मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्, चंडीगढ़ , 9815619620
कोरोना वायरस ने पूरे विश्व का हुलिया बदल डाला है। जीवन शैली बदलनी पड़ी है। अमरीका भी दूर से हाथ जोड़ने की भारतीय परंपरा को सही मानने लगा है। बार बार हाथ धोने की सलाह दी जा रही है।डबल मास्क लगाने और घर के अंदर भी मास्क पहने रखने का सुझाव आ गया है। दो गज की दूरी - बहुत है जरुरी, वन्दे मातरम या भारत माता की जै की तरह नारा बन गया है। एकान्तवास में रहो। आयुर्वेद अपनाओ । शव को हाथ न लगाओ। लगाओ तो नहाओ। सेनेटाइजर का लगातार प्रयोग करो ।
प्राचीनकाल में छुआछूत एक सत्य था जिसे स्वच्छता की दृष्टि से देखा जाता था। निम्न वर्ग के लोग कई सीमित संसाधनों तथा अन्य कई कारणों से स्वच्छ नहीं रह पाते थे अतः उन्हें अक्सर घरों से दूर ही रखा जाता था। एक ही स्थान से जल भरना या नहाना धोना वर्जित था। उनके लिए विशेष स्थान निर्धारित किए गए थे। इस सब के पार्श्व में केवल संक्रमण को दूर रखने और संक्रमित लोगों के संपर्क में न आने के लिए कुछ सामाजिक व धार्मिक नियम बनाए गए थे जिनका पालन कई सदियों तक किया गया । समय बदला। स्वतंत्रता आई। छुआछूत का अर्थ गलत निकाल दिया गया और इसे जातियों से जोड़ दिया गया। मूल बात बीच में ही रह गई।ऐसी बहुत सी बातें हमारी जीवन पद्धति का महत्वपूर्ण हिस्सा थी जिन्हें पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव के कारण अंध विश्वास कहा जाने लगा। कोराना जी ने पूरे विश्व को भारतीय संस्कारों की ओर मोड़ दिया है जिसे वे आधुनिक मेडीकल विज्ञान कह रहे हैं। भारतीय धर्म ,संस्कृति, धार्मिक मान्यताएं, वेदों, पुराणों का ज्ञान सदैव आदिकाल से सनातन एवं शाश्वत रहा है।
उन दिनों चिकित्सा सुविधाएं आज की तरह नहीं थी। इसीलिए विद्वानों ने धर्म के साथ जोड़ कर कुछ नियम बनाए ताकि संक्रमण न फैले। आज सरकार को डंडे से वही करना पड़ रहा है जो हमारे धार्मिक संस्कार कहते हैं। आज चिकित्सा सुविधाएं तो बढ़ी हैं परंतु संक्रमण दूर रखने के लिए प्राचीन पद्धतियों को ही अपनाना पड़ रहा है।
ऐसी बहुत सी बातें हमारी जीवन पद्धति का महत्वपूर्ण हिस्सा थी जिन्हें पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव के कारण अंध विश्वास कहा जाने लगा। कोराना जी ने पूरे विश्व को भारतीय संस्कारों की ओर मोड़ दिया है जिसे वे आधुनिक मेडीकल विज्ञान कह रहे हैं। भारतीय धर्म ,संस्कृति, धार्मिक मान्यताएं, वेदों, पुराणों का ज्ञान सदैव आदिकाल से सनातन एवं शाश्वत रहा है।
क्या थी पुरानी परंपराएं?
1. शौचालय और स्नानाघर निवास स्थान के बाहर होते थे।
2. बाल कटवाने के बाद या किसी के दाह संस्कार से वापस घर आने पर बाहर ही स्नान करना होता था बिना किसी व्यक्ति या समान को हाथ लगाए हुए।
3. पैरो की चप्पल या जूते घर के बाहर उतारा जाता था, घर के अंदर लेना निषेध था।
4. घर के बाहर पानी रखा जाता था और कही से भी घर वापस आने पर हाथ पैर धोने के बाद अंदर प्रवेश मिलता था।
5. जन्म या मृत्यु के बाद घरवालों को 10 या 13 दिनों तक सामाजिक कार्यों से दूर रहना होता था।
6. किसी घर में मृत्यु होने पर भोजन नहीं बनता।
7. मृत व्यक्ति और दाह संस्कार करने वाले व्यक्ति के वस्त्र शमशान में त्याग देना पड़ता था।
8. भोजन बनाने से पहले स्नान करना जरूरी था और कोसे के गीले कपड़े पहने जाते थे।
9. स्नान के पश्चात किसी अशुद्ध वस्तु या व्यक्ति के संपर्क से बचा जाता था।
10. प्रातःकाल स्नान कर घर में अगरबत्ती, कपूर, धूप एवम घंटी और शंख बजा कर पूजा की जाती थी।
क्या है सूतक- पातक?
