संजय मिश्रा
आजकल प्रॉपर्टी मालिक एवम किरायेदार के बीच कोर्ट केस आम बात हो गई है। किरायेदार द्वारा प्रॉपर्टी खाली नहीं करना एवम किरायनामा या लीज डीड के दम पर कोर्ट में उसी प्रॉपर्टी पर अपनी अनुचित मालिकाना हक की दावेदारी और लंबे कानूनी विवाद के डर से कई लोग प्रॉपर्टी किराये पर देने से परहेज करते हैं।
लेकिन, उपरोक्त (किरायनामा) के अलावा एक और तरीका है जिसके तहत बिना किसी डर के प्रॉपर्टी मालिक अपने प्रॉपर्टी को किराया पर दे सकते हैं, और वो है, लीव ऐंड लाइसेंस अग्रीमेंट ।
कई लोग सोचते हैं कि, लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट एवम रेंट एग्रीमेंट (किरायानामा) ये दोनों एक ही चीज़ हैं । हालांकि दोनों का मकसद मकान मालिक और किरायेदार के हितों की रक्षा करना ही है, लेकिन फिर भी दोनो में कुछ समानताओं के साथ कुछ मूलभूत अंतर भी है, जैसे :
*लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट इंडियन ईज़मेंट एक्ट 1882 के तहत आता है जिसमे किरायेदार प्रॉपर्टी पर मालिकाना हक नहीं जता सकता क्योंकि यह एग्रीमेंट भारत के रेंट कंट्रोल एक्ट (किराया नियंत्रण अधिनियम) के तहत नहीं आता है। इस एग्रीमेंट में मकान मालिक किरायेदार को प्रॉपर्टी का लाइसेंस देता है और प्रॉपर्टी छोड़ देता हैं। उदाहरण के लिए आप कोई ज़ूम कार या युलु बाइक किराये पर लेते हैं, तो आप उसका इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन यह दावा नहीं कर सकते की आप उसके मालिक हैं। वहीं बात जब रेंट एग्रीमेंट की आती है तो किरायेदार एक ही जगह पर कम से कम 10 सालों तक रहने के बाद उस प्रॉपर्टी पर मालिकाना हक जता सकते हैं। रेंट कंट्रोल एक्ट ऑफ इंडिया किरायेदारों को लंबी अवधि के लिए किराए पर ली गई संपत्ति पर कब्जा करने का अधिकार देता है।
*लीज एग्रीमेंट या रेंट एग्रीमेंट के तहत कानून द्वारा किरायेदारों को कुछ अधिकार प्रदान किए गए है, जबकि लीव एंड लाइसेंस के तहत अधिकार केवल करार/एग्रीमेन्ट से निमंत्रित होते हैं।रेंट एग्रीमेंट, रेंट कंट्रोल कानून के तहत आता है इसलिए यह किरायेदार को ज़्यादा हक देता हैं और ज़्यादा उसी के पक्ष में होता है। ये मकान मालिक को ज़्यादा किराया वसूलने से रोकते हैं, और किरायेदार को प्रॉपर्टी पर मालिकाना हक देते हैं। लेकिन लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट मकान मालिक के पक्ष में ज़्यादा होता है क्योंकि इससे किरायेदार किसी भी हालत में मकान मालिक की प्रॉपर्टी को नहीं हथिया सकता। प्रॉपर्टी में कोई बड़े बदलाव भी नहीं किये जा सकते हैं।
*किरायेदार को पूरा पजेशन नहीं :
लीव ऐंड लाइसेंस अग्रीमेंट के तहत मकान मालिक के पास प्रॉपर्टी में प्रवेश कर इसका इस्तेमाल करने का अधिकार होता है और जिसे प्रॉपर्टी का लाइसेंस दिया गया हो, यानी किरायेदार इसका विरोध नहीं कर सकता। लेकिन, लीज या रेंट अग्रीमेंट के तहत लैंडलॉर्ड तय अवधि के लिए अपनी प्रॉपर्टी को पूरी तरह इसे लीज पर लेनेवाले के हाथों सौंप देता है। मतलब कि लीज या रेंट अग्रीमेंट से इतर लीव ऐंड लाइसेंस अग्रीमेंट में प्रॉपर्टी के अहाते का अधिकार किरायेदार के पक्ष में नहीं होता है। पजेशन दिखाने के लिए कॉन्ट्रैक्ट में एक अतिरिक्त लाइन जोड़ी जाती है कि मकान मालिक के पास भी घर की चाबियां रहेंगी।
