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संपादकीय

अच्छे दिन बनाम भुखमरी

May 21, 2020 12:49 PM

— एफ.पी.एन.

देश की जनता के लिए अच्छे दिनों का सपना अब 'मुंगेरी लाल के हसीन सपने' जैसा होता जा रहा है, यह सपना पिछले पांच-छह सालों तक लोगों के मनों को सहलाता रहा, बहकाता रहा। लेकिन अब शायद दशकों तक उन्हें यह सपना सालता रहे। अच्छे दिनों की बाट जोहते-जोहते कंगाली के कगार पर जो पहुंच गए हैं। प्रधानमंत्री जी ने चुनाव के दिनों में 15 लाख रुपए प्रत्येक नागरिक के खाते में जमा करवाए जाने की बात कुछ इस अंदाज में कही कि लोग गरीबी और बदहाली में मरने के किनारे पहुंचकर भी वापस लौट आए कि अब मोदी जी 15 लाख रुपए देकर उनकी सारी कंगाली दूर कर देंगे। यह पैसा सरकार की तरफ से उनके खाते में जमा होना था, उस पर सितम यह कि यह सारा धन भ्रष्ट भारतीयों की वह पूंजी थी जो उन्होंने चोरी-छिपे विदेशी बैंकों में जमा करवाई थी, गरीबों के हिस्से का धन लूट कर। देश की भोली-भाली जनता को लगा कि कांग्रेस राज में उनके साथ हुए हर जुल्म का बदला मोदी जी लेंगे। मोदी जी प्रधानमंत्री बन गए तो बस भारत में रामराज्य आया ही समझो। इससे और अच्छे दिन हो भी क्या सकते हैं, जब गरीब, दलित और आम नागरिक को भी इंसाफ मिल जाए। चोर-उचक्के भ्रष्ट और दो नंबर का धंधा करने वाले लोग बेखौफ ना घूम सकें। उनको ना सिर्फ सरकार, पुलिस व सजा का डर हो बल्कि वो ईमानदार इंसान के आगे से मुंह छुपा कर निकलें।   

जाब के इतिहास में महाराजा रणजीत सिंह इस बात की एक जीती जागती मिसाल है। उपाधि यूं ही नहीं मिली, महाराजा रणजीत सिंह के बारे में सर्वविदित है कि वह सदैव गरीब एवं वंचित लोगों के दुख दूर करने के लिए किसी भी हद तक चले जाते थे।


15 लाख रुपए खाते में जमा करने वाला वादा तो गृहमंत्री अमित शाह के अनुसार चुनावी जुमला ही था। और अब करोना के चलते लॉक डाउन और कर्फ्यू ने अच्छे दिनों का सपना भी चूर- चूर कर दिया। लोग सोचने लगे हैं कि लगभग 2 महीने से लॉक डाउन के चलते भी जिंदा है, इतना क्या कम है? यह भी तो मोदी जी की मेहरबानी ही है! दरअसल गरीब देश की जनता जिसे अच्छा बोलते देखती है, बस उसे ही अपना भगवान मान बैठती है। वैसे तो भारतीय पुराणों में और कहीं-कहीं इतिहास में भी राजा को लोग भगवान मानते रहे हैं। क्योंकि वे जनता का दुख देखकर भगवान की तरह पिघल जाते थे और दुखी जनता को भूखे मरते देख कर अपना सारा खजाना लोगों पर निछावर कर देते थे। पंजाब के इतिहास में महाराजा रणजीत सिंह इस बात की एक जीती जागती मिसाल है। उसे पंजाबी भाषा के एक कवि ने तो "पांडी पातशाह" की उपाधि की दे डाली थी। वैसे उसे यह उपाधि यूं ही नहीं मिली, महाराजा रणजीत सिंह के बारे में सर्वविदित है कि वह सदैव गरीब एवं वंचित लोगों के दुख दूर करने के लिए किसी भी हद तक चले जाते थे। करोना महामारी की तरह उनके राज्य में भी एक बार अकाल पड़ गया था। लोग भूख से मरने लगे तो उन्होंने घोषणा करवा दी कि जो जितना अनाज चाहे सरकारी खजाने से ले सकता है। बूढ़ी औरत ने खजाने से मिले मुफ्त अनाज को अपनी गठरी में अपनी क्षमता से अधिक भरवा लिया। अब उठाकर घर कैसे ले जाए? महाराजा रणजीत सिंह भेष बदलकर उसकी वह गठरी उसके घर तक छोड़ने चले थे। इधर हमारी लोकतंत्र की सरकारें हैं, जिन्होंने लोगों के हिस्से के अनाज को अपने गोदामों की शान बनाकर रखा हुआ है।

 
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