गठिया जिसे अंग्रेजी में arthralgia (जोड़ों का दर्द), arthritis (गठिया/वात रोग/जोड़ों का प्रदाह), bone ache (हड्डी में दर्द/अस्थि वेदना), gout (गाउट/संधिवात), joint pain (जोड़ों का दर्द), muscular pain (मांसपेशियों में दर्द), rheumatism (आमवात/गठिया) आदि नामों से जाना जाता है। गठिया एक ऐसी तकलीफ है, जिससे पीड़ित व्यक्ति का चलना-फिरना तक मुश्किल हो जाता है। गठिया किसी भी आयु वर्ग के लोगों को हो सकता है। यह पहली बार 2 वर्ष की आयु से 80 वर्ष तक की आयु के दौरान कभी भी, किसी को भी हो सकता है। गठिया के अंतर्गत 300 से अधिक प्रकार की तकलीफें होती हैं। सबके होने के अलग-अलग कारण हो सकते हैं।
अकसर लोग कहते हैं कि गठिया एक जिद्दी रोग (obstinate disease) है जो आसानी से पीछा नहीं छोड़ता है। इसके बारे में जानना जरूरी है कि गठिया के कई प्रकार के कारण हो सकते हैं, जिनमें आनुवांशिक कारक, प्रतिरक्षा प्रणाली की समस्याएं, संक्रमण और चोटें शामिल हैं। इसके अलावा कड़वी हकीकत यह भी है कि पूर्व लिखित कारकों को छोड़कर (except the aforementioned factors), जिन्हें गठिया रोग होता है, उनमें से अधिकतर लोग खुद ही गठिया की तकलीफ को पैदा करने के लिये जिम्मेदार होते हैं। ऐसे लोग गठिया रोग को खुद ही पालते-पोसते रहते हैं।
जानिये लोग गठिया को खुद ही कैसे पालते-पोसते रहते हैं?
1. लम्बे समय तक बीमार पाचन-तंत्र की अनदेखी करके। जो लोग दोनों वक्त खुलकर मलत्याग करने नहीं जाते हैं, या जो लोग दिन में से दो बार से अधिक मलत्याग करने जाते रहते हैं, उनको गठिया होने की सर्वाधिक संभावना होती है।
2. आलसी बनकर और शारीरिक श्रम या काम नहीं करके गतिहीन जीवन जीना।
3. सुबह खाली पेट चाय—कॉफी की चुश्कियों का आनंद लेकर।
4. लगातार-चिंता, तनाव, घृणा, धोखा, नफरत, ईर्ष्या, वहम, वियोग, घुटन, अनिश्चय, यौन असंतोष, पछतावा, रिश्तों में खटास आदि के कारण अंदर ही अंदर घुटते रहने से उत्पन्न रुग्ण मनोविकारों की आग में जलते रहकर।
5. डिब्बाबंद, बाजारू भोजन, चाट-मसाला, एनीमल फूड (जिसमें बिना श्रम या व्यायाम किये मांसाहार और जानवरों का दूध एवं दूध से बने सभी खाद्य तथा पेय का सेवन करना शामिल हैं), जंक फूड, डेयरी फूड, बेकरी फूड आदि का अस्वास्थ्यकर एवं असंतुलित आहार का सेवन करके।
6. गर्भ निरोधक गोलियों का बार-बार या अधिक सेवन करके।
7. उत्तेजना या मर्दाना ताकत बढाने वाली एलोपैथिक गोलियों का सेवन करके।
8. दर्द निवारक, थॉयराइड, हाई बीपी, कोलेस्ट्रोल, प्रोस्टेट, डायबिटीज, एंटीबैक्टीरियल, स्टेरॉइड आदि की एलोपैथिक दवाइयों का लगातार या अधिक मात्रा में सेवन करके।
9. लाल दंत मंजन, जर्दा, गुटका, शराब, धूम्रपान या तम्बाकू का किसी भी रूप में सेवन करके।
10. अनचाहे जीवन साथी के साथ न चाहते हुए जीवन गुजारने की विवशता को सहकर।
11. बिना श्रम या व्यायाम किये तेल और घी युक्त फैटी भोजन तथा अधिक मात्रा में ड्राई फ्रूट्स का सेवन करके।
इत्यादि।
विज्ञान क्या कहता है?
