कितनी बुरी होती है
वो नज़र
जो माँ के लाडले को
अपनों के प्रेम से निहारने से अचानक
लग जाती है
और
नमक या राई वारने से,
सात लाल मिर्च जलाने से
उतर भी जाती है।
कितनी हैरान होती है
विध माता भी
जब माँ
छठी रात को
अपने लाडले का
श्रेष्ठ भाग्य लिखने की
ज़िद करती है
कितनी स्वार्थी है माँ
जब दुःखों को
खुद पर लेकर
सुख की दुआएं देती है
सारी अलाएँ-बलाएँ
दो मुठियों में जकड़ कर
दूर झड़क देती है।
माँ फूंक मार कर
कर देती है ठीक
हर चोट का दर्द,
हथेलियां रगड़ कर
लाल दुखती आँख को
कर देती है तुरंत ठीक।
माँ कितनी बड़ी झूठी है
दर्द छुपा कर
खुद से अलग करके
भेज देती है कमाने परदेस बच्चों को
जबकि उसकी भूख
केवल बच्चे को सुकून से
भरपेट खिलाने में है
थपकी देकर सुलाने में है
डाँट कर सुबह उठाने में है।
माँ कितनी बड़ी ड्रामेबाज है
गुस्से का नाटक करती है,
हँसने के मौकों पर भी
पल्लू भिगोती है।
माँ बेमकसद रोती है
बेवजह झगड़ती है
बेइंतहा चिल्लाती है
कितनी बक बक करती है।
अंत में
जब बच्चों को अपनी बचपन की फ़ोटो
उसकी आखिरी सांस के बाद
उसके तकिये के नीचे मिलता है
तो उन्हें समझ आता है
माँ का होना क्या होता है
माँ का न होना क्या होता है!!!
- मीनाक्षी आहूजा