शपथ के साथ साथ प्रतिज्ञान दोनों करने वालों में मुख्यमंत्री नायब सैनी, 5 कैबिनेट मंत्री, 1 राज्यमंत्री एवं अधिकांश विधायक शामिल, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 188 और तीसरी अनुसूची में दिए फार्म अनुसार या तो ईश्वर की शपथ लेने अथवा सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करने का विकल्प परंतु दोनों एक साथ नहीं हो सकते: एडवोकेट हेमंत कुमार
फेस2न्यूज/चंडीगढ़
शुक्रवार 25 अक्टूबर को नव-गठित 15वीं हरियाणा विधानसभा के बुलाए गए पहले सत्र में प्रदेश के राज्यपाल द्वारा विशेष रूप से नियुक्त कार्यवाहक (प्रो-टेम) स्पीकर डॉ. रघुबीर सिंह कादयान द्वारा नव-निर्वाचित विधानसभा सदस्यों को विधायक पद की दिलाई गई शपथ पर एक अत्यंत महत्वपूर्ण संवैधानिक प्वाइंट उठाते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट और विधायी मामलों के जानकार हेमंत कुमार (9416887788) ने देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, हरियाणा विधानसभाध्यक्ष हरविंद्र कल्याण और लोकसभा स्पीकर ओम बिरला को ज्ञापन भेजकर भारत के संविधान के अनुच्छेद 188 और तीसरी अनुसूची में दिए गए फार्म 7 (बी) की संपूर्ण अनुपालना नहीं किए जाने का मामला उठाया है और उनसे इस मामले में उचित हस्तक्षेप करने को कहा है.
हेमंत ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 188 के अंतर्गत राज्य की विधानसभा का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पहले राज्यपाल या उसके द्वारा इस निमित नियुक्त व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररूप के अनुसार शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा.
एडवोकेट का मानना है अब इसे हरियाणा विधानसभा सचिवालय के संबंधित अधिकारियों अथवा कर्मियों की या तो लापरवाही कहा जा सकता है या उनसे जाने-अनजाने हुई एक गंभीर चूक कि उन्होंने मौजूदा नव-गठित विधानसभा सदन के नव-निर्वाचित सदस्यों द्वारा विधायक पद की शपथ लेने के लिए शपथ का ऐसा ड्राफ्ट फॉर्म (प्ररूप) तैयार करके उन सभी के हाथों में दिया जिसे पढ़कर सदन में सर्वप्रथम विधायक पद की शपथ लेने वाले मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, उनके बाद उनके मंत्रिपरिषद में 5 कैबिनेट मंत्री नामतः कृष्ण लाल पंवार, महिपाल ढांडा, रणबीर गंगवा, श्याम सिंह राणा, आरती सिंह राव और राज्य मंत्री ( स्वतंत्र कार्यभार) गौरव गौतम और तत्पश्चात कांग्रेस विधायक पूजा चौधरी को छोड़कर शेष सभी महिला विधायक एवं उनके अतिरिक्त अधिकांश नव-निर्वाचित विधायकों ने प्रो-टेम स्पीकर डॉ. रघुबीर सिंह कादयान के समक्ष विधायक पद के लिए ईश्वर की शपथ के साथ साथ सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान भी कर लिया जबकि इनमें अर्थात शपथ अथवा प्रतिज्ञान में से एक ही किया जा सकता है दोनों का नहीं.
हेमंत ने आगे बताया कि भारत के संविधान की तीसरी अनुसूची में राज्य विधानसभा के सदस्य (विधायक) द्वारा ली जाने वाली शपथ या किये जाने वाले प्रतिज्ञान का प्ररूप है जिसमें स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया गया है कि मैं, अमुक (विधायक का नाम), जो विधानसभा का सदस्य निर्वाचित हुआ हूँ, ईश्वर की शपथ लेता हूँ / ( अथवा) / सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ की मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा. मैं भारत की प्रभुता और अखंडता को अक्षुण्ण रखूंगा और जिस पद को मैं ग्रहण करने वाला हूँ उसके कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करूंगा.
