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संपादकीय

कृषि कानून वापस कैसे हो भाई- आगे है कुआं तो पीछे खाई

December 21, 2020 11:15 AM

— संजय मिश्रा:
कृषि क़ानूनों को लेकर किसान आंदोलन चरम पर है लेकिन सरकार इन क़ानूनों का रोल बैक क्यों नहीं करना चाहती? आईए तथ्यों व आँकड़ों की मदद से इसको समझने की कोशिश करते हैं।
भारत की दो कंपनियां है: रिलायंस एवं अडानी ग्रुप—
वैसे तो ये ग्रुप कोयला, तेल, गैस, सोलर प्लांट, बंदरगाह निर्माण, एयरपोर्ट निर्माण आदि बहुत सारे क्षेत्रों में कार्यरत है, लेकिन वर्तमान में विरोध कृषि कानूनों को लेकर, कृषि व उनके उत्पादों के व्यापार पर है, इसलिए सिर्फ इसी का विश्लेषण करते हैं।
फाइनेंसियल एक्सप्रेस 2008 की रिपोर्ट के हिसाब से 2005 में अडानी एग्री लोजिस्टिक लिमिटिड (AALL) व FCI के बीच, वेयरहाउस निर्माण को लेकर एक करार हुआ जिसके तहत 2007 में पंजाब के मोगा व हरियाणा के कैथल में अडानी ग्रूप द्वारा मॉडर्न साइलो स्टोरेज का निर्माण पूर्ण हो गया।
अडानी ग्रुप ने 5.75 लाख मिट्रिक टन स्टोरेज के वेयरहाउस पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिमी बंगाल में बनाये व 3 लाख मिट्रिक टन की स्टोरेज क्षमता के साइलो मध्यप्रदेश में बनाये।
मीडिया विजिल की रिपोर्ट के अनुसार AALL ने 2017 में PPP मॉडल के तहत 100 लाख टन स्टोरेज क्षमता के साइलो स्टोरेज बनाने की योजना तैयार की, लेकिन जमीन अधिग्रहण आदि की दिक्कतों के कारण 31 मई 2019 तक मात्र 6.75 लाख टन की क्षमता के साइलो ही बना सकी।
धीमी गति का एक दूसरा कारण यह भी रहा है कि जो स्टोरेज क्षमता विकसित की गई, वो भी पूर्ण रूप से भरी नहीं जा सकी। हरियाणा के कैथल में 2.25 लाख टन क्षमता के साइलो बने, मगर स्टोरेज के लिए 1.60 लाख टन ही गेहूं उपलब्ध हो सका।
अब तक अडानी ग्रुप विभिन्न राज्यों में 13 से ज्यादा वेयरहाउस/साइलो बना चुका है।
21 फरवरी 2018 को दैनिक जागरण में छपी खबर के मुताबिक अडानी ग्रूप के चेयरमैन गौतम अडानी ने यूपी इन्वेस्टर समिट में उत्तरप्रदेश में 6 लाख टन क्षमता के साइलो निर्माण की घोषणा की थी।
1 मार्च 2018 को राजस्थान पत्रिका में छपी खबर के मुताबिक अडानी ग्रुप, एग्री लोजिस्टिक पार्क बनाने हेतु यूपी सरकार के साथ किये MOU के तहत, यमुना प्राधिकरण क्षेत्र की 1400 एकड़ जमीन पर, 2500 करोड़ रुपये से फ़ूड पार्क व वेयरहाउस/साइलो बनाने जा रहा है।
अडानी ग्रुप ने FCI के साथ 2005 मे जो शुरुआती करार किये, उसके अनुसार FCI द्वारा खरीदे गए धान को, इन साइलों में रखेगा व उसका किराया FCI, AALL को देगा और यह गारंटी अगले 30 सालों के लिए दी गई थी।
MSP पर सरकार की खरीद लगातार घटाती जा रही है, ऐसे में सरकार के लिये इन वेयरहाउसों का औचित्य भी ख़त्म होता जा रहा है।
अब बात पारित किए गए हालिया तीनों कृषि कानून की:
पहले क़ानून के तहत अडानी ग्रुप के इस व्यापार को दिशा देने के लिए मंडियों से बाहर खरीद को कानूनी मान्यता देने के लिये सरकारी मंडी तन्त्र को ख़त्म किया जा रहा है व जमाख़ोरों को टैक्सफ्री ख़रीद की सौग़ात दी जा रही है।
दूसरे क़ानून के तहत आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन कर, असीमित जमाख़ोरी करने को क़ानूनी जामा पहनाया जा रहा है ताकि कॉरपोरेट कितना भी स्टोरेज करें, वो कानूनी पाबंदी से परे हो जाएं।
अब तीसरे कानून की बात करते हैं, जो रिलायंस ग्रुप के फायदे के लिए बनाया गया है।
2006 में रिलायंस ग्रुप ने रिलायंस फ्रेश व स्मार्ट स्टोर खोलने शुरू किए और अब तक 621 स्टोर विभिन्न शहरों में खोले जा चुके है। इन स्टोर द्वारा करीब 200 मिट्रिक टन फल व करीब 300 मिट्रिक टन सब्जियां रोज बेची जाती है।
2011 में रिलायंस मार्किट नाम से स्टोर खोलने शुरू किए और अब तक विभिन्न शहरों में 52 स्टोर खोले जा चुके है, जहां सब्जी, फल, किराना से लेकर घरेलू जरूरतों का हर सामान मिलता है।
