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कविताएँ

मानस चोला

August 24, 2017 12:31 PM

— शिखा शर्मा


शाख से टूटे पत्ते का
न कोई दूजा छोर
इत तरफ जन्म है
अंत है उत ओर
प्रेम शाख से उमड़े अपार
छूटन के न आए विचार
नित दिन उड़े-हिले
खेले कूदे पवन के साथ
यौवन में हरियाली संग
मेह के छींटे उड़ेरे चार
गरजा बदरा चौन्धी ताडित
दर्प से दिए सब नकार
अहं की रट ने भूला दिए
भोग योनि के सबहूं नियम प्रकार
सुहृद पात को देखकर
उपजे ईर्ष्या द्वन्द विकार
रट विधाता नाम ही
ले जाएगी वैतरणी पार
पतझड़ पीड़ा का अंदेशा
ह्दय मे बसा
छपटे बिन घटा सावन बरसे
टूटा पेर की शाख का साथ
सूखा, झड़ा फिर उड़ा
औंधे मुंह प्राण दिए उढ़ेर
क्षण में अग्नि का ग्रास
क्षण में मिट्टी का ढ़ेर
शाख से टूटे पत्ते का
न कोई दूजा छोर
इत तरफ जन्म है
अंत है उत ओर

Shikkha Sharma

 
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