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संपादकीय

टेलीकॉम उपभोक्ता की शिकायत कंज्यूमर फोरम में सुनी जा सकती है

August 04, 2014 11:21 AM

संजय मिश्रा :
टेलीकॉम उपभोक्ता की शिकायत कंज्यूमर फोरम में सुनी जा सकती है और कानून में इस बारे में कहीं कोई अड़चन नहीं है। हालांकि 1 सितम्बर 2009 को जनरल मैनेजर टेलीकॉम बनाम एम. कृष्णन (सिविल अपील संख्या 7687 ऑफ़ 2004) का निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रूलिंग दी कि जब भारतीय टेलीग्राफ एक्ट 1885 के सेक्शन 7 में उपभोक्ता के लिए रेमेडी दी हुई है तो कंज्यूमर फोरम टेलीकॉम उपभोक्ता की शिकायत पर सुनवाई नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से देश के सभी कंज्यूमर फोरम एवं कमीशन ने टेलीकॉम उपभोक्ता के शिकायत को ख़ारिज करना शुरू कर दिया।
कंज्यूमर फोरम फिरोजपुर, पंजाब, CC/180/2009 Decided on 11-09-2009 :
सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त फैसले के ठीक 10 दिन बाद 11 सितम्बर 2009 को पंजाब के फिरोजपुर कंज्यूमर फोरम ने शिकायत संख्या 180 ऑफ़ 2009 (लखबीर सिंह बनाम अमन अरोरा एवं बीएसएनएल) को निपटाते हुए कहा कि टेलीकॉम उपभोक्ता की शिकायत कंज्यूमर फोरम में सुनी जा सकती है।  इसके लिए फोरम ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया एवं कई सम्बंधित क़ानून जैसे भारतीय टेलीग्राफ एक्ट 1885 एवं टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया एक्ट 1997 के सेक्शन 14(बी) का हवाला दिया जिसमें साफ़ साफ़ लिखा हुआ है कि - टेलीकॉम से सम्बंधित व्यक्तिगत झगड़ों का निपटारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत बनाये गए फोरम एवं कमीशन में किया जा सकेगा।  
उपभोक्ता आयोग पंजाब चंडीगढ़, FA/1172/2009 Decided on 22-02-2010 :
पंजाब उपभोक्ता आयोग चंडीगढ़ ने 22 फरवरी 2010 को प्रथम अपील संख्या 1172 ऑफ़ 2009 (स्पाइस कम्युनिकेशंस बनाम गुरिंदर कौर) का निपटारा करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का उपरोक्त जजमेंट प्राइवेट टेलीकॉम ऑपरेटर पर लागू नहीं होता है क्योंकि भारतीय टेलीग्राफ एक्ट 1885 का सेक्शन 7 सिर्फ टेलीकॉम अथॉरिटी पर लागू होता है और स्पाइस कम्युनिकेशंस एक प्राइवेट लायसेंसी है और ये टेलीग्राफ अथॉरिटी की परिभाषा में कवर नहीं होता। यही नहीं व्यक्तिगत टेलीकॉम शिकायत भी सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त परिभाषा में कवर नहीं होता, इसलिए व्यक्तिगत टेलीकॉम से सम्बंधित शिकायत कंज्यूमर फोरम में सुनी जा सकती है ।
कंज्यूमर फोरम फिरोजपुर, पंजाब, CC/394/2010 Decided on 19-11-2010 :
कंज्यूमर फोरम फिरोजपुर पंजाब ने टेलीकॉम से समबन्धित एक शिकायत संख्या 394 ऑफ़ 2010 (विपन शर्मा बनाम भारती एयरटेल लिमिटेड) को निपटाते हुए दिनांक 19 नवम्बर 2010 को उपरोक्त फैसलों का हवाला देते हुए पुनः टेलीकॉम उपभोक्ता के हक़ में फैसला दिया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 1 सितम्बर 2009 के फैसले के बाद टेलेफोन सर्विस प्रोवाइडर्स एसोसिएशन ने डिपार्टमेंट ऑफ़ टेलीकम्युनिकेशंस भारत सरकार को 1 अक्टूवर २००९ को एक पत्र लिखा जिसमें टेलीग्राफ अथॉरिटी को परिभाषित करने की प्रार्थना की गई। जवाब में भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ़ टेलीकम्युनिकेशन ने अपने पत्रांक 07-32/2007-PHP(Pt.) दिनांक 19 अक्टूवर 2009 को साफ़ किया की - कोई भी प्राईवेट या सरकारी टेलीकॉम सेवा प्रदाता एक्ट की परिभाषा के तहत टेलीकॉम अथॉरिटी नहीं है और भारतीय टेलीग्राफ एक्ट 1885 के सेक्शन 7 के तहत वो किसी टेलीकॉम अर्बिट्रेरार की नियुक्ति नहीं कर सकती।  फोरम ने कहा की विभाग उपरोक्त पत्र से यह साफ़ होता है की प्राइवेट टेलीकॉम कंपनी सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त फैसले का शेल्टर नहीं ले सकती और उनसे सम्बंधित शिकायत पर कंज्यूमर फोरम में सुनवाई हो सकती है।

दिल्ली उच्च न्यायालय, WP/8285/2010, Decided on 06-02-2012 :
दिल्ली हाई कोर्ट ने रिट पिटीशन संख्या 8285 ऑफ़ 2010 (जे के मित्तल बनाम भारत सरकार) के केस का निपटारा करते हुए 6 फरवरी 2012 को कहा - भारती एयरटेल लिमिटेड को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत सेक्शन 7 में वर्णित टेलीकॉम अथॉरिटी नहीं माना जा सकता है क्योंकि वह एक लायसेंसी है। फिर कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 1986 के सेक्शन 3 के तहत यह एक एडिशनल रेमेडी है जिसे दरकिनार नहीं किया जा सकता।
तमिलनाडु उपभोक्ता आयोग चेन्नई, FA/623/2010 Decided on 29-11-2012 :
29 नवम्बर 2012 को तमिलनाडु उपभोक्ता आयोग चेन्नई ने प्रथम अपील संख्या 623/2010, 847/2011, और 528/2012 का निपटारा करते हुए अपने संयुक्त आदेश में साफ़ कहा कि - टेलीकॉम से जुड़े सभी क़ानून एवं सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों के अवलोकन के बाद ये साफ़ हो गई है कि टेलीकॉम सेवा प्राप्त करने वाले उपभोक्ता को कंज्यूमर फोरम में शिकायत देने का अधिकार है एवं कंज्यूमर फोरम ऐसी शिकायत पर सुनवाई करके निपटारा कर सकता है।
मेघालय उपभोक्ता आयोग, पुनः मार्च 2014 में मेघालय उपभोक्ता आयोग ने भी विभाग के उपरोक्त पत्र का हवाला देते हुए उपरोक्त तथ्यों की पुष्टि की और बीएसएनएल के दलीलों को ख़ारिज कर दिया और कहा - सेवा प्रदाता कंपनी को टेलीग्राफ अथॉरिटी नहीं कहा जा सकता है इसलिए वो सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त आदेश का शेल्टर नहीं ले सकते।           
उपरोक्त फैसलों, एवं कानूनों के अवलोकन के बाद ये बात साफ़ हो जाती है की सुप्रीम कोर्ट का फैसला सिर्फ टेलीकॉम अथॉरिटी पर ही लागू होता है प्राइवेट या सरकारी टेलीकॉम सेवा प्रदाता या किसी लायसेंसी पर लागू नहीं होता, जो कि भारतीय टेलीकॉम उपभोक्ता के लिए अच्छी खबर है। 

 
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