नई दिल्ली, फेस2न्यूज:
ग्रीष्म से शरद ऋतु जैसे ही दस्त देती है तब मौसम में बदलाव के कारण इंसान भी छोटी मोटी बीमारियों की जकड़ में आता—जाता रहता है। लेकिन देश की राजधानी दिल्ली जैसे महानगर में अक्तूबर से प्रदूषण का स्तर बढने लगता है और बढते बढते यह भयावह रूप धारण कर लेता है। लोगों को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। जैसे-जैसे सर्दियों का आगमन होता है वैसे-वैसे दिल्ली के आसमान पर जहरीले धूएं और धुंध की परतें जमती नजर आने लगती हैं।
यूं तो दुनियां में हर दिन प्रदूषण स्तर में बढौतरी लगातार हो रही है। लेकिन कोरोना काल में यह प्रदूषण स्तर डर की भयावह स्थिति दिखा रहा है। इस समयकाल में प्रदूषण पर बात चलती है तो चर्चा का केंद्र 'पराली' बन जाता है और सरकारी प्रतिनिधी ये कहने से परहेज नहीं करते कि पड़ोसी राज्यों में पराली जलने से यह प्रदूषण बढ़ रहा है। लेकिन इससे इन्कार भी नहीं किया जा सकता कि जब खेतों में पराली जलाई जाती है तथा धूल भरी आंधी चलने पर पहले से ही प्रदूषित हवा में घुलकर ये वायु की गुणवत्ता को और खराब कर देती हैं।
इसी के साथ ही जब अक्टूबर आते ही पड़ोसी राज्यों में पराली जलाई जाती है तो इसका ग्राफ बहुत ऊपर चला जाता है। पराली जलाने का काम करीब 45 दिन तक चलता रहता है लेकिन दिल्ली की हवा जो अक्टूबर में खराब होती है वो फरवरी तक जाकर साफ हो पाती है।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर द्वारा हाल ही में कहे अनुसार प्रदूषण में पराली की हिस्सेदारी सिर्फ 4 प्रतिशत है। तो यहां सबसे बड़ा सवाल ये पैदा होता है कि फिर कौन से कारण हैं जिससे दिल्ली अक्तूबर से प्रदूषण की चपेट में आ जाता है। जो कई महीनों तक वहां के रहवासियों के गले की फांस बना रहता है।
एक अखबार की एक रिपोर्ट अनुसार अक्टूबर में उत्तर पश्चिम भारत में मानसून की वापसी का वक्त है। बंगाल की खाड़ी से चलने वाली ये हवाएं देश के इस हिस्से में बारिश और नमी लाती हैं। जब मानसून खत्म होता है तो हवाओं की दिशा उत्तर की तरफ हो जाती है। गर्मी के दौरान हवा की दिशा उत्तर-पश्चिम की ओर होती है जो राजस्थान और कभी-कभी पाकिस्तान और अफगानिस्तान से धूल उड़ाकर लाती है। हवा की दिशा में बदलाव के अलावा तापमान में गिरावट भी प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने का काम करती है।
इसके अलावा धूल और वाहनों से होने वाला प्रदूषण भी दिल्ली में सर्दियों के दौरान हवा की गुणवत्ता को खराब करता है। शुष्क शीत दौरान धूल पूरे क्षेत्र में फैल जाती है। और इस दौरान आमतौर पर बारिश नहीं होने के कारण धूल का प्रभाव कम नहीं हो पाता है।
आई आई टी कानपुर की स्टडी में सामने आया कि धूल से होने वाले प्रदूषण की PM10 में हिस्सेदारी 56% होती है। बताया जाता है कि सर्दियों के दौरान PM2.5 में 20% प्रदूषण वाहनों से होता है। जिसका परिणाम लॉकडाउन दौरान भी देखने को मिला जब सड़कों पर वाहन नहीं थे, तब दिल्ली का आसमान नीला नजर आने लगा था, लोग सोशल मीडिया पर जमकर पोस्ट कर रहे थे।
इससे यह तो ज्ञात करने में आसानी हो चली कि मौसम का बदलाव, हवा की दिशा में बदलाव, तथा वाहन तथा अन्य इकाईयां भी दिल्ली के प्रदूषण बढ़ने में अहम भूमिका निभाते हैं।