संजय कुमार मिश्रा
चुनावी धांधली के वीडियो ना देना पड़े इसलिए नियम ही बदल दिए । जी हां केंद्र सरकार के कानून एवं न्याय मंत्रालय ने बीते शुक्रवार को चुनाव संचालन नियम 1961 के नियम 93(2)(a) में संशोधन करते हुए एक अधिसूचना जारी की, जिसके अनुसार पूर्व के संशोधित नियम में जो “चुनाव से संबंधित अन्य सभी कागजात” की सार्वजनिक जांच की अनुमति थी. उसे अब संशोधन के बाद बताया गया है कि सार्वजनिक जांच केवल “इन नियमों में निर्दिष्ट अन्य कागजात” तक ही सीमित होगी. यही नहीं इस संशोधन से चुनाव से संबंधित इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और CCTV फुटेज की जांच को प्रभावी रूप से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा.
मतलब आप इसे साधारण शब्दों में ऐसे समझें कि मतदान केंद्र पर वोटिंग का वीडियो हो या मतपेटी के स्टोर रुम का वीडियो, ये कब कहां रुक जाए, बंद हो जाए और मनचाहा खेला हो जाए तो आप संबंधित सीसीटीवी फुटेज नहीं मांग सकते, आपका यह अधिकार प्रतिबंधित कर दिया गया है।
चुनाव संचालन नियम में यह संशोधन पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के उस आदेश को पलटने के लिए किया गया है, जिसमें चुनाव आयोग को 2024 के हरियाणा चुनावों से संबंधित CCTV फुटेज और अन्य दस्तावेजों को सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता महमूद प्रचा को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया था. हाई कोर्ट ने 9 दिसंबर को यह आदेश दिया था कि प्रचा द्वारा आवेदन करने और जरूरी शुल्क जमा करने के बाद, छह हफ्ते के भीतर ये दस्तावेज़ प्रदान किए जाएं।
केंद्र सरकार का अलोकतांत्रिक व्यवस्था एवं अपारदर्शी प्रशाशन की ये ऐसी मिसाल है कि जिसमें कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए किसी भी हद तक जाने की प्रतिबद्धता साफ साफ दिखाई देती है। केंद्र सरकार ने तो दिल्ली की चुनी हुई सरकार के अधिकार बताने वाला सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भी एक अध्यादेश के माध्यम से बदल दिया था। और तो और चुनाव आयुक्त के नियुक्ति पैनल से भी चीफ जस्टिस को आउट कर दिया। मतलब चुनाव आयोग पर केंद्र सरकार का अभी पूरा कब्जा है, क्योंकि सभी नियम को ताक पर रखकर मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार की नियुक्ति केंद्र सरकार ने इसीलिए तो किया था।
केंद्र सरकार का अलोकतांत्रिक व्यवस्था एवं अपारदर्शी प्रशाशन की ये ऐसी मिसाल है कि जिसमें कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए किसी भी हद तक जाने की प्रतिबद्धता साफ साफ दिखाई देती है। केंद्र सरकार ने तो दिल्ली की चुनी हुई सरकार के अधिकार बताने वाला सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भी एक अध्यादेश के माध्यम से बदल दिया था। और तो और चुनाव आयुक्त के नियुक्ति पैनल से भी चीफ जस्टिस को आउट कर दिया। मतलब चुनाव आयोग पर केंद्र सरकार का अभी पूरा कब्जा है, क्योंकि सभी नियम को ताक पर रखकर मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार की नियुक्ति केंद्र सरकार ने इसीलिए तो किया था।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस संशोधन को “मोदी सरकार की चुनाव आयोग की संस्थागत निष्पक्षता को नष्ट करने की साजिश” करार दिया.
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि ये संशोधन चुनाव आयोग की “तेजी से घटती हुई निष्पक्षता” के संबंध में किए गए उनके दावों की पुष्टि करते हैं. उन्होंने ‘एक्स’ पर अपने एक पोस्ट में कहा कि, “चुनाव आयोग पारदर्शिता से इतना डरता क्यों है?” जयराम रमेश ने यह दावा किया कि चुनाव आयोग के इस कदम को कानूनी तौर पर चुनौती दी जाएगी.
लेकिन दूसरी तरफ चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने कहा कि उम्मीदवारों को पहले ही चुनाव से संबंधित सभी दस्तावेजों और कागजात पाने का हक प्राप्त है। अधिकारी ने कहा कि मतदान की गोपनीयता के उल्लंघन और पोलिंग स्टेशन के अंदर CCTV फुटेज के दुरुपयोग के गंभीर मुद्दे को ध्यान में रखते हुए यह संशोधन किया गया है “विशेष रूप से संवेदनशील क्षेत्रों जैसे जम्मू-कश्मीर, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में CCTV फुटेज साझा करने से गंभीर परिणाम हो सकते हैं, मतदाताओं की जान भी जोखिम में पड़ सकती है, अन्यथा सभी चुनावी कागजात एवं दस्तावेज़ सार्वजनिक जांच के लिए उपलब्ध हैं,”