक दिन का अंतर पड़ जाता है। पंद्रहवीं शताब्दी के आसपास यह संक्राति 10 जनवरी के आसपास पड़ती थी और अब यह 14 व 15 जनवरी को होने लगा है। 2012 में सूर्य मकर राषि में 15 जनवरी को आया था।
लगभग 150 साल के बाद 14 जनवरी की डेट  आगे पीछे हो जाती है। सन् 1863 में मकर संक्राति 12 जनवरी को पड़ी थी। अब 2018 में 14 जनवरी और 2019 तथा 2020 में यह 15 जनवरी को पड़ेगी। गणना यह है कि 5000 साल बाद मकर संक्राति फरवरी के अंतिम सप्ताह में मनानी पड़ेगी।
14 जनवरी,2018, रविवार को सूर्य, दोपहर 1 बजकर 45 मिनट पर मकर राशि में आएंगे। इसका पुण्यकाल भी सूर्याेदय से सूर्यास्त तक रहेगा। परंतु 15 जनवरी को उदया तिथि होने के कारण, भारत के कई नगरों में मकर संक्राति मनाई जाएगी। 
14 जनवरी  को ध्रुव योग , गंडमूल नक्षत्र, वृश्चिक राशि, सिंह लग्न,सर्वार्थ सिद्धि योग, परिजात योग भी होंगे। रविवार को 6 साल बाद यह संक्राति रवि प्रदोष के संयोग सहित भी होगी। अतः बहुत शुभ संयोग 2018 की संक्राति पर आए हैं।
  मलमास भी समाप्त हो जाएगा और रुके हुए सभी शुभ कार्य करना सार्थक रहेगा। गोचर में आंशिक कालसर्प योग भी विद्यमान रहेगा।मकर संक्राति पर दान का विशेष महत्व है जिसे क्षमतानुसार पूर्ण आस्था व विशवास से करना चाहिए। मुख्यतः गुड़, तिल , खिचड़ी व अन्न का दान करना चाहिए।
आज के दिन का पौराणिक महत्व भी खूब है। सूर्य अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने असुरों का संहार भी इसी दिन किया था। 

