— रोशन
अनंत आकाश है अनंत हैं उसकी ऊर्जा
हम—तुम तो हैं इस दुनियां का
ईक सूक्ष्म सा पुर्जा
खाए, खेले, रोए, कूदे
किया वही जो मन को सूझा
आन पड़ी जब विपत्ता तब
सहारा मिला ना उस बिन कोई दूजा
धरा बनी और बिगड़ी बारम्बार
समग्र अस्त्तिव आकाश रूप में
सदा ही गया है पूजा
अनंत है उसकी माया
विचित्र है उसकी लीला
ऐसी सूझी उसके मन में
मिट्टी को आंच लगा कर
पञ्च तत्वों का प्राणी खोजा
जल-वायु अग्नि आकाश धरातल
पृथ्वी का प्रालोक पातालतल
अखंड शक्ति का संचार चलाचल
कहां-कहां नहीं उसकी ऊर्जा
फिर भी ऐसा हुआ करिश्मा
हम-तुम
लिप्तमगन है अपनी धुन में
अपना इक संसार बनाकर
अपनी सृष्टि अपनी दृष्टि
और अपने में ही उलझा।