— रोशन
बहुत हो गए मंदिर—मस्जिद
जो बने हुए हैं उनमें ही
शीश झुकाओ तो
निर—अक्षरों को शिक्षा देने
अब शिक्षा के मंदिर भी
बनवाओ तो
बहुत हो गए चर्च—गुरूद्वारे
जो हैं उन्हीं में,
भूखों की क्षुब्दा मिटाने को
लंगरों का विस्तार
बढाओ तो
कृष्ण—श्याम की चाह
रखने वाले प्यारो
गौशालाएं अपनाओ तो
रूग्णों की पीड़ा हरने का
कुछ तो कोई यत्न करो
चिकित्सालायों का निर्माण
कराओ तो
जालिम ठंड में ठिठुरते
नंगे तन का कपड़ा
भूखे—बिलखते पेट का निवाला
प्यासे के प्यास की तृप्ति
बन जाओ तो
धर्म—अधर्म के बीच
बहुत उसारी ये नफरत की दीवालें
शांति दूत भी बन जाओ तो
मानवता का पाठ
पढाओ तो
सुप्त हृदय में
प्रेम—प्यार की
तंरग उठाओ तो
अपनी मातृभूमि का
गौरव बढाओ तो