हे हंस वाहिनी विद्या दायिनी
तेरे चरणों में है कोटि नमन
आशीष के पुष्प जब—जब बरसे
तब—तब पुलकित होता है ये मन
सेवा कर सकूं मां तेरी
वीणावादिनी ये रहमत कर
रहे तेरी ही सुध—बुध
भूलूं सारी दुनियां भूलूं जन
पुत्र हूं मां वीणापाणि तेरा
रखना सिर पर हाथ
स्वर भी तेरे शब्द भी तेरे
मां शारदे शब्द पथ को संवार
लेखनी में धार दे
चित्त में चेतना को आकार दे
शुद्ध रहे तन और मन
हे हंस वाहिनी विद्या दायिनी
तेरे चरणों में है कोटि नमन
— रोशन