संजय कुमार मिश्रा:
बैंगलोर में 34 साल के होनहार नौजवान सॉफ्टवेयर इंजीनियर के सुसाईड ने भारत के एकतरफा एवं भ्रष्ट सिस्टम की एक बार फिर से पोल खोल कर रख दी है। अतुल ने अपने 24 पन्ने के सुसाईड नोट एवं 80 मिनट के वीडियो में अपनी पत्नी एवं सास इत्यादि के साथ भ्रष्ट न्यायिक व्यवस्था एवं एकतरफा कानून को भी अपनी मौत के लिए जिम्मेवार बताया। अतुल ने अपनी पत्नी की झूठी मुकदमेबाजी, घरेलू कलह और ससुराल पक्ष के उत्पीड़न से परेशान होकर अपनी जान दे दी। उनकी मौत से पहले बनाए गए वीडियो में उन्होंने गंभीर आरोप लगाए हैं। अब पुलिस ने अतुल की पत्नी निकिता सिंघानिया सहित चार लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है।
इससे साबित होता है कि भारत में न्याय पाना इतना महंगा एवं मुश्किल है कि उसके मुकाबले सुसाईड करना ही आसान व एकमात्र रास्ता है। कानूनों में दहेज कानून यानी धारा 498-A (BNS की धारा 85 और 86) सबसे प्रमुख है। इस धारा पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं।
जौनपुर के फैमिली कोर्ट के प्रिंसिपल जज ने भी इस केस को सेटल करने के लिए अपने पेशकार के जरिए पांच लाख रुपए के रिश्वत की मांग के आरोप अतुल द्वारा लगाए गए हैं
इसमें कोई शक नहीं है कि भारत में महिलाओं के साथ अपराध के मामले साल दर साल बढ़ रहे हैं और इसे रोकने के लिए महिला सुरक्षा से जुड़े कई कानून बनाए गए और तो और एक महिला आयोग भी बनाया गया है।
लेकिन हमारे आसपास ऐसे पुरुषों की भी कमी नहीं जो अपनी पत्नी के उत्पीड़न के शिकार हैं, मगर पुरुषों पर हो रहे अत्याचारों की अनदेखी इतनी ज्यादा है कि वह न तो समाज को और न ही कानून को दिखलाई पड़ती है। जिस तरह महिला आयोग ने लाखों महिलाओं को न्याय दिलाने में मदद की है, वहीं क्या पुरुषों के पास भी अपनी बात रखने के लिए कोई मंच नहीं होना चाहिए?
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, देश में पुरुषों की आत्महत्या की दर महिलाओं की तुलना में दो गुने से भी ज्यादा है। इसके पीछे तमाम कारणों में पुरुषों का घरेलू हिंसा का शिकार होना भी बताया जाता है। 2021 में प्रकाशित NCRB के आंकड़ों की ही मानें तो देशभर में 1,64,033 लोगों ने आत्महत्या की। इनमें से 81,063 विवाहित पुरुष और 28,680 विवाहित महिलाएं शामिल हैं। यह भी बताया गया है कि साल 2021 में करीब 33.2 फीसदी पुरुषों ने पारिवारिक समस्याओं के कारण और 4.8 फीसदी ने विवाह संबंधी वजहों से अपनी जान दे दी थी।
बेंगलुरु के AI इंजीनियर अतुल सुभाष की खुदकुशी ने पुरुष आयोग को फिर से चर्चा के केंद्र में ला दिया है। सवाल ये है कि क्या भारत को महिला आयोग की तरह एक राष्ट्रीय पुरुष आयोग की जरूरत है क्या भारत को राष्ट्रीय पुरुष आयोग की ज़रूरत है?
