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एस्ट्रोलॉजी

होलाष्टक 23 फरवरी से 1 मार्च, होलिका दहन पहली मार्च और रंगवाली होली 2 मार्च को

February 17, 2018 08:52 AM

मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्, चंडीगढ़, मो- 98156 19620

Madan Gupta Sapatu
भारतीय मुहूर्त विज्ञान व ज्योतिष शास्त्र प्रत्येक कार्य के लिए शुभ मुहूर्तों का शोधन कर उसे करने की अनुमति देता है। कोई भी कार्य यदि शुभ मुहूर्त में कियाजाता है तो वह उत्तम फल प्रदान करने वाला होता है। अर्थात्‌ ऐसा समय जो उस कार्य की पूर्णता के लिए उपयुक्त हो।

ज्योतिषशास्त्र में प्रत्येक शुभ कार्य के लिए समय निर्धारित किया गया है। इस शुभकाल में प्रारंभ किया गया कार्य अवश्य ही पुण्य फलदायी एवं शुभकारी बतायागया है, किंतु इसी काल में ऐसा भी समय होता है जब शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं। एक ऐसा ही काल होता है होलाष्टक जो भारतीय धर्म एवं ज्योतिषशास्त्र मेंमंगल कार्यों के लिए उत्तम नही माना गया है।

होलाष्टक 23फरवरी से प्रारंभ हो रहा है, जो कि 1 मार्च होलिका दहन के साथ समाप्त होगा। अर्थात इन दिनों में कोई भी शुभ कार्य प्रारंभ करना वर्जित होगा।ज्योतिशास्त्र के अनुसार होलाष्टक के दौरान किया गया कार्य विपरीत परिणाम लेकर आ सकता है और ये पीड़ादायी एवं कष्टकारी बन सकता है। होलाष्टक केआठ दिन किसी भी ऐसे कार्य करने के लिए पूर्णत अशुभ माने जाते हैं, जो आपके जीवन में मंगलकारी माने गए हैं।

ये कार्य ना करें

नामकरण, विवाह की चर्चाएं, मुंडन, हवन, विवाह, गृह शांति, गर्भाधान, गृह प्रवेशा, गृह निर्माण, विद्यारंभ सहित अनेक शुभ कर्म।

फाल्गुन माह की पूर्णिमा (1 मार्च) को होलिका दहन किया जाएगा और इसके अगले दिन 2 मार्च को धुलेण्डी (होली) पर रंग-गुलाल खेलकर खुशियां मनाईजाएगी. शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन के आठ दिन पूर्व होलाष्टक लग जाता है. इसके अनुसार होलाष्टक लगने से होली तक कोई भी शुभ संस्कार संपन्न नहींकिए जाते.

शास्त्रीय परंपरा के अनुसार होलाष्टक शुरू हो गया और अब 16 संस्कार जैसे नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार जैसे शुभ कार्यों पररोक लग गई है. ये शुभ कार्य धुलेण्डी के बाद ही शुरू होंगे.

होली के पहले दिन, सूर्यास्त के पश्चात, होलिका की पूजा कर उसे जलाया जाता है। होलिका पूजा का मुहूर्त काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। ज्यादातर लोगहोलिका-दहन मुहूर्त देख कर ही करते हैं। होली का मुख्य दिन होलिका दहन के अगले दिन होता है और रंगों का उपयोग मुख्यतः इसी दिन किया जाता है। सूखेरंगों को लोग ज्यादा पसन्द करते हैं। सूखे रंगों को गुलाल के नाम से जाना जाता है। 

यह भी मान्यता है कि होली के पहले के आठ दिनों अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक प्रहलाद को काफी यातनाएं दी गई थीं. यातनाओं से भरे उन आठ दिनों को हीअशुभ मानने की परंपरा बन गई. हिन्दू धर्म में किसी भी घर में होली के पहले के आठ दिनों में शुभ कार्य नहीं किए जाते.