*प्रॉपर्टी बेचे जाने की सूरत में लीज पर कोई असर नहीं पड़ता है जबकि लीव ऐंड लाइसेंस अग्रीमेंट के तहत किराए पर दी गई प्रॉपर्टी अगर बिक जाए तो पुराने मकान मालिक और किरायेदार के बीच का अग्रीमेंट स्वतः खत्म हो जाता है।
नोटिस पीरियड :
रेंट या लीज एग्रीमेंट में मकान मालिक या किरायेदार में जो भी लीज अग्रीमेंट को खत्म करना चाहता है, उसे दूसरे को नोटिस देना पड़ता है। नोटिस पीरियड खत्म होने के बाद ही लीज अग्रीमेंट भी खत्म हो सकता है जबकि लीव ऐंड लाइसेंस अग्रीमेंट में कोई नोटिस पीरियड की जरूरत नहीं होती है।
समझौते का उल्लंघन होने पर : समझौते का उल्लंघन होने की स्थिति में रेंट या लीज अग्रीमेंट किसी भी याचिका या बहस पर भारी पड़ती है जबकि लीव ऐंड लाइसेंस अग्रीमेंट के तहत किसी भी कोर्ट में प्रॉपर्टी के नुकसान के लिए मुआवजे को लेकर मुकदमा किया जा सकता है।
*रेंट या लीज एग्रीमेंट के तरह ही लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट को भारत मे कहीं भी कानूनी पते के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि यह एक कानूनी दस्तावेज़ होता है ।
*रेंट या लीज एग्रीमेंट में किरायेदार या प्रॉपर्टी मालिक में से किसी के मृत्यु होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि मृतक के उत्तराधिकारी उसी एग्रीमेंट पर काम करने के अधिकारी होते हैं। लेकिन लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट में किसी एक के मृत्यु होने पर ये एग्रीमेंट खुद ब खुद समाप्त हो जाता है और इसकी कोई कानूनी वैधता नही रह जाती है।
* रेट एग्रीमेंट के तहत, जब तक वे लोग सही समय पर किराया देते रहेंगे, उन्हें निकाला नहीं जा सकता है। अगर शर्तों में किराया वृद्धि का जिक्र नही है तो प्रॉपर्टी मालिक किराया बढ़ा भी नहीं सकता। लेकिन लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट के तहत तय समय पर प्रॉपर्टी छोड़ना ही होता है।
किरायेदार और मकान मालिक के अधिकार
रेंट एग्रीमेंट, रेंट कंट्रोल कानून के तहत आता है इसलिए यह किरायेदार को ज़्यादा हक देता हैं और ज़्यादा उसी के पक्ष में होता है। ये मकान मालिक को ज़्यादा किराया वसूलने से रोकते हैं, और किरायेदार को प्रॉपर्टी पर मालिकाना हक देते हैं। लेकिन लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट मकान मालिक के पक्ष में ज़्यादा होता है क्योंकि इससे किरायेदार किसी भी हालत में मकान मालिक की प्रॉपर्टी को नहीं हथिया सकता। प्रॉपर्टी में कोई बड़े बदलाव भी नहीं किये जा सकते हैं।
निष्कर्ष :
हालांकि उपरोक्त सभी एग्रीमेंट प्रॉपर्टी मालिक एवम किरायेदारों के बीच एक लछमन रेखा खींचती है लेकिन फिर भी किराया कानून, कोर्ट में किरायेदारों को ज्यादा मजबूत बनाता है, जबकि लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट प्रॉपर्टी मालिक को सही मायने में मालिक बनाकर रखता है और कोर्ट में कानूनी तौर पर किरायेदारों का पक्ष नही लेता है क्योंकि किराया कानून के तहत किरायेदारों को मिलने वाले विशेषाधिकार इस लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट पर लागू नहीं होते। अंत में यही कह सकते है की रेंट एग्रीमेंट वाली सभी पुरानी धाराओं को इस लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट नाम की नई बोतल में डाल दे, आप टेंशन फ्री रहेंगे।(संजय मिश्रा आरटीआई के कर्मठ कार्यकर्ता और पत्रकार हैं)