मनीष देसाई
बहस का बिंदु यह है कि ऐसे में जब आसियान खेल और अफ्रीकाई खेल जैसे अनेक भौगोलिक-राजनीतिक गठबंधनों के खेल आयोजित किए जा रहे हैं तो क्या वास्तव में औपनिवेशिक विरासत से जुड़े राष्ट्रमंडल खेलों के लिए इतने भारी खर्च और दिखावे की जरूरत है।
20वें राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन से स्काटलैंड के सबसे बड़े शहर ग्लास्गो में खुशी का माहौल है। आयोजक लंदन में वर्ष 2012 में हुए ओलंपिक खेलों से तुलना को पीछे छोड़ खुद एक विश्वस्तरीय आयोजन की आशा कर रहे हैं। वर्ष 1970 और 1986 में राजधानी एडिनबर्ग में खेलों के आयोजन के बाद यह तीसरा अवसर है जब राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन स्काटलैंड में हो रहा है। वर्ष 2007 में नाईजीरिया के शहर अबूजा को खेलों के आयोजन की बोली में पीछे पछाड़ने के बाद आज ग्लास्गो के 23 लाख लोग इन खेलों के प्रतीक चिह्न क्लाईड के तले एकजुट हैं। ग्लास्गो ने शानदार आयोजन की बानगी चार वर्ष पहले दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में 19वें राष्ट्रमंडल खेलों के समापन समारोह में आगामी शानदार आयोजन का संकेत दिया था।उद्घाटन समारोहराष्ट्रमंडल खेलों का उद्घाटन समारोह सेलटिक पार्क, ग्लास्गो में हुआ। समारोह में ब्रिट्रेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने 71 राष्ट्रमंडल देशों में 248 दिनों तक सफर करने के बाद क्वीन बेटन में लिखे संदेश को पढ़ा जिसके बाद समारोह की औपचारिक शुरूआत हुई। उद्घाटन समारोह में इन खेलों में भाग लेने वाले हजारों खिलाडि़यों ने सेलटिक पार्क के चारों ओर एक भव्य परेड में भाग लिया। पिछले आयोजनकर्ता भारत से परेड की शुरूआत और वर्तमान आयोजनकर्ता स्कॉटलैंड से परेड की समाप्ति हुई। इस समारोह का केंद्र बिंदु लगभग 2000 लोगों द्वारा प्रस्तुत लाइव शो रहा। इसमें सेलटिक पार्क के साउथ स्टैंड के सामने 100 मीटर चौड़ी, 11 मीटर ऊंची स्क्रीन पर समारोह का सीधा प्रसारण किया गया। वर्ष 2010 में दिल्ली में हुए राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान उद्घाटन और समापन समारोह में ऐरो स्टेट मुख्य आकर्षण केंद्र था। भारत में क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर यूनिसेफ के ग्लोबल गुडविल एम्बेसडर की अपनी भूमिका में समारोह के दौरान एक वीडियो कांफ्रेंस के जरिए उपस्थित थे। यूनिसेफ पूरी दुनिया में बच्चों की समस्याओं के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए अपनी तरह की एक अनूठी पहल के रूप में ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन में साझीदार है। ब्रिट्रेन के प्रधानमंत्री श्री डेविड केमरून और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी, स्कॉटलैंड के फर्स्ट मिनिस्टर एलेक्स सेलमोंड और सरकार में उनके सहयोगी तथा राष्ट्रमंडल देशों के अन्य गण्यमान्य व्यक्तियों ने भी उद्घाटन समारोह में शिरकत की। 71 राष्ट्रमंडल देशों और स्वतंत्र राज्यों के 6500 से ज्यादा एथलीट 11 दिनों तक चलने वाले खेलों के इस रंगारंग कार्यक्रम में भाग लेंगे। 17 खेलों में 261 पदक स्पर्धाएं होंगी। 