फेस2न्यूज/चण्डीगढ़
सेक्टर 50 चंडीगढ़ में बनवासी कल्याण आश्रम पंजाब , चंडीगढ़ की ओर से रविवार को रानी दुर्गावती के जन्म दिवस को समर्पित सेमिनार आयोजित किया गया, जिसमें चंडीगढ़ की महिलाओं को रानी दुर्गावती के संघर्षमय जीवन के बारे में जानकारी देने के लिए उनके जीवन पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई और उनके जीवन के बारे में बताया गया।
इस मौके पर डॉक्टर कुलराज सिंह जी, सह प्रमुख नगरिया आयाम पंजाब ने बताया कि रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर, 1524 को महोबा के चंदेला राजवंश (वर्तमान उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा के पास) में हुआ था, और वह भारत के आत्मनिर्णय का प्रतीक थीं। चंदेला 11वीं सदी में प्रसिद्ध खजुराहो मंदिरों के निर्माण के लिए जाने जाते थे।
श्री कुलराज ने बताया उन्होंने गोंड राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह से विवाह किया और 1550 में अपने पति की मृत्यु के बाद गढ़ा-कटंगा पर बहुत जोश और वीरता से शासन किया। सरकारी दस्तावेजों के अनुसार, रानी और उनके सेनापतियों ने 16 साल तक राज्य के मामलों का प्रबंधन किया।
प्रिंसिपल जे एस जयारा, इंस्टिट्यूट ऑफ ब्लाइंड सेक्टर 26 चंडीगढ़ ने कहा कि गढ़ा-कटंगा की बहादुर रानी, रानी दुर्गावती ने 16वीं सदी के मध्य में मुगल साम्राज्य के विस्तार का विरोध किया। रानी दुर्गावती ने अकबर के कमांडर आसिफ खान और पड़ोसी मालवा के सुल्तान बाज बहादुर से लड़ते हुए मजबूत नेतृत्व का प्रदर्शन किया। आत्मसमर्पण करने के बजाय, रानी दुर्गावती ने अपने प्राणों की आहुति देने का निर्णय लिया। रानी दुर्गावती को एक देशभक्त शासक के रूप में सम्मानित किया जाता है, जो भारत के आत्मनिर्णय का प्रतीक थीं।
प्रिंसिपल जे एस जयारा, इंस्टिट्यूट ऑफ ब्लाइंड सेक्टर 26 चंडीगढ़ ने कहा कि गढ़ा-कटंगा की बहादुर रानी, रानी दुर्गावती ने 16वीं सदी के मध्य में मुगल साम्राज्य के विस्तार का विरोध किया। रानी दुर्गावती ने अकबर के कमांडर आसिफ खान और पड़ोसी मालवा के सुल्तान बाज बहादुर से लड़ते हुए मजबूत नेतृत्व का प्रदर्शन किया। आत्मसमर्पण करने के बजाय, रानी दुर्गावती ने अपने प्राणों की आहुति देने का निर्णय लिया। रानी दुर्गावती को एक देशभक्त शासक के रूप में सम्मानित किया जाता है, जो भारत के आत्मनिर्णय का प्रतीक थीं।
इस मौके पर मौजूद सरगुन अरोड़ा महिला प्रमुख ने बताया कि रानी दुर्गावती एक बहुआयामी व्यक्तित्व थीं। उनमें बहादुरी, सुंदरता और प्रशासनिक कौशल के साथ-साथ एक महान नेता का गुण था। उनके आत्मसम्मान ने उन्हें अपने दुश्मन के सामने आत्मसमर्पण करने के बजाय मौत तक लड़ने के लिए मजबूर किया। उन्होंने अपने पूर्वजों की तरह अपने राज्य में लोगों के पानी की समस्याओं के लिए कई झीलें बनवाईं और अपने लोगों की भलाई के लिए बहुत कुछ किया। वह विद्वानों का सम्मान करती थीं और उन्हें अपनी सरपरस्ती में रखती थीं।
उन्होंने वल्लभ संप्रदाय के विठ्ठलनाथ का स्वागत किया और उनसे दीक्षा ले ली। वह धर्मनिरपेक्ष थीं और उन्होंने कई प्रमुख मुसलमानों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया। जिस स्थान पर उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी, वह हमेशा स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणास्रोत रहा है। वर्ष 1983 में, मध्य प्रदेश सरकार ने उनकी स्मृति में जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय रखा। भारत सरकार ने 24 जून 1988 को बहादुर रानी की शहादत की याद में डाक टिकट जारी कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।