आप अक्सर सुनते होगे कि सूतक लग गया या पातक लग गया है, जब किसी परिवार में बच्चे का जन्म होता है तो उस परिवार में सूतक लग जाता है । सूतक की यह अवधि दस दिनों की होती है। इन दस दिनों में घर के परिवार के सदस्य धार्मिक गतिविधियां में भाग नहीं ले सकते हैं। साथ ही बच्चे को जन्म देने वाली स्त्री के लिए रसोईघर में जाना और दूसरे काम करने का भी निषेध रहता है। जब तक की घर में हवन न हो जाए।'सूतक' और 'पातक' सिर्फ धार्मिक कर्मंकांड नहीं है। इन दोनों के वैज्ञानिक तथ्य भी हैं। जब परिवार में बच्चे का जन्म होता है या किसी सदस्य की मृत्यु होती है उस अवस्था में संक्रमण फैलने की संभावना काफी ज्यादा होती है। ऐसे में अस्पताल या शमशान या घर में नए सदस्य के आगमन, किसी सदस्य की अंतिम विदाई के बाद घर में संक्रमण का खतरा मंडराने लगता है।
इसलिए यह दोनों प्रक्रिया बीमारियों से बचने के उपाय है, जिसमें घर और शरीर की शुद्धी की जाती है। जब 'सूतक' और 'पातक' की अवधि समाप्त हो जाती है तो घर में हवन कर वातावरण को शुद्ध किया जाता है। उसके बाद परम पिता परमेश्वर से नई शुरूआत के लिए प्रार्थना की जाती है। ग्रहण और सूतक के पहले यदि खाना तैयार कर लिया गया है तो खाने-पीने की सामग्री में तुलसी के पत्ते डालकर खाद्य सामग्री को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है।
सूतक का सीधा सम्बन्ध जन्म क्रिया से है:
- शिशु को जन्म देने वाली माता के लिए पुरे 45 दिनों तक सूतक होता है, साथ ही जिस स्थान पर जन्म दिया है वो स्थान 1 माह के लिए अशुद्ध माना जाता है इसलिए आपने देखा होगा कि जब भी कोई नवजात बच्चे और उसकी माँ से मिलने आता है तो वो वापस घर जाते ही स्नान करते है।
सूतक में क्या करें क्या नहीं ?
§ सूतक अर्थात बच्चे के जन्म के बाद के समय में 10 दिनों तक परिवार वालों पर हर तरह की पूजा पाठ, धार्मिक कार्यों और मंदिर जाना इत्यादि पर प्रतिबन्ध होता है.
§ जन्म देने वाली माता रसोई में नहीं जा सकती और ना ही वो घर के किसी कार्य में हाथ बटा सकता है.
§ 10 दिनों के बाद घर में हवन होता है उसके बाद ही शिशु की माता को कोई कार्य करने की अनुमति है.
§ बच्चे को 30 दिनों तक घर से बाहर भी ना लेकर जाएँ क्योकि इन दिनों में उसकी रोग प्रतिरोधक शक्ति बनती है, बाहर ले जाने से वो किसी संक्रमण के घेरे में आ सकता है. हो सके तो इन दिनों में बच्चे को बाहरी लोगों से भी दूर ही रखें.
पातक?
जहाँ सूतक का संबंध जन्म से है तो वहीँ पातक का संबंध मरण और उससे होने वाली अशुद्धियों से है.
- जिस दिन मृत व्यक्ति का दाह संस्कार होता है उसी दिन से पातक के दिनों को गिनना आरंभ किया जाता है.