होलिका दहन की परंपरा

होलाष्टक का संबंध भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद व उनके पिता अत्याचारी हिरण्यकश्यप की कथा से है. स्कंद पुराण के अनुसार राक्षसी प्रवृत्ति के राजाहिरण्यकश्यप भगवान विष्णु से ईर्ष्या व जलन की भावना रखता था. उसके राज्य में जो कोई भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करता था उसे मौत की सजा सुनाईजाती थी. राजा के फरमान से डरकर उसके राज्य में कोई भी भगवान विष्णु की पूजा नहीं करता था.

कथा के अनुसार राजा हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त था. अपने पुत्र प्रहलाद की विष्णु भक्ति के बारे में जब राजा को पता चला तो उसनेप्रहलाद को समझाया मगर प्रहलाद ने भगवान विष्णु की भक्ति करनी नहीं छोड़ी. इससे क्रोधित होकर राजा ने अपने पुत्र को मृत्युदंड की सजा सुनाई.

राजा के आदेश पर सैनिकों ने भक्त प्रहलाद को अनेक यातनाएं दीं. उसे मरने के लिए जंगली जानवरों के बीच छोड़ा, नदी में डुबो दिया, ऊंचे पर्वत से भी फेंकागया. हर सजा पर प्रहलाद भगवान की कृपा से बच गया. अंत में राजा ने अपनी बहन होलिका की गोद में बिठाकर प्रहलाद को जिंदा जला डालने का हुक्म दिया.

राजा की बहन होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में भी भस्म नहीं होगी. प्रभु कृपा से प्रहलाद तो बच गया मगर होलिका जल गई. उस दिन से होलिका दहन कीपरंपरा शुरू हुई.

होलिका दहन पहली मार्च और रंगवाली होली 2 मार्च को

होली हिन्दुओं का धार्मिक त्यौहार है जिसे विश्वभर में हिन्दु धर्म के लोगों द्वारा मनाया जाता है। दीपावली के बाद यह हिन्दुओं का दूसरा मुख्य त्यौहार है। होलीको रंगों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है। 

होली का त्यौहार भगवान श्री कृष्ण को अत्यधिक प्रिय था। जिन स्थानों पर श्री कृष्ण ने अपने बालपन में लीलाएँ और क्रीडाएँ की थीं उन स्थानों को ब्रज के नामसे जाना जाता है। इसीलिये ब्रज की होली की बात ही निराली है। ब्रज की होली की छटा का आनन्द लेने के लिये दूर-दराज प्रदेशों से लोग मथुरा, वृन्दावन,गोवर्धन, गोकुल, नन्दगाँव और बरसाना में आते हैं। बरसाना की लट्ठमार होली तो दुनिया भर में निराली और विख्यात है। 

ज्यादातर जगहों पर होली दो दिन मनायी जाती है। होली के पहले दिन को होलिका दहन, जलानेवाली होली और छोटी होली के नाम से जाना जाता है और इसदिन लोग होलिका की पूजा-अर्चना कर उसे आग में भस्म कर देते हैं। दक्षिण भारत में होलिका दहन को काम-दहनम् के नाम से मनाया जाता है। होली के दूसरेदिन को रंगवाली होली के नाम से जाना जाता है। सूखे गुलाल और पानी के रंगों का उत्सव दूसरे दिन ही मनाया जाता है। मौज-मस्ती के दिन की वजह से दूसरेदिन को होली का मुख्य दिन माना जाता है। शिक्षण संस्थानों, विद्यालयों और सरकारी दफ्तरों में होली का अवकाश दूसरे दिन ही रखा जाता है। रंगवाली होली कोधुलण्डी के नाम से भी जाना जाता है। 

होली के पहले दिन, सूर्यास्त के पश्चात, होलिका की पूजा कर उसे जलाया जाता है। होलिका पूजा का मुहूर्त काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। ज्यादातर लोगहोलिका-दहन मुहूर्त देख कर ही करते हैं। होली का मुख्य दिन होलिका दहन के अगले दिन होता है और रंगों का उपयोग मुख्यतः इसी दिन किया जाता है। सूखेरंगों को लोग ज्यादा पसन्द करते हैं। सूखे रंगों को गुलाल के नाम से जाना जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि पानी के रंगों से ही होली का असली आनन्द आताहै और पानी के रंगों से ही होली सम्पूर्ण होती है। 

 
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