-शिखा शर्मा
ज़िन्दगी में एक करिश्मा देखा
जमीं पर ज़िम्मेदारियों का फरिश्ता देखा
डालो उस पर जितना बोझ
कभी मुंह मोड़ते नहीं देखा
जेब होती कभी उसकी खाली तो भी
खाली कभी थाली नहीं होती
भूखे पेट न कभी सोने देता
चैन की नींद कभी सोते नहीं देखा
ख्वाइशों को पूरा करते देखा
फौलादी कन्धों को झुकते देखा
जख्म हों लाख फिर भी
दर्द से कभी कराहते नहीं देखा
परेशानियों का सैलाब सा बहता
मजबूरियों में मौन रहते देखा
दिल में लाख उछलता हो समंदर
आंखों में कभी आंसू छलकते नहीं देखा
है प्यार दिल में बेशुमार
मां की तरह दुलार करते नहीं देखा
देखा सौ बार चिल्लाते हुए
हज़ार बार गुस्सा पीते हुए देखा
हर सुबह भागते हुए देखा
हर शाम भीगते हुए देखा
मैनें हर सांझ सूरज को ढलते देखा
पापा को कभी थकते नहीं देखा