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संपादकीय

महंगा फ्यूल, बेबस लोग

April 04, 2018 08:36 PM

चन्द्र शर्मा

Chander Sharma
 एक जमाना था जब पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढते ही, पूरे देश में हंगामा मच जाता था मगर अब स्थिति एकदम बदल गई है। पिछले 6 दिन से पेट्रोल और डीजल के दाम हर रोज बढाए जा रहे हैं मगर कहीं से आक्रोश का एक स्वर तक नहीं फूटा है। राजनीतिक दलों को अब महंगे फ्यूल की आग में रोटियां सेंकना गवारा नहीं लग रहा है। देश की अखंडता पर प्रहार करने वाले और समाज को तोडने वाले मुद्दे ज्यादा प्रासंगिक हो गए हैं। 16 जून, 2017 से पेट्रोल-डीजल की कीमतें हर रोज तय की जा रही हैं। उपभोक्ताओं को पेट्रोल-डीजल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में आने वाले उतार-चढाव का लाभ देने लिए इस व्यवस्था को लागू किया गया है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें इन दिनों लगातार बढ रही हैं। इसी कारण भारत में भी पेट्रोल-डीजल महंगा हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस समय कच्चे तेल 70 डॉलर प्रति बैरल के आसपास बिक रहा है। सरकार और इसकी तेल कंपनियां इसी बिला पर पिछले 6 दिन से कीमतें बढा रही हैं। इस साल अब तक पेट्रोल की कीमत 4 रु प्रति लीटर और डीजल 5 रु प्रति लीटर बढाई जा चुकी है। महाराष्ट्र में कई जगह पेट्रोल 82 रु लीटर और आंध्र प्रदेश में डीजल 70 रु लीटर तक बिक रहा है। तेल की कीमतों में फिलहाल राहत की कोई उम्मीद नहीं है। मोदी सरकार ने भी साफ कह दिया है कि एक्साइज ड्यूटी में कटौती की कोई गुजाइंश नहीं है। कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें जब 30 से 35 डॉलर बैरल थीं, सरकार ने एक्साइज डयूटी बढा कर दोनों हाथों से राजस्व बटोरा और तब लोगों से वायदा किया था कि कीमतें अगर अप्रत्याशित रुप से बढती हैं, एक्साइज ड्यूटी में कटौती करके राहत दी जाएगी।

अब सरकार अपनी ही बात से पीछे हट रही है। पिछले साल अक्टूबर में सरकार ने एक्साइज डयूटी में दो रु की कटौती की थी और इससे सरकार को सालाना 26,000 करोड रु का नुकसान उठाना पडा था। इससे ज्यादा राहत देने मंे सरकार के हाथ-पांव फूल रहे हैं। मोदी सरकार नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के दौरान पेट्रोल-डीजल पर नौ बार एक्साइज ड्यूटी बढा चुकी है मगर राहत मात्र एक बार दी गई है।

यह कहां का इंसाफ है कि तेल की कीमतों में गिरावट आए तो सरकार कमाए और जब कीमतें बढें तो उपभोक्ता भरे? इस हिसाब से तो सरकार बनिए से दो कदम आगे निकल गई है। सरकार के अपने खर्चे दिन-ब-दिन बढते जा रहे हैं और इन्हें पूरा करने के लिए उसके पास लोगों की जेबें काटने के सिवा कोई चारा नहीं है।

तेल की कीमतों में लगभग 49 फीसदी टैक्स सरकार की कमाई का प्रमुख जरिया है। यही वजह है कि सरकार ने पेट्रोल-डीजल को जीएसटी से बाहर रखा है। जीएसटी की अधिकतम सीमा 28 फीसदी है जबकि पेट्रोल-डीजल पर जीएसटी की अधिकत्म सीमा से भी दोगुना ज्यादा एक्साइज डयूटी है। ं एशिया के कई देशों की तुलना में भारत में पेट्रोल-डीजल सबसे महंगा है। यहां तक कि पाकिस्तान, बांग्ला देश और श्री लंका में पेट्रोल-डीजल भारत से कहीं सस्ता है। भारत के 70 से 80 रु प्रति लीटर की तुलना में पाकिस्तान में इस समय पेट्रोल 42 रु लीटर बिक रहा है। पाकिस्तान में डीजल, पेट्रोल से महंगा (47 रु लीटर) है। श्री लंका में डीजल भारत से कहीं सस्ता, 39.69 रु और पेट्रोल 53.47 रु लीटर बिक रहा है। मलेशिया में पेट्रोल की कीमत 32.19 रु और डीजल की 31.59 रु लीटर है। इसकी प्रमुख वजह यह है कि इन सभी देशों में पेट्रोल-डीजल पर टैक्स भारत की तुलना में कहीं कम है। डीजल की कीमतों में वृद्धि का सीधा असर खाने-पीने और अन्य रोजमर्रा की वस्तुओं पर पडता है। महंगे डीजल का मतलब महंगी ढुलाई और महंगी खाने-पीने की वस्तुएं। इससे लोगों के “अच्छे दिन तो आने से रहे।

श्री चन्द्र शर्मा, जाने.माने वरिष्ठ पत्रकार हैं

 
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