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अरमानों के पंख

September 23, 2017 08:22 PM

— शिखा शर्मा
अरमानों की तितलियों के पंख मरोड़ दिए
मेरे पंखों को अपने रंग में रंगा था जिसने
इंद्रधनुषि सपने दिखाकर
कतरा कतरा ख्वाब नोंच लिए उसने
उस रोज मिला था वो
चमकती आंखों से नूर बरसाया था
हाथ थाम कर मेरा
अपनों का अहसास दिलाया था

पंख सहलाकर साथ उड़ान भरी
आसमां पर जाकर
काटे पंख, जमीं पर फिर गिराया उसने
ज़माने को हमारा साथ गंवारा न था
वरना
फूलों को खिलना सिखाया था हमने
कुछ बंदिशों में होगा वो
शायद!
मेरी मोहब्बत को खुदा बताया था जिसने

 
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