मकर संक्रांति मुहूर्त

पुण्य काल मुहूर्त = दोपहर 02:00 से 05:41 बजे तक

मुहूर्त की अवधि = 3 घंटा 41 मिनट

संक्रांति समय = दोपहर 02:00

महापुण्य काल मुहूर्त = दोपहर 02:00 से 02:24 बजे तक

मुहूर्त की अवधि = 23 मिनट

क्या करें मकर संक्रांति पर  ?
इस दिन पवित्र नदियों एवं तीर्थों में स्नान, दान,देव कार्य एवं मंगलकार्य करने से विशेष लाभ होता है। महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह ने भी प्राण त्यागने के लिए इस समय अर्थात सूर्य के उत्तरायण  होने तक प्रतीक्षा की थी।
सूर्योदय के बाद खिचड़ी आदि बनाकर तिल के गुड़वाले लडडू प्रथम सूर्यनारायण को अर्पित करना चाहिए बाद में दानादि करना चाहिए। अपने नहाने के  जल में तिल डालने चाहिए।
मंत्रः ओम नमो भगवते सूर्याय नमः या ओम सूर्याय नमः का जाप करें ।माघ माहात्म्य का पाठ भी कल्याणकारी है । सूर्य उपासना कल्याण कारी होती है। सूर्य ज्योतिष में हडिड्यों के कारक भी हैं अतः जिन्हें जोड़ों के दर्द सताते हैं या बार बार दुर्घनाओं में फ्रैक्चर होते हैं उन्हें इस दिन सूर्य को जल अवश्य अर्पित करना चाहिए।
देव स्तुति , पित्तरों का स्मरण करके  तिल, गुड़, गर्म वस्त्रों कंबल आदि का दान जनसाधारण , अक्षम या जरुरतमंदो या धर्मस्थान पर करें। माघ मास माहात्म्य सुनें या करें । इस दिन को धार्मिक अनुष्ठानों के लिए विषेष फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुणा फल देता है।
उत्तर भारत में इस त्योहार को माघ मेले के रुप में मनाया जाता है तथा इसे दान पर्व माना जाता है। 14 दिसंबर से 14 जनवरी तक खर मास या मल मास माना जाता है जिसमें विवाह संबंधी मांगलिक कार्य नहीं किये जाते अतः 14 जनवरी से अच्छे दिनों का आरंभ माना जाता ळें
मकर संक्राति के स्नान से लेकर शिवरात्रि तक स्नान किया जाता है। इस दिन खिचड़ी सेवन तथा इसके दान का विशेष महत्व है। इस दिन को खिचड़ी भी कहा जाता है। महाराष्ट्र् में इस दिन गुड़ तिल बांटने की प्रथा है। यह बांटने के साथ साथ मीठा बोलने के लिए भी आग्रह किया जाता है। गंगा सागर में भी इस मौके पर मेला लगता है। कहावत है- सारे तीरथ बार बार - गंगा सागर एक बार। तमिलनाडु में इसे पोंगल के रुप में चार दिन मनाते हैं और मिटट्ी की हांडी में खीर बनाकर सूर्य को अर्पित की जाती है। पुत्री तथा जंवाई का विशेष सत्कार किया जाता है। असम में यही पर्व भोगल बीहू हो जाता है।
संक्राति पर खगोलीय दृष्टि
जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को सौर वर्ष कहते हैं। धरती का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना ‘क्रान्ति चक्र’ कहलाता है। इस परिधि को 12 भागों में बांटकर 12 राशियां बनी हैं। पृथ्वी का एक राशि से दूसरी में जाना ‘संक्रान्ति ’ कहलाता है। यह एक खगोलीय घटना है जो साल में 12 बार होती है। सूर्य एक स्थान पर ही खड़ा है, धरती चक्कर लगाती है। अतः जब पृथ्वी मकर राशि में प्रवेश करती है, एस्ट्र्ानॉमी और एस्ट्र्ॉलाजी में इसे मकर संक्रान्ति कहते हैं।
इसी प्रकार सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना उत्तरायण कहलाता है। उत्तरायण आरंभ होते ही दिन बड़े होने लगते हैं। रातें अपेक्षाकृत  छोटी होने लगती हैं। इस दिन पवित्र नदियों एवं तीर्थेंा में स्नान, दान,देव कार्य एवं मंगलकार्य करने से विशेष लाभ होता है। 
ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य, कर्क व मकर राशियों को विशेष रुप से प्रभावित करते हैं। भारत उत्तरी गोलार्द्ध में है। सूर्य मकर संक्रांति से पूर्व ,दक्षिणी गोलार्द्ध में होता है अतः सर्दी के मौसम में दिन छोटे रहते हैं। इस दिन सूर्य के उत्तरायण में आने से दिन बड़े होने शुरु होते हैं और शरद ऋतु का समापन आरंभ हो जाता है। प्राण शक्ति बढ़ने से कार्य क्षमता बढ़ती है अतः  भारतीय सूर्य की उपासना करते हैं। यह संयोग प्रायः 14 जनवरी को ही आता है।  
शास्त्रों मे दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मक समय तथा उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। पौराणिक संदर्भ में मान्यता है कि भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने उनके गृह आते हैं। मकर राशि के स्वामी चूंकि शनिदेव हैं, इस लिए भी इसे मकर संक्राति कहा जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने देह त्याग का समय यही चुना था। भारत में यशोदा जी ने इसी संक्रान्ति पर श्री कृष्ण को पुत्र रुप में प्राप्त करने का व्रत लिया था। 
इसके अलावा यही वह ऐतिहासिक एवं  पौराणिक दिवस है जब गंगा नदी, भगीरथ के पीछे पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए गंगासागर तक पहुंची थी।
मान्यता है कि मकर संक्रान्ति पर यज्ञ या पूजापाठ मे अर्पित किए गए द्रव्य को ग्रहण करने के लिए देव व पुण्यात्माएं धरती पर आती हैं।
यह संक्रान्ति काल मौसम के परिवर्तन और इसके  संक्रमण से भी बचने का हैं। इसी लिए तिल या तिल से बने पदार्थ खाने व बांटने से मानव शरीर में उर्जा का संचार होता है। तिल मिश्रित जल से स्नान,तिल उबटन, तिल भोजन, तिल दान, गुड़ तिल के लडडू मानव षरीर को सर्दी से लड़ने की क्षमता देते हैं। 
इस दिन खिचड़ी के दान तथा  भोजन को भी विशेष महत्व दिया गया है। उत्तर प्रदेश के लोग इसे ‘खिचड़ी ’ के रुप में मनाएंगे और महाराष्ट्र्यिन ‘ ताल- गूल’ नामक हलवा बाटेंगे। बंगाल से आए लोग भी तिल दान करेंगे।
विदेश में मकर संक्राति 
भारत ही नहीं अपितु सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर मौसम में आए परिवर्तन को आज भी रोम में खजूर,अंजीर और शहद बांट कर मनाया जाता है। तिल के महत्व को प्राचीन ग्रीक के लोग भी मानते थे और वर-वधु की संतान वृद्धि हेतु तिल के पकवानों को खिलाते थे। 
इस पर्व को देश में हर राज्य में अपने तरीके से मनाया जाता है। गुजरात व राजस्थान  में यह उत्तरायण पर्व है तो उत्तर प्रदेश में खिचड़ी है। तमिलनाडु में पोंगल तो आंध्रा में तीन दिवसीय पर्व है। बंगाल में गंगा सागर का मेला है तो पंजाब में एक दिन पहले लोहड़ी मनाई जाती है। असम में बिहु के नाम से त्योहार मनाया जाता है।
आपकी राशि पर मकर संक्राति का प्रभाव
मेषः पदोन्नति की संभावना, सरकार से लाभ,धनाागमन,प्रतिष्ठित जनों से मित्रता के योग है। चहुंमुखी विकास होगा। विद्युत या इलेक्ट्र्निक उपकरण खरीदें। ओम् सूर्याय नमः का जाप करें । गुड़ व गेहूं का दान करें।
बृषः सुख साधन बढ़ेंगे। मकान ,वाहन का क्रय अत्यंत शुभ रहेगा। दूध दही सफेद वस्तुओं का दान करें। मिथ्यारोप, धन हानि, अत्याधिक व्यय, राज्य पक्ष से चिंता हो सकती है। कनक दान करें।

