— रोशन
ए गुड़िया आज तू बहुत याद आई
वर्ष का त्यौहार रक्षा बंधन
लेकिन
तुम बिन सूनी रही तेरे भाई की कलाई
तेरा असीम प्रेम और नटखट लड़ाई
जो अब बन गई रुसवाई
वक्त बदला तो
बदला तेरा परिधान, परिवेश और नाम
फिर भी तूं हमारे लिए गुड्डी ही कहलाई
तुम गई छोड़ कर तो संभल गया
तब संग थी तेरी भौजाई
सांझ ढले क्षितिज पर
तारों के बीच देखा बहुत
तुम दोनों को
पर तुम ननद—भौजाई
कहीं भी नजर ना आई
रह—रह के यादें तेरे प्यार की
मन को भारी कर गई
याद है मुझे बा—खुबी
मां के बाद तुम ही थी
जो मेरे मन की बातों को
थी समझ पाई
मेरा मन तो विचलित है
नहीं समझ आ रहा
कैसे करूं भरपाई