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संपादकीय

जंगल के नियम बनाम इंसाफ का तकाजा

June 17, 2020 07:19 PM

— एफपीएन   


दंगल सिर्फ मैदान में ही नहीं होता। पहलवान तो पहलवान है जी, वह जहां भी होगा, दंगल हो ही जाएगा। जहां तक कि अनाज मंडी जैसी जगह भी दंगल का मैदान बन सकती है, अगर खुशकिस्मती या बदकिस्मती से वहां दंगल गर्ल सोनाली फोगाट जैसी पहलवान पहुंच जाए। सामने कोई भी आ जाए, पहलवान का मूड बन गया कि इसको पछाड़ देनी है तो भई दे के रहेंगे। सामने वाले का मूड दंगल करने का हो या ना हो पर अपना है तो फिर कोई भी बहाना ढूंढा जा सकता है। मसलन तुम मेरा पानी गंदा क्यों कर रहे हो? छ: महीने के मेमन से जैसे भेड़िया पूछता है कि तुमने मुझे पिछले बरस गालियां क्यों दी थी? ताकत के नशे में चूर उस अक्ल के अंधे को कौन समझाए कि बच्चा पिछले साल तो पैदा ही नहीं हुआ था। जिसकी लाठी- उसकी भैंस वैसे थोड़ा ना हो जाती है। जंगल का नियम है यह तो। अरे भाई सरकार है उनकी, घटना की व्याख्या भी उन्होंने ही करनी है, और लोकतंत्र के नियमों की व्याख्या भी। यहां बात थप्पड़- जूता कांड वाली भाजपा नेत्री सोनाली फोगाट की ही नहीं, लोकतंत्र को मजबूत करने का दावा करने वाली सरकारों और दुनियाभर में सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के दोषपूर्ण सिस्टम की भी है। प्रदेशभर के मंडी कर्मियों के धरने प्रदर्शन के बाद और जींद की बिनैन ख़ाप के दबाव में सोनाली फोगाट को गिरफ्तार भी कर लिया गया। भाई पहलवान तो पहलवान है। किसी के दो- चार जूते- थप्पड़ न जड़े तो काहे की पहलवानी? थप्पड़ जूते ही तो मारे हैं, कोई कत्ल थोड़े ही कर दिया। अब क्या इतने बड़े पहलवान को जेल की हवा खिलाओगे? कोई ऐरा- गैरा नत्थू खैरा होता तो और बात थी। विरोधी पार्टी का छोटा- बड़ा कोई भी लीडर होता तो साले को सदा के लिए अंदर ठोक देते। परंतु यह तो जी सरकार का प्यारा, दुलारा पहलवान है। थोड़ा बिगड़ा हुआ है तो क्या हुआ? पर है तो हमारा पहलवान ही। और फिर सुल्तान सिंह ने भला भद्दी भाषा का उपयोग कैसे किया हमारे इस पहलवान के सामने? हमारा पहलवान अंदर चला गया तो विरोधियों के सामने नाक ना कट जाएगी। सो गिरफ्तारी भी हुई और जमानत भी हो गई। क्या करें जी! कानून के हाथ बस इतने से ही लंबे हैं? संविधान निर्माताओं ने भले ही कानून के इन हाथों को भरपूर लंबाई दी थी परंतु हमारी सरकारों ने अपनी सुविधा के अनुसार इन लंबे हाथों को काट कर छोटा कर दिया। कानून को हाथ में लेना और फिर साफ बच के निकल जाना ही तो कलाकारी रह गई आज हमारे इस महान लोकतंत्र में। गंदी भाषा इस्तेमाल करोगे तो हम ऐसे ही पीटेंगे? यानी हमारे लिए नियम कानून कुछ नहीं। पहलवान हैं तो बस पहलवानी ही दिखाएंगे। मैदान चाहे हिसार (आदमपुर) के बालसमंद की मंडी हो, राजनीति हो, न्याय- व्यवस्था हो या दंगल का मैदान, बस सामने वाले को धोबी-पछाड़ ही नहीं लगानी, मुंह पर थप्पड़ और सिर पर जूते भी लगाएंगे, जिसकी हिम्मत हो, रोक कर दिखाए।
इस मामले में इंसाफ का तकाजा तो यह था कि सरकारी कर्मचारी के काम में बाधा डालने, ड्यूटी पर उससे बुरी तरह मारपीट करने व वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल करके बेइज्जत करने की कुछ सख्त धाराएं लगाकर केस दर्ज किया जाता ताकि जनता में यह संदेश जाता कि कानून की नजर में सब बराबर हैं। इस तरह छुटभैया नेताओं को भी अनुशासन में रहने का सबक मिल जाता। किसी भी तरह की बदमाशी या दादागिरी को प्रोत्साहन देना देश और समाज के लिए तो एक खतरनाक रुझान ही है, भविष्य में ऐसे लोग सरकारों व कई बार उन्हें पनाह देने वालों की नाक में भी दम कर दिया करते हैं।

(लेखक पत्रकारिता में उच्च शिक्षित और अनुभवी विशलेखक है)

 
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