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संपादकीय

इरफान के विवेक_की पराकाष्ठा को परख गई प्रकृति

April 30, 2020 06:20 PM

इंकलाब_नागपाल

  मैं पेशेगत कलम नफ़ीस नहीं हूं कि हर सैलिब्रटी के निधन पर उनके लिए श्रद्धांजलि लिखना मेरे लिए जरूरी हो, लेकिन इरफान खान के लिए न लिखना अपनी कलम को अर्थहीन साबित करना है, इसलिए लिखना जरूरी है। जिस तरह से इरफान खान ने कैंसर के खिलाफ युद्ध लड़ा उसे मैं दिल से सैल्यूट करता हूं। आत्महत्या करना आसान है व बार्डर पर जान दे देना भी आसान है, लेकिन ऐसी बीमारी के साथ जीना जिसका अंत सिर्फ मौत है बहुत कठिन होता है। यह ‘आनंद’ फिल्म में राजेश खन्ना का सर्वश्रेष्ठ अभिनय नहीं था कि प्रशंसा की जाये और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया जाए, यह इरफान खान की जिंदगी की वास्तविकता थी, जिसके लिए कोई पुरस्कार नही बना, कोई वीरचक्र नही बना ... आप अचानक नींद से उठते हैं और आपको पता लगता है कि आपका जीवन डगमगाने लगा है। यह टवीट उन्होंने लिखा था तो किस मानसिकता के साथ लिखा था उस मानसिकता को यह कलम अच्छी तरह से जानती है।
इरफान का अर्थ होता है विवेक और ज्ञान... कुदरत हर व्यक्ति का विवेक जानने एक बार ज़रूर उसके समक्ष आती है और लगभग हर बार निराश होकर लौटती है बहुत कम होता है जब उसे हर व्यक्ति में विवेक के या इरफान के दर्शन हों। बहुत से लोग ऐसी परिस्थितियों में डोल जाते है। इरफान को ख़ुदा ने भर भर के विवेक दिया था, लेकिन विवेक की हर परीक्षा में खरा उतरने के बाद प्रकृति पराकाष्ठा पर उतर आई व इरफान के विवेक की पराकष्ठा को जानने निकल पड़ी।

इरफान का अर्थ होता है विवेक और ज्ञान... कुदरत हर व्यक्ति का विवेक जानने एक बार ज़रूर उसके समक्ष आती है और लगभग हर बार निराश होकर लौटती है बहुत कम होता है जब उसे हर व्यक्ति में विवेक के या इरफान के दर्शन हों। बहुत से लोग ऐसी परिस्थितियों में डोल जाते है। इरफान को ख़ुदा ने भर भर के विवेक दिया था, लेकिन विवेक की हर परीक्षा में खरा उतरने के बाद प्रकृति पराकाष्ठा पर उतर आई व इरफान के विवेक की पराकष्ठा को जानने निकल पड़ी। 

इरफान ने कुदरत की परम पराकाष्ठा को भी निराश न होने दिया। बुधवार को प्रकृति को समझ आ गई होगी कि इरफान जैसे लोग भी इसी धरती पर होते हैं। दो साल निश्चित मौत के साथ जीना इस कालम को पढ़ रहे पाठकों के लिए कल्पना करना संभव नहीं है। ‘पान सिंह तोमर’ की तरह भागा जा सकता है, ‘लंच बाक्स’ का अभाव सहा जा सकता है ‘पीकू’ भी बना जा सकता है व ‘तलवार’ की धार को भी सहन किया जा सकता है, साधारण घर में आकर ‘लाइफ इन मैट्रो’ बिताई जा सकती है और ‘करीब करीब सिंगल’ भी रहा जा सकता है ...लेकिन जहां जिंदगी की कोई ‘गुंजाइश’ न बची हो वहां कहां लड़ा जा सकता है ... इरफान का ‘जज्बा’ कि ‘साहेब बीवी’ की खुशहाल जिंदगी में कैंसर जैसे ‘गैंगस्टर’ से लड़ा ... हर उस लड़ाई को लड़ना आसान होता है जहां जीत नजर आ रही हो या जीत की आखिरी उम्मीद नजर आ रही हो, लेकिन निश्चित हार के बावजूद लड़ना बहुत कठिन है … जिंदगी कोई किक्रेट का खेल नही
इरफान खान की शख्सियत इतनी तरल थी कि करैक्टर के किसी भी सांचे में तुरंत ढल जाती ... अभिनय उनका लाइव होता था ... लाइव का अर्थ होता था कि आपको लगता कि आपके सामने ‘पान सिंह तोमर’ खड़ा है, आप भूल ही जाते थे कि यह इरफान खान है एक अभिनेता ... डायरेक्टर के सामने जब भी ऐसी जरूरत आती कि उसे अभिनेता नहीं असली ‘पान सिंह’ जैसा व्यक्ति ही चाहिए तो पहली आप्शन इरफान खान ही होती … उनका समय न मिलने पर ही दूसरी ऑप्शन आज़मानी पड़ती ... लेकिन अब दूसरी ऑप्शन ही आज़मानी पड़ेगी ... इरफान उन्हें कभी समय न दे पायेगा ... देखते हैं उनकी जगह को कौन लेता है या उनके जीवन पर बनी फिल्म मे इरफान की भूमिका कौन निभाता है ... खैर वो सिर्फ भूमिका होगी, इरफान नहीं मिलेगा, फिर नहीं मिलेगा।

 
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