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एस्ट्रोलॉजी

इस बार पूरे 9 दिन शुभ रहेंगे नवरात्र, 21 सितंबर से शुक्ल पक्ष से आश्विन शरद् नवरात्र आरंभ

September 19, 2017 05:18 PM
मदन गुप्ता सपाटू ज्योतिर्विद्, चंडीगढ़ ,98156-19620
Madan Gupta Sapatu
   
21 सितंबर , वीरवार से आश्विन मास के शुक्ल पक्ष के  नवरात्र आरंभ हो रहे हैं जो 29 सितंबर ,शुक्रवार  तक रहेंगे। दशमी 30 तारीख को पड़ने से दशहरा शनिवार को होगा। 
आदिशक्ति के 9 स्वरुपों की आराधना का यह पर्व प्रथम तिथि को क्लश स्थापना से आरंभ होता है।
नवरात्र के नौ दिनों में तीन देवियों - महाकाली, महालक्ष्मी तथा महा सरस्वती एवं दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं।शास्त्रों में दुर्गा के नौ रुप बताए गए हैं। इस नवरात्र में श्रद्धालु अपनी शक्ति, सामर्थ्य व समयानुसार व्रत कर सकते हैं। इस अवधि में क्रमशः शैल पुत्री, ब्रहमचारिणी,चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री देवी की पूजा की जाती है।
नवरात्र जीवन शैली को बदलने, चेतना जगाने , स्थिरता, दृढ़ता, शांति, समर्पण, नियंत्रण, समृद्धि, सामंजस्य, सेवाभाव, कर्मशीलता, सहनशीलता, मानसिक व शारीरिक अनुशासन, कर्मशीलता, एकाग्रता, मातृशक्ति को पहचानने  और इसे एक नौ दिवसीय  पर्व के रुप में  मनाने का अवसर है जब ऋतु परिवर्तन दस्तक दे रहा होता है।
नवरात्र की तिथियां
21 सितंबर:प्रतिपदाः वीरवारः घट स्थापना एवं देवी के शैलपुत्री रुप की पूजा। 
22 सितंबर:द्वितीया: शुक्रवार: ब्रहमचारिणी माता की पूजा। 
23 सितंबर: तृतीयाः शनिवार : चंद्रघंटा रुप की पूजा ।
24 सितंबर:चतुर्थी: रविवार: कूष्मांडा स्वरुप की आराधना । 
25 सितंबर: पंचमी: सोमवार :भगवान कार्तिकेय की माता स्कंदमाता का पूजन।
26 सितंबर: षष्ठी:मंगलवार: कात्यायनी माता की पूजा करने से विवाह संबंधी समस्याएं निपटती हैं। 
27 सितंबर:सप्तमीः बुधवार: कालरात्रि की पूजा का विधान है। सरस्वती पूजन।
28 सितंबर: अष्टमी:वीरवार: महागौरी की पूजा तथा कन्या पूजन। 
29 सितंबर: नवमीःशुक्रवार: सिद्धिदात्री स्वरुप की पूजा से नवदुर्गा पूजा का अनुष्ठान पूर्ण हो जाएगा। 
30 सितंबर: दशमीः शनिवार : दुर्गा जी की मूर्ति का विसर्जन , अपराजिता पूजन ,शस्त्र पूजन तथा विजय दशमी

