हरजीत सिंह ग्रेवाल
कम्युनिस्ट देश की सांस सुखा के चला कोरोना वैटीकन की सरजमीं सहित आदमी बादशाहत वाले यूरोपीय देश को मसलता हुआ अनसुखावी मौतों से दुनिया की सुपर पावर को चक्करों में डाल रहा है। आलमी सफर के दौरान इस कोरोने ने मक्के वाले देश ही नहीं बख्र्शे तथा महाभारत वाली धरती पर हल्ला बोल दिया जहां इस लाइलाज वायरस को झाड़ फूंक ‘गौ मूत’ से करने संबंधी नेक नुस्खों के प्रवचन हो रहे हैं।
परमाणु व रसायनिक बम, मारू हथियार व असमान चीरती मिसाइलें बनाने वाला 3डी-5जी युग का तेज दिमाग मशीनी इंसान तथा विश्व की ऐटमी शक्तियां आज एक अदृश्य व सुक्ष्म से वायरस के आगे लाचार हो कर बेबस हो गईं।
कुदरत की इस कोरोना करोपी ने अपने आप को खब्बी खान समझने वाली ताकतों तथा खुद को खुदा समझने वाली बड़ी शक्तियों से तीसमार खानों को चित्त कर दिया।
सोचने, समझने तथा विचार करने वाली बात यह है कि इस कोरोना ने देशों विदेशों के भीतर ‘आदम से दानव’ बन कर दिनबदिन नए शारीरक व मानसिक अपराधों में फंसे इस गुनाहगार कलयुगी मनुष्य को उस की निजी ललक, अस्तित्व तथा करनी का कड़वा अहसास भी करवा दिया।
सदियों से कादर की साजी निवाजी इस अदुती, बेअंत, बहुरंगी, कुदरती, खूबसूरत सृष्टि की गोद का आनंद मानने की जगह ‘बलिहारी कुदरत वसिया’ में खलल डालना, गंदला करने, पलीत करने तथा उल्टी चाल चलने से हाल की घड़ी को रोक कर रख दिया है तथा भविष्य के प्रति सोचने के लिए मजबूर कर दिया। साल 2008 की ओलंपिक खेल वाले कुदरती वरतारे के मुताबिक वर्षा पडऩे से रोकने के लिए राकेटों के सहारे वर्षा को टालने वाले तथा रात को शहर के ऊपर रोशनी के लिए नया नकली चांद चढ़ाने वाले देश भी कुदरत के करोनामयी कहर के आगे ढहिढेरी हो गए।
साथ ही सदियों से कादर की साजी निवाजी इस अदुती, बेअंत, बहुरंगी, कुदरती, खूबसूरत सृष्टि की गोद का आनंद मानने की जगह ‘बलिहारी कुदरत वसिया’ में खलल डालना, गंदला करने, पलीत करने तथा उल्टी चाल चलने से हाल की घड़ी को रोक कर रख दिया है तथा भविष्य के प्रति सोचने के लिए मजबूर कर दिया। साल 2008 की ओलंपिक खेल वाले कुदरती वरतारे के मुताबिक वर्षा पडऩे से रोकने के लिए राकेटों के सहारे वर्षा को टालने वाले तथा रात को शहर के ऊपर रोशनी के लिए नया नकली चांद चढ़ाने वाले देश भी कुदरत के करोनामयी कहर के आगे ढहिढेरी (धराशाही) हो गए। यहां तक कि कुदरत की किरत मनुष्य के बदल के तौर पर मनसुई ज्ञान (आरटीफिशल इंटेलीजैंस) से दुनिया को मानवी रोबोट देने वाली सुपर पावर त्राहि त्राहि कर उठी।
पाखंड व दिखावे की चौधर, मानवी कदरों कीमतों से कोसों दूर पदार्थवादी युग के इस कलयुगी मनुष्य ने मास, जानवर खाने, चोरी चकारियों, मक्कारियों, लूटखसूट, झूठ, दुश्मनी की सभी लक्ष्मण रेखाओं को पार कर दया, किरत, कमाई, कर्म धर्म, सादगी, सहज संयम को अपनाने की जगह ठग्गी ठोरी, लोभ लालच को ही नित्तनेम बना लिया।
कुदरत की इस संयम करोपी की यह झलक कादर के किसी बड़े भविष्य कहिर की तरह इशारा भी हो सकती है। सहज, संयम, सरलता, सच्चाई तथा सादगी से अब भविष्य में समझदारी का दामन पकडऩा इस दिमागी मानव के हाथ में है कि इंसानी जीवन के लिए रेगिस्तान, बीयाबान की आवश्यकता है या सर्वसंपन्न नखलिसतान की, क्योंकि कुदरत इतनी बड़ी ताकतवर है कि नदिया विचि टिब्बे देखाले, थली करे असगाह, कीड़ा थापि देई पातशाही, लसकर करे सुआह।
सुखे कयू दुख अगला मनमुखि बुझ न होई अनुसार जहां इस कुदरती करोपी ने आम लोगों को दुख दिया है ने वही पूरी कुदरती माहौल में वसने, सच्चा समाजी वर्ताव करने, बलिहारी कुदरति को मानने, पांच विकारों से पीछा छुड़ा कर असली बंदे बनने की संकेतक चितावनी भी है। इस करोपी के कारण स्वयबंदी चल रहे बंदे को शायद अब अहसास हो जाना चाहिए कि कादर ने लुकाई सादगी में रहि कर परिवार के साथ समय बिताने, हाथों से भोजन तैयार करने, शराब नशों तथा डिब्बा बंद खाद पदार्थों से बिना गुजारा होने, कारों जहाजों के बिना कुछ समय के लिए जिंदगी को सहिज ठहिराव देने, जीयो व जीने दो के मुताबिक कायनात से सहि जीवन जीने, धन दौलत व कुदरती स्रोतों का प्रयोग करने की बात सिखा दी है। (हरजीत सिंह ग्रेवाल वरिष्ठ पत्रकार हैं और वर्तमान में पंजाब के सूचना व जनसंपर्क विभाग में बतौर संयुक्त निदेशक कार्यरत हैं 76588-00000)