2010 में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में 21 खेल स्पर्धाएं थीं। जमैका के धावक उसेन बोल्ट ग्लास्गो खेलों के सबसे बड़े नाम हैं। लेकिन वह केवल 4x100 मीटर रिले में ही भाग लेंगे। ब्रिट्रेन के लम्बी दूरी के धावक मो फराह, जिन्होंने 2012 के लंदन ओलंपिक्स के दौरान 5000 और 10,000 मीटर की प्रतियोगितायें जीती थीं, के दोनों ही स्पर्धाओं में भाग लेने का कार्यक्रम है। मेजबान स्काटलैंड ने बेहतर प्रदर्शन करने और अपने पदकों की संख्या में बेहतरी करने के लिए बहुत अच्छी तैयारी की है। इंग्लैंड भी आशावान है और पहले या दूसरे स्थान के लिए पूरी मशक्कत करेगा। न्यूजीलैंड रग्वी पर फोकस करेगा जबकि भारत जो राष्ट्रमंडल का सबसे बड़ा देश है, उसे निशानेबाजों, मुक्केबाजों, पहलवानों, बैडमिंटन खिलाडि़यों से बड़ी संख्या में पदक जीतने की उम्मीद है। मणिपुर की लड़कियों खुमुकचाम संजीता, मीरा बाई सैखोम ने 48 किलोग्राम वजन में महिला भारोत्तोलन मुकाबले में स्वर्ण और रजत पदक भारत की झोली में डाले हैं।राष्ट्रमंडल खेलों में भारत की हिस्सेदारीइस बार भारत ने 14 खेल विधाओं में 224 खिलाडि़यों का बड़ा दल भेजा है। निशानेबाजी टीम में ओलंपिक चैंपियन अभिनव बिंद्रा और दो ओलंपिक पदकधारक गगन नारंग और विजय कुमार शामिल हैं। बैडमिंटन में पिछली बार की पदक विजेता साइना नेहवाल के प्रतियोगिता में शामिल न होने के कारण भारत की पदक जीतने की उम्मीद पीवी सिंधु, पी. कश्यप के प्रदर्शन और ज्वाला गुट्टा व अश्वनी पोनप्पा द्वारा अपनी सफलता दोहराने पर टिकी होगी। 2010 के राष्ट्र मंडल खेलों की ट्रैक और फील्ड प्रतियोगिताओं में भारत का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा। इसमें कृष्णा पूनिया ने 52 वर्षों के बाद डिस्क्स थ्रो में भारत के लिए पहला गोल्ड मैडल जीता था। 1958 की कार्डिफ खेलों में मिल्खा सिंह ने पदक जीता था। इस बार कृष्णा और विकास गौड़ा पर भारत की उम्मीद टिकी है। गौड़ा ने लंदन खेलों में आठवां स्थान प्राप्त किया था। भारत की पुरुष हॉकी टीम विश्वकप में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद इन खेलों में कुछ सम्मान जरूर अर्जित करना चाहेगी। दिल्ली खेलों में टीम ने रजत पदक जीता था लेकिन फाइनल में आस्ट्रेलिया से 0-8 की अपमानजनक हार का दंश झेला था। नई दिल्ली में आयोजित 2010 राष्ट्रमंडल खेलों में भारत दूसरे नंबर पर था। इन खेलों में 101 पदक जीतने का रिकॉर्ड रहा, देश इससे और बेहतर करने की उम्मीद रखता है लेकिन देश में अर्जित अप्रत्याशित सफलता को दोहराना मुश्किल होगा क्योंकि तीरंदाजी और टेनिस प्रतियोगिताएं हटा देने और निशानेबाजी व कुश्ती में मैडलों की संख्या कम कर देने से पदक जीतने के अवसर कम हुए हैं। इसलिए भारत के लिए सबसे वास्तविक लक्ष्य यही होगा कि वह कम से कम तीसरे स्थान पर रहे क्योंकि शीर्ष दो स्थान आस्ट्रेलिया या इंग्लैंड को मिलने की उम्मीद है। राष्ट्र मंडल खेलों का इतिहासराष्ट्रमंडल खेलों का इतिहास काफी पुराना है। 1930 में कनाडा के हेमिल्टन में पहले आयोजन के बाद ग्लास्गो में यह 20वां आयोजन है। 1950 तक इन खेलों को ‘ब्रिटिश साम्राज्य खेल’ कहा जाता था। उसके बाद इन्हें ‘ब्रिटिश साम्राज्य एवं राष्ट्रमंडल खेल’ कहा गया और अंतत: 1978 में इन्हें ‘राष्ट्रमंडल खेल’ कहा गया। यद्यपि राष्ट्रमंडल खेल 21वीं सदी में भी जारी है लेकिन इन खेलों की प्रासंगिकता पर भी बहस जारी है। बहस का बिंदु यह है कि ऐसे में जब आसियान खेल और अफ्रीकाई खेल जैसे अनेक भौगोलिक-राजनीतिक गठबंधनों के खेल आयोजित किए जा रहे हैं तो क्या वास्तव में औपनिवेशिक विरासत से जुड़े राष्ट्रमंडल खेलों के लिए इतने भारी खर्च और दिखावे की जरूरत है। हमेशा की तरह राष्ट्रमंडल खेलों में इस बार भी स्टार खिलाडियों का अभाव है। 2012 में लंदन में आयोजित पिछले ओलंपिक खेलों में सबसे अधिक पदक जितने वाले तीन देश-अमेरिका, चीन और रूस राष्ट्रमंडल खेलों में भाग नहीं लेते। इस सब के बावजूद यह खेल नए खिलाडियों को अपनी आंकाक्षाएं पूरी करने का अवसर मुहैया कराते है।