घट अथवा क्लश स्थापना का शुभ समय हस्त नक्षत्र  विशेष लाभदायक
प्रातः सवा 06 बजकर 03बजे से सवा 08 बजकर 22 मिनट तक  
अभिजीत मुहूर्त में 11 बजकर 46 मिनट से 12.30 बजे तक 
प्रथम दिवस पर माता शैलपुत्री की आराधना की जाती है।  इनका संबंध सूर्य से भी माना गया है। अतः जिन्हें हडिड्यों का रोग सताता है, उन्हें आज अवश्य मनोकामना की प्रार्थना करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त जिनके जीवन में अस्थिरता है, उन्हें दृढ़ता लाने के लिए अवश्य आराधना करनी चाहिए।
कैसे करें घट स्थापना  ?
प्रातःकाल स्नान करें,  लाल परिधान धारण करें । घर के स्वच्छस्थान पर मिटट्ी से वेदी बनाएं। वेदी में जौ और गेहूं दोनों बीज दें। एक मिटट्ी या किसी धातु के कलश पर  रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं। कलश पर मौली लपेटें। फर्श पर अष्टदल कमल बनाएं। उस पर कलश स्थापित करें । कलश में गंगा जल, चंदन, दूर्वा, पंचामृत, सुपारी, साबुत हल्दी, कुशा, रोली, तिल, चांदी डालें । कलश के मुंह पर 5 या 7 आम के पत्ते रखें।  उस पर चावल या जौ से भरा कोई पात्र रख दें । एक पानी वाले नारियल  पर लाल चुनरी या वस्त्र बांध कर लकड़ी  की चौकी या  मिटट्ी की बेदी पर स्थापित कर दें । बहुत आवश्यक है नारियल को ठीक दिशा में रखना। इसका मुख सदा अपनी ओर अर्थात साधक की ओर होना चाहिए। नारियल का मुख उसे कहते हैं जिस तरफ वह टहनी से जुड़ा होता है। यह गलती कई बार अज्ञानतावश कई सुयोग्य कर्मकांडी भी कर जाते हैं परंतु आप इसे शास्त्र सम्मत विधि अनुसार ही करें। और पूजा करते समय आप अपना मुंह सूर्योदय की ओर रखें । इसके बाद गणेश जी का पूजन करें। वेदी पर लाल या पीला कपड़ा बिछा कर  देवी की प्रतिमा या चित्र रखें। आसन पर बैठ कर तीन बार आचमन करें । हाथ में चावल व पुष्प लेकर माता का ध्यान करें और मूर्ति या चित्र पर समर्पित करें। इसके अलावा दूध, शक्कर, पंचामृत, वस्त्र, माला, नैवेद्य, पान का पत्ता, आदि चढ़ाएं। देवी की आरती करके प्रसाद बांटें और फलाहार करें।
जौ या खेतरी बीजना
इसी समय मिटटी के गमले या मिटटी की बेदी पर जौ बीज कर , आम के पत्तों से ढंक दे, तीसरे दिन अंकुर निकल आएंगे। जौ नौ दिनों में बड़ी तेजी से बढ़ते हैं और इसकी हरियाली परिवार में धन धन्य, सुख समृद्धि का प्रतीक है ताकि संपूर्ण वर्ष हमारा जीवन हरा भरा रहे।
अख्ंाड  ज्योति एवं पाठ
यदि संभव हो और सामर्थय भी हो तो देसी घी का अखंड दीपक जलाएं। इसके आस पास एक चिमनी रख दें ताकि बुझ न पाए। दुर्गा सप्तशी का पाठ करें।  
क्या है दुर्गा सप्तशी में?
इसमें 700 श्लोक ब्रहमा, वशिष्ठ व विश्वामित्र द्वारा रचित हैं ,इसीलिए इसे सप्तशी कहते हैं ।इसमें 90 मारण के, 90 मोहन के, 200 उच्चाटन के, 200 स्तंभन के,60- 60 विद्वेषण के कुल मिला कर 700 श्लोक हैं। यह तंत्र व मंत्र दोनों का अद्वितीय संपूर्ण ग्रंथ है ।इनका दुरुपयोग न हो इसलिए , तीनों विद्वानों ने इन्हें श्रापित भी कर दिया। अतः पहले शापोद्वार के 20 मंत्र  पढ़ कर ही दुर्गा सप्तशी का पाठ आरंभ होता है।
व्रत
पूरे नौ दिन अथवा सप्तमी ,अष्टमी या नवमी पर निराहार उपवास रखा जा सकता है। इस मध्य केवल फलाहार भी किया जा सकता है।
प्रकृति और नवरात्र
भारत में हर पर्व ऋतु, इतिहास, भूगोल, आकाशीय ग्रह एवं नक्षत्र परिवर्तन, विज्ञान, संस्कृति व परंपरा आदि से जुड़ा हुआ है। नवरात्र वस्तुतः दो ऋतुओं का संगम है जब 6 महीने बाद ऋतु परिवर्तन होता है। छः मौसम में गर्मी व सर्दी ही मुख्य रुप से मानव जीवन को प्रभावित करते हैं। सर्दी के समापन और गर्मी के आगमन पर वासंत नवरात्र भारत में मनाए जाते हैं। शरद ऋतु के आगमन पर शरद् नवरात्र मनाए जाते हैं।  ऋतु परिवर्तन पर मन, मस्तिश्क, भौगोलिक, आध्यात्मिक, प्राकृतिक  बदलाव स्वाभाविक है। हिंदू परंपराएं , मान्यताएं, पर्व एवं व्रत सभी  वैज्ञानिक आधार एवं सूर्य व चंद्रमा दोनों की आकाशीय गति से जुड़े हुए हैं। इसीलिए ज्योतिषीय गणना का इन त्योहारों में विशेष महत्व रहता है। पर्वो की तिथियां , दिन व समय हर साल समान  नहीं मिलेंगे। नवरात्र से शरीर में नवजीवन का प्रवाह होता है। विशेष आयोजन - उपवास , पूजापाठ, धार्मिक अनुष्ठान, गरबा जैसे  नृत्य समारोह  आदि शारीरिक ऊर्जा एवं सफूर्ति प्रदान करते हैं।  ऋतु परिवर्तन से जुड़े नवरात्र और इसके  व्रत की अनुशंसा आयुर्वेद भी करता है।
नवरात्र  इन सभी तथ्यों का संधिकाल है। इसी लिए वर्श में 4 नवरात्र माने गए हैं जो 3-3 महीनों के अंतराल पर आते हैं। आश्विन तथा चैत्र नवरात्रों के अलावा आशाढ़ व  पौष मास में भी नवरात्र होते हैं जिन्हंे गुप्त नवरात्र कहा जाता है। ऋतु परिवर्तन के परिचायक ये चारों नवरात्र ,सूक्ष्म तथा चेतन जगत में आई तरंगों , भौगोलिक हलचलों आदि से मानव जीवन पर पड़ रहे प्रभाव आदि को बड़ी सूक्ष्मता से आकलन कर, मौसम के साथ बदलने का ज्ञान मानव को देते हैं कि किस तरह प्राकृतिक परिवर्तन के साथ साथ शारीरिक परिवर्तन भी किया जा सके और प्रकृति के अनुसार जीवन शैली को बदला जाए।  शरीर के नौ द्वारों - मुख, दो नेत्र, दो कान, दो नासिका, दो गुप्तेंद्रिय को नवरात्र के 9 दिनों में संयम, साधना, संकल्प ,व्रत आदि से नियंत्रित किया जाता है। 
ज्योतिष व नवरात्र
ज्योतिषीय एवं धार्मिक दृष्टि से भी इस पर्व को शुभ माना जाता है और श्राद्ध पक्ष में वर्जित कार्यक्लापों जैसे विवाह, सगाई, नया व्यवसाय, वाहन क्रय, भवन निर्माण, चुनावों का नामांकन भरना इत्यादि जैसे  कृत्य  नवरात्र लगते ही आरंभ कर दिए जाते हैं।
 
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