चिकित्सीय ज्ञान में तेजी से और लगातार क्रमिक उन्नति के बावजूद भी आधुनिक चिकित्सा विज्ञान द्वारा अधिकांश गठिया विकारों का पूरी तरह से इलाज यानी आरोग्य (cure) किये जाने का दावा नहीं किया जा सकता है। माना जाता है कि उपचार तब ही संभव है, जबकि जल्दी से जल्दी गठिया की पहचान की जा सके। यह प्राकृतिक सच्चाई है कि *विलम्ब उपचार को मुश्किल बनाता है।* जो अधिकतर गठिया रोगियों पर लागू होता है। अधिकांश गठिया विकारों में सभी विशिष्ट लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। सबसे दु:खद तो यह है कि अभी तक गठिया होने के कारणों का सही से पता लगाकर, गठिया रोग के होने की पुष्टि करने वाला कोई सटीक और विश्वसनीय नैदानिक परीक्षण (diagnostic test) उपलब्ध ही नहीं है। इसलिए शुरुआती समय में गठिया की पहचान करके, गठिया का सही निदान, उपचार करने वाले उपचारकों की योग्यता और अनुभव पर बहुत कुछ निर्भर करता है। शुरूआत में 99 फीसदी मामलों में दर्दनिवारक दवाइयों का सेवन गठिया रोग के अधिक गंभीर बनने की बड़ी वजह है।
सर्वश्रेष्ठ उपचार:
1-पहली महत्वूपर्ण बात: युवावस्था से ही प्राकृतिक जीवन जीने, प्राकृतिक खानपान करने और प्राकृतिक नींद लेने वालों के शरीर के जोड़ों के बीच रिक्त स्थानों में मौजूद द्रव्य या तरल पूरे दिन सामान्य रूप से परिचालित होता रहता है और रक्त के अल्ट्रा फिल्ट्रेशन से जोड़ों का ताजा द्रव्य भी बनता रहता है। एक व्यक्ति जितना अधिक सक्रिय रहता है, उतना अधिक उसके शरीर में द्रव्य या तरल का संचालन होता रहता है और शरीर का संचालन होते रहने से जोड़ों से हानिकारक अपशिष्ट (waste & toxic) पदार्थ अपने आप निकल जाते हैं। इससे जोड़ों को नुकसान नहीं होता है।
2-दूसरी महत्वूपर्ण बात: उपचार का सबसे अच्छा, महत्वपूर्ण और सटीक तरीका है-युवावस्था से ही शारीरिक थेरेपी यानी शारीरिक व्यायाम, चलते फिरते रहना, जिसे गतिशील व्यायाम भी कहते हैं। जिसमें नियमित रूप से घर के काम, नृत्य, तेज घूमना, दौड़ना, तैरना आदि शामिल हैं।
3-तीसरी महत्वूपर्ण बात: शरीर के संचालन का कोई बाजारू विकल्प नहीं है। शरीर का संचालन दौलत की ताकत से संभव नहीं। यह खुद ही करना होता है। जैसे एक स्त्री को मां बनने के लिये प्रसव पीड़ा से खुद ही गुजरना प्राकृतिक जरूरत है। उसी प्रकार से *शरीर का संचालन स्वस्थ बने रहने की प्राकृतिक जरूरत है।*
काउंसलिंग:
गठिया लगातार दर्द और असुविधा का कारण बन सकता है। यह स्थिति अक्सर तनाव, चिंता और अवसाद को बढ़ा सकती है। जिसका सामना करने के लिये गठिया पीड़ित व्यक्ति, उसकी देखरेख करने वाले तथा उसके साथ रहने वालों के व्यवहार में सकारात्मकता बहुत जरूरी होती है। जिसके लिये उनकी काउंसलिंग बहुत जरूरी होती है। मगर भारत में इस पहलु पर कतई भी ध्यान नहीं दिया जाता है। इस वजह से पेशेंट के तनाव और अवसाद का स्तर बढ जाता है, जो गठिया की तकलीफ को बढा सकता है।
होम्योपैथी और देशी जड़ी-बूटियां:
यदि रोगी गठिया की तकलीफ होते ही अविलम्ब किसी अनुभवी होम्योपैथ और जड़ी-बूटियों के उपचारक की सेवा ले सके तो बहुत संभावना होती है कि गठिया का निदान किया जा सकता है। जैसे-जैसे गठिया रोग पुराना होता जाता है, वैसे-वैसे गठिया रोग से रोगी के मुक्त या स्वस्थ होने के अवसर कम होते जाते हैं। जिसकी बड़ी वजह है-गठिया रोग हो जाने पर, गठिया रोगी गठिया के दर्द के कारण शारीरिक काम और व्यायाम नहीं कर पाता है। जिसके कारण उसका पाचन तंत्र गड़बड़ा जाता है। बीमार पाचन तंत्र जड़ी-बूटियों को पचाने में असमर्थ हो जाता है। इस अवस्था में पीड़ित व्यक्ति अत्यधिक तनावग्रस्त रहने लगता है, जिसके कारण अनेकों नये भावनात्मक, मानसिक, और शारीरिक विकार जन्म लेने लगते हैं। बावजूद इसके वर्तमान में गठिया के अधिकतर रोगियों को होम्योपैथी तथा देशी जड़ी-बूटियों के सेवन से ही सर्वाधिक परिणाम मिल रहे हैं।