इसी तरह रिटेल मार्किट पर एक छत्र राज कायम करने के लिए जिओमार्ट, रिलाइंस ट्रेंड आदि कंपनियों के 682 से ज्यादा स्टोर पूरे देश भर में खोले गए।
इसके बाद किशोर बियानी की कर्ज में फंसी "फ्यूचर ग्रुप" की रिटेल चैन अर्थात "बिग बाजार" के 420 से ज्यादा शहरों में चल रहे 1800 से ज्यादा स्टोर का अधिग्रहण रिलायंस ग्रुप ने कर लिया।
इस तरह अब देश मे रिटेल मार्किट का किंग रिलायंस ग्रुप है जिसके पास फ़ूड चैन का सबसे बड़ा नेटवर्क है।
तीसरे क़ानून (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) के द्वारा छोटे बिचौलियों को खत्म करके, मुनाफे पर एकमात्र कब्जा रिलायंस ग्रुप को दिया जायेगा।
अभी तक फल/सब्जियां मंडियों में ठेले पर आकर बिकती रही है, मगर मंडिया खत्म होते ही ठेले/रेहड़ी/दुकानों वाले खत्म जो जाएंगे। फिर रिलायंस फ्रेश की मनमानी शुरू होगी।
कुल मिलाकर देखा जाएं तो इन कानूनों में न तो किसानों के बारे में सोचा गया है, न ही करोड़ों "छोटे छोटे दुकानदारों, व्यापारियों व रेहड़ी/ठेले वालों के बारे में, न ही शहरी मध्यम वर्ग के हित को देखा गया है और न सार्वजनिक वितरण प्रणाली PDS के द्वारा "खाद्य सुरक्षा कानून" के तहत राशन पाने वाले गरीबों का हित देखा गया है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि, जब FCI अनाज खरीदेगा ही नहीं तो फिर गरीबों को राशन अम्बानी/अडानी तो खरीदकर बांटेंगे नहीं। यदि सरकार अडानी/अम्बानी से खरीदकर गरीबों में राशन बांटने जा रही है तो फिर FCI के माध्यम से सीधे किसानों से खरीदने में क्या दिक्कत है?
तो फिर तय है कि गरीबों के खाते में डायरेक्ट कैश डालने की बात होगी। मान लीजिये कि गेहूं की बेस प्राइज के हिसाब से 10 किलो गेहूं प्राप्त करने वाले गरीब के खाते में 20×10=200 रुपये डाल देगी। 200 रुपये लेकर गरीब रिलायंस मार्ट में जाकर गेहूँ खरीदेगा जो कि अभी 46रु/किलो बिक रहा है, के हिसाब से 4.3 किलो ही गेहूँ खरीद पायेगा। और कालांतर मे धीरे धीरे ये डायरेक्ट कैश बेनिफिट का ट्रांसफर भी बंद कर दिया जाएगा। क्योंकि आपको घरेलू गैस पर दी जाने वाली डायरेक्ट सब्सिडी का तो पता ही होगा, जो कि अब लगभग खत्म हो चुकी है।
मतलब साफ है कि इन तीन कृषि कानून के आलोक में खाद्य सुरक्षा कानून के तहत राशन प्राप्त करने वाले गरीबों के जीवन पर गंभीर खतरा पैदा होगा, सरकार अपने मित्रों की व्यापारिक प्रणाली को दिशा देने के लिए ये नीतियां बना रही है, उसी हिसाब से ये 3 कानून लाये गए है। देश केे किसाानों को ये बात समझ में आ गई है इसके लिए वो धरने पर बैठे हैं, इसके लिए वो आर पार कि लड़ाई लड़ने को तैयार है, अपनी जान तक देने को तैयार है, अगर ऐसा ही रहा तो भाजपा को चुनावी हार का सामना भी करना पड़ सकता है और अगर ये तीनों कानून वापिस ले तो उनके मित्रों का भारी-भरकम निवेश डूब जाएगा, ऐसा करना सरकार के लिए पीड़ादायी हैै।
सरकारी मित्रों को बिजली पर कब्जा देने के लिए भी अध्यादेश पास किया जा चुका है। किसान लड़ने लायक भी नहीं रह सके, उसके लिए पराली (पुआल) जलाने पर भारी जुर्माने का अध्यादेश भी जारी कर दिया है।
दिल्ली में प्रदूषण को लेकर पिछले 3 सालों से किसानों को यूँ ही गालियां नहीं दी जा रही थी। प्रदूषण में पराली का योगदान मात्र 8% है जबकि बाकी 92% प्रदूषण फैक्टरी एवं लाखों वाहनों को कम करने की चर्चा कहीं क्यों नहीं होती?
अगर किसान इस आंदोलन से खाली हाथ लौटा, तो "शहरी मध्यम वर्ग व देश के करोड़ों गरीबों" की हालत, किसानों से पहले दयनीय अवस्था मे होगी।
अगर किसान इन कानूनों को वापिस करवाने या MSP की लिखित गारंटी लेने में कामयाब हुआ तो उन मित्रों के व्यापार को गहरा झटका लगेगा।
सचमुच ही ये तीनों कानून, वापस कैसे हो भाई? क्योंकि आगेे है कुआं तो पीछे है खाई।

 
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