- शिखा शर्मा
उड़ने दो मुझे
दूर छोर तक
पंख फैलाकर
फड़फड़ाने दो मुझे
आकाश की एक नई जमीं पर
दूर तक नंगे पांव
चलने दो
हद से गुजर जाने दो
दबी सी, घुटी ख्वाइशों को
पंख लगाने दो मुझे
पत्थर से पहाड़
बनने दो
जमीं से फलक को
छू लेने दो
बुझे अरमानों को
रोशन करने दो
ख्वाबों की लौ
जगाने दो मुझे
गुलाम सोच को
झटकने दो
स्वतन्त्र होकर
पंछियों के साथ
चहकने दो मुझे
इस जहां से
उस जहां पर
एक नया जहां बनाने दो
मुरझाई सी कली पर
बारिश की बूंदे
बिखरने दो
पत्ता-पत्ता खिलने दो
कली से फूल बनने दो मुझे
अशांत दुनियां के शोर से
दूर हो जाने दो
खामोश जज़्बातों को
जुबां पर आने दो
खुल कर दो घड़ी
ज़ोर से चिल्लाने दो मुझे