भारत के संविधान के तीसरी अनुसूची में दिए गये उपरोक्त प्ररूप के अनुसार विधानसभा के हर नव-निर्वाचित सदस्य को यह विकल्प दिया गया है कि अगर वह ईश्वर में आस्था रखने वाला अथवा आस्तिक है, तो वह ईश्वर के नाम से विधायक पद की शपथ ले सकता है अथवा अगर वह इस प्रकार ईश्वर की शपथ नहीं लेना चाहता है, तो वह इसके एवज़ में सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान (सोलेम्नी अफ्फिर्म) भी कर सकता है परन्तु एक ही समय पर दोनों नहीं किए जा सकते है.
इस प्रकार भारत के संविधान के तीसरी अनुसूची में दिए गये उपरोक्त प्ररूप के अनुसार विधानसभा के हर नव-निर्वाचित सदस्य को यह विकल्प दिया गया है कि अगर वह ईश्वर में आस्था रखने वाला अथवा आस्तिक है, तो वह ईश्वर के नाम से विधायक पद की शपथ ले सकता है अथवा अगर वह इस प्रकार ईश्वर की शपथ नहीं लेना चाहता है, तो वह इसके एवज़ में सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान (सोलेम्नी अफ्फिर्म) भी कर सकता है परन्तु एक ही समय पर दोनों नहीं किए जा सकते है.
हेमंत का कानूनी तर्क है विधायक पद के लिए ईश्वर की शपथ लेने के साथ साथ सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करने से न तो आधिकारिक रूप से उसे शपथ और न ही प्रतिज्ञान माना जा सकता है चूंकि वह दोनों का मिश्रण बन जाता है एवं ऐसा करना संवैधानिक तौर पर उपयुक्त नहीं है.
हैरानी की बात यह है की जब ऐसा किया जा रहा था, तब न तो प्रो-टेम स्पीकर डॉ. रघुबीर कादयान और न ही विधानसभा सचिव डॉ. सतीश कुमार अथवा किसी अन्य विधानसभा के अधिकारी द्वारा इस विषय पर हस्तक्षेप किया गया.
हेमंत का कहना है कि प्रो-टेम स्पीकर या कम से कम विधानसभा सचिव को शपथ-ग्रहण कार्यक्रम आरम्भ होने से पूर्व सदन के के समक्ष स्पष्ट कर देना चाहिए था कि या तो नव-निर्वाचित विधायक ईश्वर की शपथ के सकते हैं अन्यथा अगर वह शपथ नहीं लेना चाहते हैं, तो वह सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान कर सकते हैं ताकि इस बारे में किसी नव-निर्वाचित विधायक के मन में कोई संशय नहीं रहता.
चूँकि इस बार 90 सदस्यी हरियाणा विधानसभा में 40 विधायक ऐसे है जो पहली बार निर्वाचित होकर आये हैं, इसलिए ऐसा करना अत्यंत आवश्यक था.
हालांकि विधानसभा सत्र के आरम्भ होने पर रोहतक से कांग्रेस विधायक भारत भूषण बतरा ने राज्यपाल द्वारा डॉ. रघुबीर कादयान के सदन के प्रो-टेम स्पीकर के स्थान पर एक्टिंग स्पीकर के तौर पर नियुक्त करने पर आपत्ति उठाई थी जिसका पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा ने भी समर्थन किया था परन्तु जब सर्वप्रथम मुख्यमंत्री, उसके बाद कई मंत्रियों एवं अनेक विधायकों द्वारा विधायक पद के लिए ईश्वर की शपथ लेने के साथ साथ सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान किया जा रहा था, तो न तो उक्त दोनों या सदन के किसी अन्य वरिष्ठ सदस्य भी इस पर कोई ऐतराज़ नहीं जताया.