अतुल सुभाष की शादी 2019 में जौनपुर के निकिता सिंघानिया से हुई थी, जिससे उनका एक बच्चा है। शादी के दो साल बाद पत्नी ने दहेज उत्पीड़न, पिता की हत्या और अप्राकृतिक यौन शोषण तक के 9 केस अतुल के खिलाफ दर्ज करा दिए।
अतुल ने आरोप लगाया कि इन मामलों को सेटल करने के लिए पत्नी ने उनसे पहले तो एक करोड़ लेकिन बाद में तीन करोड़ रुपये की डिमांड की थी। जौनपुर के फैमिली कोर्ट के प्रिंसिपल जज ने भी इस केस को सेटल करने के लिए अपने पेशकार के जरिए पांच लाख रुपए के रिश्वत की मांग के आरोप अतुल द्वारा लगाए गए हैं, नहीं देने पर एलुमनी सहित 80 हजार रुपया मासिक गुजारा भत्ता पत्नी को देने का आदेश पारित कर दिया गया था।
सुसाईड के बाद पीड़ित परिवार की तहरीर पर मराठाहल्ली स्टेशन में बीएनएस अधिनियम की धारा 108 और 3(5) के तहत मामला दर्ज किया है और जांच शुरू कर दिया गया है।
इस बीच जौनपुर में रहने वाले निकिता सिंघानिया के परिवार का बयान भी सामने आया है। निकिता की मां ने अपनी बेटी और परिवार पर लगाए गए उत्पीड़न के सभी आरोपों को खारिज किया है। उन्होंने कहा, "ये जो आरोप लगे हैं, सारे निराधार है। मैं सारे सबूत दुनिया के सामने रखूंगी। अतुल सुभाष ने अपना फ्रस्ट्रेशन हम पर निकाला है। मेरी बेटी कभी किसी को आत्महत्या के लिए नहीं बोल सकती।"
निकिता के चाचा सुशील कुमार ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा, "निकिता अभी यहां नहीं है, लेकिन जब वह वापस आएगी, तो वह हर सवाल का जवाब देगी। मुझे मीडिया के माध्यम से पता चला कि अतुल सुभाष की आत्महत्या मामले में एफआईआर में मेरा नाम है। लेकिन मैं वहां (बेंगलुरू में) नहीं था और न ही इस मामले में मेरी कोई भूमिका थी। हमें मामले के बारे में मीडिया से ही पता चला।
अतुल सुभाष सुसाइड: फिर उठी पुरुष आयोग बनाने की मांग, चौंकाने वाले हैं पुरुषों के खिलाफ हिंसा के आंकड़े
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (NFHS-5) के आंकड़ों के मुताबिक, 18 से 49 साल की उम्र की 10 फीसदी महिलाओं ने कभी न कभी अपने पति पर हाथ उठाया है, वो भी तब जब उनके पति ने उनपर कोई हिंसा नहीं की। इसी में 11 फीसदी महिलाएं ऐसी भी थी जिन्होंने माना था कि बीते एक साल में उन्होंने पति के साथ हिंसा की है।
सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन और माई नेशन संस्था के ऑनलाइन शोध की मानें तो 98 प्रतिशत भारतीय पति तीन साल के रिलेशनशिप में कम से कम एक बार घरेलू हिंसा का सामना कर चुके हैं। कई संस्थाओं के सर्वे के मुताबिक ज्यादातर पुरुष सेल्फ रिस्पेक्ट के चलते अपनी पत्नी की शिकायत नहीं कर पाते। अगर कोई हिम्मत कर पुलिस को शिकायत करता भी है, तो अक्सर पुलिस ही उसे धमका कर भगा देती है।
पुरुष आयोग बनाने की मांग:
2018 में ही यूपी में भारतीय जनता पार्टी के कुछ सांसदों ने यह मांग उठाई थी कि राष्ट्रीय महिला आयोग की तर्ज पर राष्ट्रीय पुरुष आयोग जैसी भी एक संवैधानिक संस्था बननी चाहिए। इन सांसदों ने इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा था। पत्र लिखने वाले एक सांसद हरिनारायण राजभर ने उस वक्त यह दावा किया था कि पत्नी प्रताड़ित कई पुरुष जेलों में बंद हैं, लेकिन कानून के एकतरफा रुख और समाज में हंसी के डर से वे खुद के ऊपर होने वाले घरेलू अत्याचारों के खिलाफ आवाज नहीं उठा रहे हैं।
फिर सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका डाली गई थी जिसमें घरेलू हिंसा से पीड़ित विवाहित पुरुषों के आत्महत्या की घटनाओं से निपटने के लिए दिशा निर्देश देने और राष्ट्रीय पुरुष आयोग बनाने की अपील की गई थी। मगर सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में ये कहते हुए सुनवाई से इनकार कर दिया था कि याचिका में एकतरफा तस्वीर पेश की गई है।
पुरुष आयोग बनाने की मांग के समर्थन में जो तर्क दिए जाते हैं उनमें सबसे बड़ा तर्क यह है कि महिलाओं को सुरक्षा देने के जो कानून बने हैं उनके दुरुपयोग से पुरुषों को प्रताड़ित किया जाता रहा है। इन कानूनों में दहेज कानून यानी धारा 498-A (BNS की धारा 85 और 86) सबसे प्रमुख है। इस धारा पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं।
पिछले महीने ही सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न के मामलों में पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ मुकदमा चलाने के खिलाफ अदालतों को आगाह किया। कोर्ट ने घरेलू विवाद में झूठे मुकदमों में फंसाने पर भी चिंता जताई।
इसी को देखते हुए पुरुषों की मदद के लिए एक स्वयंसेवी संस्था ने 2016 में ‘सिफ’ नाम का एक ऐप बनाया था जिसके जरिए ऐसे पुरुष अपनी पीड़ा दर्ज करा सकते थे। ऐसे पुरुषों को यह संस्था कानूनी मदद भी दिलाती थी। लेकिन ये सब नाकाफी हैं, जबतक वर्तमान के एकपक्षीय व्यवस्था में सुधार नहीं किया जाता, न्याय व्यवस्था में सुधार नहीं किया जाता या महिला आयोग के तर्ज पर ही एक पुरुष आयोग भी नहीं बन जाता तबतक इस तरह के सुसाईड होने के मामलों की सम्भावनाएं बनी रहेगी, और ऐसे सुसाईड में कोई कैंडल मार्च देखने को नहीं मिलेगा, जो अक्सर किसी महिला के मौत के बाद देखने को मिलती है। क्या भारत के संविधान में वर्णित समानता का अधिकार यही है, क्या जहां स्त्री एवं पुरुष को समान अधिकार होने की बात बताई जाती है।