— एफपीएन
14 जून की उस रहस्यमई रात में हुआ क्या सुशांत के साथ? सबके मन में यह सवाल बार-बार उठ रहा है। राष्ट्रीय मीडिया हालांकि शुरू से ही उसकी मौत को आत्महत्या मान लेने की दलीलें पेश करता रहा है। किंतु सोशल मीडिया सुशांत की इस मौत को सुनियोजित हत्या सिद्ध करने पर तुला है। व्हाट्सएप, फेसबुक, टि्वटर तथा यूट्यूब पर सुशांत राजपूत पिछले 2 महीनों से छाया हुआ है। उधर, महाराष्ट्र व बिहार की सियासत भी इस मुद्दे पर पूरी तरह गरमाई हुई है। दोनों प्रदेशों का पुलिस प्रशासन अपने-अपने दांव-पेंच अपना पक्ष मजबूत करता दिखाई दे रहा है। देश का गृह विभाग अब भी कहीं चूक गया तो बेंगलुरु जैसे अराजकता के मंजर हर शहर और हर गली में दिखाई दे सकते हैं, जहां दंगाइयों द्वारा या तो नेताओं के घर जलाए जाते हैं और या पुलिस थाना। अगर कभी ऐसा होता है तो यह देश का दुर्भाग्य ही माना जाएगा।
निसंदेह सुशांत सिंह राजपूत बॉलीवुड का एक ऐसा चमकता सितारा था जिसने अपनी लगन- मेहनत के बूते पर एक अच्छी पोजीशन हासिल की। बीटेक का विद्यार्थी अदाकारी के कौन-कौन से मुकाम हासिल कर सकता है, वह भी बिना किसी गॉडफादर के, यह सुशांत के इलावा कोई नहीं बता सकता। उसकी निरंतर बढ़ती लोकप्रियता ने भी बहुत से लोगों को शक के दायरे में ला खड़ा किया है। वैसे भी बॉलीवुड में अंडरवर्ल्ड का दबदबा आज कल या परसों से नहीं है, इस दबदबे को स्थापित हुए बरसों क्या दशकों बीत गए। कहा तो यहां तक जाता है कि बॉलीवुड की आधी से ज्यादा फिल्मों में अंडरवर्ल्ड की कोई भूमिका अवश्य होती है। मुंबई पुलिस या देश की तमाम एजेंसियां इस गठजोड़ को तोड़ पाने में सिरे से नाकाम रही है। आरोप तो यह भी लगाए जाते रहे हैं कि मुंबई पुलिस इस गठजोड़ को ना सिर्फ स्वीकार कर चुकी है बल्कि उनकी गलतियों पर लीपापोती करने की जिम्मेदारी ही निभाती आ रही है। मौका-ए-वारदात से पुलिस ने हालांकि आवश्यक सबूत तो जुटाए ही होंगे। सुशांत राजपूत के घर में रहने वाले अन्य लोगों के बयान भी लिए जा चुके हैं। सुशांत की गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती इस मामले में शुरू से ही सीबीआई जांच की मांग करती आ रही है। शायद उसे अंदेशा था कि मुंबई पुलिस की जांच उसके इर्द-गिर्द ही घूम सकती है। इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि यदि केस सीबीआई के हाथ में ना दिया जाता को पुलिस रिया चक्रवर्ती को ही बलि का बकरा बना कर केस समाप्त कर देती। दरअसल इस समय केस की सबसे कमजोर कड़ी भी उसे ही माना जा रहा है, जिसे ना सिर्फ तोड़ना आसान है बल्कि संदेह के घेरे में आए बाकी पावरफुल लोगों को बचाया भी जा सकता है। सुशांत की मौत के इस रहस्य पर से पर्दा उठना आवश्यक भी है, क्योंकि यदि अब की बार भी दूध का दूध-पानी का पानी ना हुआ तो फिर ना जाने कितने कीमती जाने और चली जाएं। बॉलीवुड की चकाचौंध से आकर्षित होकर दूर दराज के गांवों से युवा यहां किस्मत अजमाने आते हैं। सपनों का शहर कहलाने वाले इस शहर ने अनेक प्रतिभावान कलाकारों को असमय निगल लिया है। मुंबई पुलिस सब कुछ कर सकने में सक्षम होने के बावजूद एक असहाय मानव की तरह मूकदर्शक बनी रहती है। सोचने वाली बात यह है कि अगर कलाकार ने आत्महत्या भी की है तो क्या उसकी वजह तलाशना पुलिस जांच का हिस्सा नहीं होना चाहिए? अटल सच्चाई यह है कि कोई मरना नहीं चाहता। जब तक कि उसके जीने के सारे रास्ते बंद ना हो जाएं। मुसीबतों से घिर जाने पर बहुत से लोग आत्महत्या के बारे में सोचते हैं किंतु उस अंधेरे में जैसे ही उन्हें प्रकाश या कहें कि आशा की एक किरण दिखाई देती है तो मरने का विचार पल भर में उड़न छू हो जाता है। नौकर का बयान कि सुबह 10:00 बजे सुशांत ने अनार का जूस लिया। जब कि कमरे से कोई जूस वाला गिलास ही नहीं मिला। यानी नौकर झूठ बोल रहा है। डॉक्टरों के अनुसार उसकी मौत दम घुटने से हुई। पुलिस का तर्क है कि पंखे से लड़ने के बाद उसकी दम घुटने से मौत हो गई। हालांकि हत्या का अंदेशा जताने वालों का मानना है कि पहले कोई नशा देकर उसका गला दबाया गया, बाद में पंखे से लटका दिया गया। मुंबई पुलिस की जांच पर संदेह करने वालों का मानना है कि पुलिस जांच के नाम पर सबूत मिटाने में लगी थी। वैसे तो पुलिस पर ऐसे आरोप देश भर में ही लगाए जाते रहे हैं।
इधर रिया चक्रवर्ती को विष कन्या साबित करने वाले राष्ट्रीय मीडिया की हालांकि हर तरफ कड़ी आलोचना हो रही है किंतु लोग जानना चाहते हैं कि सुशांत के साथ सच में क्या हुआ? उसे किस-किस ने किस-किस तरह से प्रताड़ित किया जिस कारण उसने आत्महत्या की या उसे किस किसने मारा? यह सब बातें पूरा देश जानना चाहता है। खोजी पत्रकारिता के नाम पर राष्ट्रीय मीडिया मनगढ़ंत कहानियां सुनाने के लिए पहले से ही बदनाम हो चुका था, सुशांत राजपूत के मामले में तो उसने सारी हदें ही पार कर दी।
देश समाज और सरकार की स्वच्छ छवि के लिए अच्छा होगा यदि दबाव में ना आने वाले कुछ काबिल अफसरों को जल्दी से जल्दी इस मामले के सारे सबूतों सहित सच्चाई सामने लाने की जिम्मेदारी दी जाए। ताकि प्रशासन व अदालतों पर लोगों का भरोसा बनाए रखा जा सके। अगर देश का गृह विभाग अब भी कहीं चूक गया तो बेंगलुरु जैसे अराजकता के मंजर हर शहर और हर गली में दिखाई दे सकते हैं, जहां दंगाइयों द्वारा या तो नेताओं के घर जलाए जाते हैं और या पुलिस थाना। अगर कभी ऐसा होता है तो यह देश का दुर्भाग्य ही माना जाएगा।