-शिखा शर्मा
सात सुरों का राग सुनाते
कतरा-कतरा बहते जाते
नदी, झील और झरने
मिलकर सब सागर बन जाते
चंचल तितली की अनोखी माया
रंग-बिरंगी मनमोहक काया
फूलों से उसने रंग चुराया
फुदकना उसको भँवरों ने सिखाया
कोयल की मीठी तान सुन
मधुर संगीत की सुरमई धुन
राग में उसके गहरा नशा
संग सुर मिलाकर आए मज़ा
हरी गोद की क्यारी ज्यों
ओढ़े चुनरिया प्यारी वो
फूल-गोटे की बारीक कलाकारी जैसे
सजे कुदरत की बगिया न्यारी वो
पर्वत-पहाड़ ऊंची दहाड़
घने जंगलों में डरावनी चिंघाड़
कुदरत का सौंदर्य निखार
वन्य जीवों का आहार-विहार
पके-पकीले फल रसीले
घुली चाशनी में डूबे-गीले
खट्टे-मीठे अनोखे स्वाद
रचना में इनकी गजब का राज़