शर्तिया, गारंटीड इलाज की चाहत:
गठिया रोग की वास्तविकता से अनभिज्ञ पेशेंट और उनके परिवारजन अकसर गठिया के शर्तिया, गारंटीड इलाज की चाहत रखते हैं। उनके भोलेपन को सुनकर दु:ख होता है। अनेक बार हंसी भी आती है। हकीकत तो यह है कि किसी भी बीमारी के ठीक होने की गारंटी देना गैर कानूनी है, लेकिन 3 महीने से अधिक पुराने गठिया रोगी की चिकित्सा, रोगी से कहीं अधिक एक सच्चे चिकित्सक के लिये चुनौती होती है। जिसके लिये उसे बहुत सा समय खर्चना पड़ता है। यहां यह समझना जरूरी होता है कि *समय का मतलब जीवन होता है!* आज के पूंजीवादी एवं स्वार्थी युग में जब लोग अपनों तक की परवाह और सेवा नहीं करते, कोई भी गैर व्यक्ति अपना समय यानी अपना जीवन मुफ्त में किसी गैर को नहीं दे सकता। गठिया रोगी दवाइयों की कीमत अदा कर देते हैं, लेकिन चिकित्सक के समय की वास्तविक कीमत कोई नहीं देना चाहता। यह भी उनके *सही उपचार नहीं होने का एक बड़ा कारण है।*
मैं गठिया रोगियों के कुछ गिने चुने केस लेता हूं, लेकिन उसके लिये सबसे पहले गठिया रोगी को सह स्वीकार करना होता है कि वह मुझ से शर्तिया और गारंटीड उपचार की जरा सी भी उम्मीद नहीं करेगा और उसे निरंतर उपचार लेना होगा। *जिसकी कोई समय सीमा नहीं। अनेक को ताउम्र उपचार लेना पड़ सकता है।* हां हमारी सेवाओं के सामान्यत: कोई दुष्प्रभाव नहीं होते हैं। जिन्हें मेरी सेवा मंजूर होती है, उनको मैं अपनी शर्तों पर अपनी सेवा देकर उनको यथासंभव रोगमुक्त करने की सम्पूर्ण कोशिश करता हूं। परिणाम तो प्रकृति और बहुत सी अन्य बातों पर निर्भर करते हैं।
जनहित में कुछ सुझाव: यदि आप चाहते हैं कि आपको गठिया नहीं हो या गठिया से जल्दी से मुक्ति मिल सके तो आप-
1. किसी काउंसलर की सलाह से मनोविकारों से मुक्त होकर, निरंतर व्यायाम करते हुए शरीर को सक्रिय रखें।
2. किसी हर्बलिस्ट की सलाह से शुद्ध निर्गुंडी अर्क, हरसिंगार अर्क, पित्त पापड़ा अर्क, गोरखमुंडी अर्क इत्यादि का स्वस्थ होने तक निरंतर सेवन करें। और
3. अपने शरीर के जोड़ों या किन्हीं अंगों का ऑपरेशन (surgery) करवाने से पहले सौ बार सोचें, क्योंकि ऑपरेशन पहला नहीं अंतिम विकल्प होता है।
निष्कर्ष:
गठिया का उपचार केवल शारीरिक उपचार तक ही सीमित नहीं है। मानसिक स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक समर्थन का एक महत्वपूर्ण स्थान है, जो रोगियों को उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने और दर्द और तनाव से निपटने में मदद करता है। यह समग्र उपचार दृष्टिकोण रोगियों को उनकी स्थिति के साथ बेहतर तरीके से जीने में सहायता करता है।
लेखकीय अनुरोध:
याद रखें कि जनहित ऐसे आलेख लिखने में लेखक का अनमोल वक्त लगता है। अत: यदि आपको उक्त जानकारी अच्छी लगी हो तो इसे अपने मित्रों को शेयर करें और अगर आपके मन में इस बारे में या किसी अन्य तकलीफ के बारे में कोई अन्य सवाल हैं या आपको और इसी प्रकार की जानकारी आगे पढने के लिये मेरे हेल्थकेयर वाट्सएप नम्बर: 85-619-55-619 से जुड़कर अपने सवालों/सुझावों से अवगत करवाकर सहयोग करें।
— डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा
मूण्डियारामसर, सिरसी-बेगस रोड, जयपुर-302041, राजस्थान