रिश्तों को हमने बिठाया था
अपनी कश्ती में,
और
फिर कश्ती का बोझ कह कर,
हमें ही उतारा गया...
जिंदगी तो बे—वफा है
फिर भी
उसी का गीत गाया गया।
सांसे हैं पल—पल घट रही
फिर भी
जन्मदिन मना कर
उसी का जश्न मनाया गया
जिसने भेजा है धरा पर
उसका गुणगान पलभर भी नहीं
बस!
चका चौंध रोशनियों का
बखान सुनाया गया।
मौत महबूब है
मगर
उसको सदा भुलाया गया।
— रोशन