- चाहे व्यक्ति एक्सीडेंट से गुजरा हो, बिमारी से मरा हो या सामान्य रूप से उसने शरीर त्यागा हो, इससे संक्रमण फैलने के आसार बहुत हद तक बढ़ जाते है. तो जब भी दाह संस्कार के बाद घर आओ तो स्नान अवश्य करें.
जिस व्यक्ति या परिवार के घर में सूतक-पातक रहता है, उस व्यक्ति और परिवार के सभी सदस्यों को कोई छूता भी नहीं है। वहां का अन्न-जल भी ग्रहण नहीं करता है। वह परिवार भी मंदिर सहित किसी के घर नहीं जाता है और सूतक-पातक के नियमों का पालन करते हुए उतने दिनों तक अपने घर में ही रहता है। परिवार के सदस्यों को सार्वजनिक स्थलों से दूर रहने को बोला जाता है।
किसी की शवयात्रा में जाने को एक दिन, शव छूने को 3 दिन और शव को कन्धा देने वाले को 8 दिन की अशुद्धि मानी जाती है।
*'सूतक' और 'पातक' सिर्फ धार्मिक कर्मंकांड नहीं है। जब परिवार में बच्चे का जन्म होता है या किसी सदस्य की मृत्यु होती है उस अवस्था में संक्रमण फैलने की संभावना काफी ज्यादा होती है। ऐसे में अस्पताल या शमशान या घर में नए सदस्य के आगमन, किसी सदस्य की अंतिम विदाई के बाद घर में संक्रमण का रोकने के लिए ही सूतक और पातक के नियमों का पालन किया जाता है।
इन नियमों से ही घर और शरीर की शुद्धी की जाती है। जब 'सूतक' और 'पातक' की अवधि समाप्त हो जाती है तो घर में हवन कर वातावरण को शुद्ध किया जाता है। उसके बाद परम पिता परमेश्वर से नई शुरूआत के लिए प्रार्थना की जाती है।
बच्चा पैदा होने के बाद महिला के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। साथ ही, अन्य रोगों के संक्रमण के दायरे में आने के मौके बढ़ जाते हैं। इसलिए 10-40 दिनों के लिए महिला को बाहरी लोगों से दूरी बना कर रखा जाता है। जैसे ही बच्चा संसार के वातावरण में आता है तो कुछ बच्चों को बीमारियां जकड़ लेती हैं। शारीरिक कमजोरियां बढ़ने लगती है और कभी कभी बच्चों को डॉक्टर इंक्यूबेटर पर रखते हैं जिससे वो बाहरी प्रदूषित वातावरण से बचाया जा सके।
* इसी तरह यदि आप किसी के अंतिम संस्कार में गए हैं तो नहाना जरूर है। किसीकी मृत्यु के पीछे कई कारण हो सकते है जैसे कोई लंबी सांस की बीमारी या शुगर की समस्या या फिर किसी एक्सिडेंट के चलते मृत्यु हो जाना। कारणों की फेहरिस्त कम नहीं है लेकिन मसला ये है कि ये सारे कारण आपके शरीर में संक्रमण के जरिए आ सकते हैं और आपको भी रोगी बना सकते हैं। कभी कभी देखा गया है कि कोई आदमी दाह संस्कार के बाद बीमार पड़ जाता है क्योंकि वहां के कीटाणु उसके घर तक रास्ता बना लेते हैं इसलिए हमेशा बच्चे, बूढ़े और महिलाओं को अतिरिक्त सावधानी रखने की सलाह दी जाती है। इसीलिए घर के सभी सदस्य अपना मुंडन कराते हैं।
*कभी कभी जब परिवार में सारी प्रक्रियाओं का अनुसरण होने पर भी संक्रमण की संभावनाएं बरकरार रहती है इसलिए अंतिम शस्त्र के रूप में हवन किया जाता है। हवन होने के बाद घर का वातावरण शुद्ध हो जाता है और पातक प्रक्रिया की मीयाद भी पूरी हो जाती है।
क्वारेंटाइन, दो गज की दूरी, सूतक पातक का आधुनिक रुप है। वैक्सीन के बावजूद आयुर्वेद के इम्यूनिटी बूस्टर लेने ही पड़ेंगे। अप्रैल 2022 तक अपना पूरा ख्याल रखें।