— शिखा शर्मा
आखिरी खत की आखिरी ख्वाईश
देश के उस वीर जवान की
क्रांति की लहर जगा कर
युवा-युवा में जोश की ज्वाला जला कर
कहा उसने हंसकर
अंगारों पर चलने के लिए
अब मैं तैयार हूँ
स्वाभाविक है जीने की तमन्ना
साकार हो आज़ादी का सपना
बुन ली स्वतंत्रता की चादर
तान कर सीना उस चादर में
कहा उसने हंसकर
गहरी नींद सोने के लिए
अब मैं तैयार हूँ
अपने ही देश में गुलामी सहना
जेल और बंद कमरों में सड़ना
इन सारी जंजीरों को तोड़कर
कहा उसने हंसकर
स्वतन्त्र सांस दिलवाने के लिए
अब मैं तैयार हूँ
क्रांति की मशाल जल चुकी है
आज़ादी की लौ भड़क उठी है
फंदे की रस्सी क्या झुलाएगी मुझे
कहा उसने हंसकर
फांसी पर झूलने के लिए मैं स्वयं
अब तत्पर हूँ तैयार हूँ।