संजय कुमार मिश्रा
22 मई 2024 को राजस्थान हाई कोर्ट के जोधपुर बेंच ने S B. Civil Writ Petition No 8246 / 2024 का निपटारा करते हुए पाली के जिला कलेक्टर को आदेशित किया है कि वो आवेदक द्वारा भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना अधिकतम 3 सप्ताह के भीतर आवेदक को मुहैया कराए।
पाली निवासी ओमाराम ने जिला कलेक्टर से मई 2023 में भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 76 के तहत आवेदन देते हुए कुछ सूचना की मांग की थी जो उसे अबतक मुहैया नहीं कराई गई थी, जिस कारण ये मामला राजस्थान हाई कोर्ट के समक्ष रखा गया था।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने क्रिमीनल पिटीशन संख्या 1194 ऑफ 2008 एवं 2331 ऑफ 2006 (सुहास भन्ड बनाम महाराष्ट्र सरकार) का निपटारा करते हुए दिनांक 18.08.2009 को अपने आदेश के पैरा 10 मे कहा कि कम्पनी के रजिस्ट्रार का ऑफिस एक लोक दफ्तर है एवं वहां के सभी दस्तावेज भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 74 के तहत एक जन दस्तावेज है, कोर्ट ने अपने आदेश के पैरा 11 मे कहा कि कंपनी रजिष्ट्रार एक जन ऑफिस है और वो अपने ऑफिस के दस्तावेज की सत्यपित प्रतिलिपी भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 76 के तहत आमजन को देने के लिये बाध्य है।
आजकल भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 सूचना अधिकार अधिनियम 2005 का एक पर्याय बनता जा रहा है क्योंकि सूचना अधिकार अधिनियम के तहत कई बार वांछित सूचना नहीं मिल पाती है , आरटीआई अपील से भी कोई फायदा नहीं होता है। लेकिन भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 76 में ये प्रावधान है कि आप स्वयं से संबंधित कोई भी सूचना एवं उसकी सत्यापित प्रतिलिपि, फीस का भुगतान करके सीधे उस संबंधित अधिकारी से मांग सकते हैं और अगर आपको उस अधिकारी से वांछित सूचना या प्रतिलिपि फीस देने के बावजूद भी नहीं मिलती है तो आप अपने जिले के उपभोक्ता आयोग में उस अधिकारी की "सेवा में कमी" की शिकायत दे सकते हैं और वांछित सूचना के साथ साथ मानसिक प्रताड़ना एवं मुकदमा खर्च का मुआवजा भी पा सकते हैं।
साक्ष्य अधिनियम के तहत सूचना मुहैया कराने के बारे में बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश बहुत ही साफ एवं स्पष्ट है।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने क्रिमीनल पिटीशन संख्या 1194 ऑफ 2008 एवं 2331 ऑफ 2006 (सुहास भन्ड बनाम महाराष्ट्र सरकार) का निपटारा करते हुए दिनांक 18.08.2009 को अपने आदेश के पैरा 10 मे कहा कि कम्पनी के रजिस्ट्रार का ऑफिस एक लोक दफ्तर है एवं वहां के सभी दस्तावेज भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 74 के तहत एक जन दस्तावेज है, कोर्ट ने अपने आदेश के पैरा 11 मे कहा कि कंपनी रजिष्ट्रार एक जन ऑफिस है और वो अपने ऑफिस के दस्तावेज की सत्यपित प्रतिलिपी भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 76 के तहत आमजन को देने के लिये बाध्य है।
पंजाब के लुधियाना से सूचना अधिकार कार्यकर्ता अजय शर्मा बताते हैं कि, कुछ अधिकारियों ने साक्ष्य अधिनियम के तहत आमजन के द्वारा सूचना मांगे जाने पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि, साक्ष्य अधिनियम के तहत सिर्फ कोर्ट से न्यायिक दस्तावेज या आदेश की प्रतिलिपि ही मांगी जा सकती है कोई अन्य प्रशासनिक दस्तावेज या आदेश की कॉपी कोई भी व्यक्ति नहीं मांग सकता। लेकिन राजस्थान हाई कोर्ट के आज के आदेश से यह और भी साफ हो गया की साक्ष्य अधिनियम के तहत कोई भी व्यक्ति अपने से संबंधित कोई भी सूचना किसी भी अधिकारी से मांग सकता है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत सूचना उपलब्ध कराने से संबंधित सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट के अलावा राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग सहित कई राज्य उपभोक्ता आयोग भी निर्णय दे चुके हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने दिनांक 13.09.2012 को रिट संख्या 210 ऑफ 2012 (नामित शर्मा बनाम भारत सरकार), अपने आदेश के पैरा 24 मे कहा है कि सूचना का अधिकार की झलक भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के धारा 76 मे देखने को मिलती है जिसके तहत जन अधिकारी आमजन के द्वारा मांगी गई सूचना देने के लिये बाध्य है।
