प्यार मोहब्बत की जिंदगी के सफ़र में
तुमसे मुलाकातें भरपूर हुई
दिन भी निकले और रातें भी हुई
चलता रहा सफ़र
मौजमस्ती की धुन पर
किस्से भी खूब और कहानियां भी भरपूर हुई
एकाएक टूटी वो हकीकत
टूटे जागती आँखों के सपने
जो सजाए थे
नगमें दरबार–ए मोहब्बत में
अभी बेकरारी है बहुत बची हुई
उतर गए थे दिल में इस कदर
तुम मिले तो मेरी आशिकी पूरी हुई
कैसे तोड़ कर चले गए तुम
वादा अपना
यूं रुख्सत होने का न कोई सलीका बना
न कोई शिकवे न कोई शिकायतें हुई
न कहा—सुनी न ही कोई लड़ाई हुई
हुआ तो बस! इतना ये सब
कि
दिन बेजार और रातें तन्हा हुई।
— रोशन