यह एक खगोलीय घटना है जब सूर्य हर वर्ष धनु से मकर राशि में प्रवेश करता है और हर बार यह समय लगभग 20 मिनट बढ़ जाता है। अतः 72 साल बाद एक दिन का अंतर पड़ जाता है। पंद्रहवीं शताब्दी के आसपास यह संक्राति 10 जनवरी के आसपास पड़ती थी और अब यह 14 व 15 जनवरी को होने लगा है। 2012 में सूर्य मकर राषि में 15 जनवरी को आया था।
लगभग 150 साल के बाद 14 जनवरी की डेट  आगे पीछे हो जाती है। सन् 1863 में मकर संक्राति 12 जनवरी को पड़ी थी। अब 2018 में 14 जनवरी और 2019 तथा 2020 में यह 15 जनवरी को पड़ेगी। गणना यह है कि 5000 साल बाद मकर संक्राति फरवरी के अंतिम सप्ताह में मनानी पड़ेगी।

मिथुनः परिवार में सदस्यों की वृद्धि, संतान प्राप्ति संभावित । हरी सब्जी या हरे फल मिठाई दान करें। कंप्यूटर, मोबाइल ले सकते हैं। शारीरिक व्याधि, ज्वर, मानहानि, पत्नी को पीड़ा दे सकता है सूर्य का ें गोचर। गुड़ का हलुवा गरीबों को खिलाएं।
कर्कः फ्रिज , ए.सी , वाटर प्योरिफायर या वाटर कूलर खरीदें ।सिर पीड़ा, उदर रोग, धन हानि, यात्रा, शत्रुओं से झगड़ा आदि दिखता है । सूर्य को तिल डाल कर जल अर्पित करें।
सिंहः सूर्य की उपासना करें । सरकार से लाभ होगा। ओम् घृणि सूर्याय नमः का जाप करें । सोने के आभूषण या गोल्ड क्वाएन खरीदना धन वृद्धि करेगा। शत्रुओं पर विजय, कार्यसिद्धि, रोग नाश, सरकार से लाभ, वस्त्र का क्रय आदि करवाता है सूर्य ।
कन्याः जल में तिल डाल कर स्नान करें । नया मोबाइल, ब्रॉड बैंड कनेक्शन, टीवी तथा संचार संबंधी उपकरण खरीदें। क्रेडिट कार्ड या ऋण लेकर कुछ न खरीदें । किसी प्रियजन को मोबाइल भेंट करें या जरुरतमंद को दान करें। सूर्य संतान से चिंता दे सकता है।यात्रा ध्यान से करें, संतान की सेहत का ध्यान रखें,वाद विवाद से बचें, मतिभ्रम न होने दें। जल में तिल डाल कर नहाएं।
तुलाः हर तरफ से धन धान्य की प्राप्ति। तिल का उबटन लगाएं। इस अवसर पर चांदी खरीदें और वर्षांत तक मालामाल हो जाएं।,जमीन जायदाद संबंधी समस्याएं, मान हानि, घरेलू झगड़ों से परेशानी, शारीरिक  कमजोरी । खिचड़ी का दान करें।
बृश्चिकः रुका धन आने की संभावना। कोर्ट केस में विजय।शत्रु दबे रहेंगे। इलैक्ट््रानिक खरीदें। गज्जक , रेवड़ी का दान फलेगा।रोग मुक्ति, राज्यपक्ष मजबूत, मान प्रतिष्ठा की प्राप्ति,पुत्र व मित्रों, समाज से सम्मान देगा ।जल में गुड़ डाल कर सूर्य को अर्पित करें।
धनुः शिक्षा क्षेत्र,कंपीटीशन आदि में सफलता। सोने का सिक्का या मूर्ति सामर्थ्यानुसार खरीद कर पूजा स्थान पर स्थापित करें। खिचड़ी स्वयं बनाकर 9 निर्धन मजदूरों को खिलाएं।सिर, नेत्र पीड़ा, दुष्ट लोगों से मिलन, व्यापार हानि, संबंधियों से वैमनस्य करा सकता र्है। नेत्रहीनों  को भोजन करवाएं। 
मकरः गरीबों में सवा किलो चावल और सवा किलो  काले उड़द या इसकी खिचड़ी दान करें । सूर्य का गोचर मान हानि, कायों में देरी, उद्ेश्यहीन भ्रमण, मित्रों से मनमुटाव, सेहत खराब कर सकता र्है । तांबे के बर्तन धर्मस्थान पर दान दें।
कुंभः विदेश यात्रा, नेत्र कष्ट, अधिक व्यय, पद की हानि करवा सकता है सूर्य का गोचर। मरीजों को मीठा दलिया खिलाएं।
मीनः सूर्य का भ्रमण धन लाभ, नवीन पद, मंगल कार्य, राज्य कृपा, तरक्की, धन प्राप्ति देता है। वाहन सुख । प्रापर्टी का ब्याना देना या बुकिंग ,दीर्घकालीन निवेश के लिए सर्वोत्तम मुहूर्त। तिल के लडडू दान दें ।
 
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