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संपादकीय

प्राकृतिक सम्पदा संभालने का सुनहरा अवसर

April 22, 2020 05:01 PM

— रोशन

विकास की अंधी दौड़ के परिणाम हम सब भुगत रहे हैं। आज घरों में बंद, कहीं आने- जाने से भी मोहताज। काम धन्धों पर तालाबंदी। ऐसा आभास होता है जैसे हाथों में हथकड़ियां और पैरों में बेड़ियां डाल दी गई हो। वैसे यह सजा हमें, हमारी सोच, हमारे कर्म और हमारे अहम का ही फल है। हजारों किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ रही हमारी जिंदगी को अचानक यह ब्रेक यूं ही नहीं लगा। एक निष्पक्ष न्यायधीश की नजरों से देखा जाए तो जिस बेरहमी से हमने अपनी प्राकृतिक सम्पदाओं का दोहन किया है, दोहन नहीं बल्कि शोषण किया है, उसके बदले में मिलने वाली यह सजा तो नाममात्र कही जा सकती है।
ईश्वर प्रदत संपदा को संभालना हम सबका व हमारी सरकारों का महत्वपूर्ण कर्तव्य था। किंतु हमने न सिर्फ अपने इस कर्तव्य की पूर्णतया अनदेखी की बल्कि रातों-रात धनवान बनने की हमारी लालसा ने हमें गुनहगारों की श्रेणी में ला खड़ा किया। इधर हमारी सरकारें भी इस गुनाह में हमसे दो कदम आगे ही रही। नमामि गंगे जैसी योजना हमारे सामने इसकी एक जीती जागती उदाहरण है। अवैध तरीके से की जाती माइनिंग, धरा का सीना चीरकर जल दोहन, बोतल बंद पानी की फैक्ट्रियां और सड़कों पर 24 घंटों बेतहाशा दौड़ते वाहन भी इस बात का जीता जागता प्रमाण है कि इंसान के इस लालच में सरकार की हिस्सेदारी भी कम नहीं आंकी जा सकती। हमारे नेताओं व सरकारी अमले के संरक्षण में ये सारे गुनाह होते रहे हैं। सरकारी अमला इस पर नकेल डालने की बजाय इसे और हवा ही देता रहा है। कभी किसी पर्यावरण प्रेमी या ईमानदार मीडिया कर्मी ने इस कुकर्म के खिलाफ आवाज उठानी चाही तो पुलिस, लालफीताशाही और भ्रष्ट नेताओं की जुंडली ने या तो उस पर लीपापोती ही की या उसे हमेशा के लिए खामोश करवा दिया।
नदिया—नाले गंदे किए, दरिया—समुंदर दूषित रहे, कंकरीट की उंची उंची मीनारे खड़ी करने की होड़ में हरे-भरे खेत ही नहीं बल्कि जंगल भी उजाड़ दिए गए, ना हवा साफ रहने दी और न ही अपनी सीना चीर कर हरेक की क्षुब्दा तृप्ति करने वाली धरती को माता का सम्मान दिया, जंगली जीवों तक का जीना दूभर कर दिया। ऐसा नहीं कि सरकारों के पास इन सबको बचाने के साधन या ताकत नहीं थी। सब कुछ था बस नहीं थी तो इच्छा शक्ति।
भ्रष्ट अफसरशाही पर नकेल कसने की इच्छाशक्ति किसी एक नेता के पास भी होती तो आज हमारा जीवन कुछ और ही होता।
अब कुदरत ने हमें एक और अवसर दिया है अपनी भूलों को समझने का, कोरोना महामारी ने इन सबके बारे में भली-भांति सोचने का पर्याप्त समय भी प्रदान कर दिया। अगर अब भी हमने अपनी भूलों को समझकर उसे ना सुधारा तो हमारा विनाश निश्चित है। पता नहीं कब डायनासोर जैसे जीव की भांति इंसान नाम की यह प्रजाति भी इस सृष्टि से लुप्त हो जाए।
आज कोरोना जैसे सूक्ष्मजीव के चलते पूरी दुनिया में जैसा भयावह मंजर देखने को मिल रहा है, उसे देखने के बाद मनुष्य जाति के मन में इस प्राकृतिक आपदा के प्रति सहम पैदा होना स्वाभाविक ही है। देश और दुनिया की सरकारों को समझना होगा कि जब प्रकृति ने खुद ही उनका 70-80 फीसदी काम कर दिया है यानी जल, वायु और धरा को स्वच्छ कर दिया है तो शेष रहता 20-30 फ़ीसदी काम भी अगर वे ना कर पाए तो दुनिया की तबाही के गुनाहगार उन्हें ही माना जाएगा।
आज आवश्यकता इस बात की है कि लॉकडाउन खोलने से पहले पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली इकाइयों को चिन्हित कर लिया जाए और उन्हें कड़ी चेतावनी देते हुए ही काम करने की अनुमति दी जाए। सख्त नियम कानून बनाने की काफी नहीं, उनका सख्ती से पालन करवाना भी अति आवश्यक है।
भारत सरकार को भी यह काम पहल के आधार पर करने की आज सख्त जरूरत है। प्रधानमंत्री व उनके नीति निर्माताओं को भी यह बात अच्छे से समझनी चाहिए कि यदि इस सुनहरे अवसर को हाथ से जाने दिया तो फिर शायद जिंदगी की बाजी उनके हाथ कभी नहीं आएगी।
(संपादक फेस2न्यूज)

 
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