हाल में ही राजस्थान राज्य उपभोक्ता आयोग ने माध्यमिक शिक्षा निदेशालय राजस्थान के सहायक निदेशक को कुल 15000 रुपए का जुर्माना लगाया है क्योंकि आवेदक उपभोक्ता द्वारा साक्ष्य अधिनियम के तहत फीस देने के बावजूद भी वांछित सूचना या सत्यापित प्रतिलिपि मुहैया नहीं करवाई गई थी। अपील संख्या 37 ऑफ़ 2023 को निस्तारित करते हुए 22 मार्च 2024 को आयोग ने अपने फैसले में कहा कि, आवेदक ने विपक्षी विभाग से निर्धारित शुल्क का भुगतान करके कुछ सत्यापित प्रतिलिपि चाही जो उसे दो माह के उपरान्त तक भी नहीं दी गई, विपक्षी का यह कृत्य सेवा दोष की श्रेणी में आता है।
राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग नई दिल्ली ने भी पुनरीक्षण याचिका संख्या 4710 ऑफ़ 2010 (चन्द्रसेन बाथम बनाम कलेक्टर ग्वालियर मध्यप्रदेश ) को निस्तारित करते हुए 10 मार्च 2011 को अपने आदेश में कहा की, साक्ष्य अधिनियम के तहत फीस देकर सूचना चाहने वाला आवेदक उपभोक्ता है और कलेक्टर ग्वालियर एक सेवा प्रदाता। मामले के मुताबिक आवेदक चंद्रसेन ने साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 76 के तहत फीस देकर ग्वालियर के कलेक्टर से कुछ सूचना मांगी, नहीं मिलने पर सेवा में कमी की शिकायत ग्वालियर जिला उपभोक्ता आयोग को दिया गया। ग्वालियर जिला उपभोक्ता आयोग ने साक्ष्य अधिनियम के तहत फीस देकर सूचना चाहने वाले आवेदक को उपभोक्ता नहीं माना, और शिकायत खारिज कर दिया। मध्य प्रदेश राज्य उपभोक्ता आयोग ने भी आवेदक की अपील खारिज कर दी और कहा आवेदक उपभोक्ता नहीं है। लेकिन राष्ट्रीय आयोग ने साक्ष्य अधिनियम के तहत फीस देकर सूचना चाहने वाले आवेदक को उपभोक्ता माना और ग्वालियर के कलेक्टर को सेवा प्रदाता। आयोग ने कहा कि इस संबंध में निचले दोनों आयोगों का निर्णय गलत है इसलिए दोनों निर्णयों को खारिज किया जाता है और इस मामले में चुंकी कानूनी पहलू स्पष्ट कर दिया गया है तो इस मामले को नए सिरे से सिर्फ मेरिट पर निर्णय लेने के लिए ग्वालियर जिला आयोग के पास वापस भेजा जाता है। ग्वालियर के कलेक्टर को आदेशित किया जाता है की वो ग्वालियर जिला आयोग की सुनवाई में उपस्थित हों।
राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग नई दिल्ली में एक अन्य पुनरीक्षण याचिका संख्या 151 ऑफ़ 2024 अभी भी लंबित है जिसकी अगली सुनवाई 29 जुलाई 2024 को होनी है, इसमें राष्ट्रीय आयोग ने शाहाबाद कुरुक्षेत्र के थानाध्यक्ष को अंतिम अवसर देते हुए 11 मार्च को अपने आदेश में कहा कि अगर प्रतिवादी 29 जुलाई के अगली सुनवाई में भी उपस्थित नहीं होता है तो मामले को एकतरफा निपटा दिया जाएगा।
ज्ञात हो कि ये मामला भी आवेदक भूषण कुमार द्वारा भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत सूचना के आवेदन से ही संबंधित है जिसमे थानाध्यक्ष के द्वारा सूचना नहीं देने पर "सेवा में कमी" की शिकायत कुरुक्षेत्र जिला उपभोक्ता आयोग को दिया गया था, जिसे जिला आयोग ने एडमिशन स्तर पर ही खारिज कर दिया। हरियाणा राज्य उपभोक्ता आयोग ने भी इसकी अपील संख्या 568 ऑफ 2023 को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि साक्ष्य अधिनियम के तहत सिर्फ कोर्ट से न्यायिक दस्तावेज या आदेश की प्रतिलिपि ही मांगी जा सकती है कोई अन्य प्रशासनिक दस्तावेज या आदेश की कॉपी कोई भी व्यक्ति नहीं मांग सकता और हरियाणा राज्य उपभोक्ता आयोग के इस आदेश के खिलाफ याचिका राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में लंबित है।