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सूचना आयोग की गर्दन उपभोक्ता आयोग के हाथ, यू पी सूचना आयोग को राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग से कारण बताओ नोटिस

November 15, 2024 06:59 PM

संजय कुमार मिश्रा/पंचकुला/चंडीगढ़

राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग नई दिल्ली ने उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग "सेवा में कमी" की एक अपील पर सुनवाई कर रहे थे, जिसके मुताबिक उत्तर प्रदेश सूचना आयोग ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत मांगी गई सत्यापित प्रतिलिपि निर्धारित फीस लेने के बावजूद भी आवेदक को मुहैया नहीं कराई थी।

29 अक्टूबर 2024 को अपील संख्या FA/228/2024 पर सुनवाई करते हुए उपभोक्ता आयोग ने कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के सचिव को 30 मई 2024 को अपील का जवाब देने के लिए निर्देशित किया गया था लेकिन सूचना आयोग ने उपभोक्ता आयोग के उक्त निर्देश का अनुपालन नहीं किया। जिस कारण सूचना आयोग के सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाता है कि वो उपभोक्ता आयोग के निर्देशों के अनुपालन में विफल क्यों रहे ? अब इस मामले पर अगली सुनवाई 31 जनवरी 2025 को होगी।

मामले के मुताबिक प्रयागराज निवासी रवि शंकर ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग को एक आवेदन पत्र वांछित फीस के साथ भेजा और कुछ लोक दस्तावेज की सत्यापित प्रतिलिपि की मांग की। सूचना आयोग ने वांछित दस्तावेज की सत्यापित प्रतिलिपि आवेदक को उपलब्ध नहीं कराई। सूचना आयोग के इस कृत्य को सेवा में कमी बताते हुए आवेदक ने उत्तर प्रदेश राज्य उपभोक्ता आयोग में परिवाद पेश किया जिसमें राज्य सूचना आयुक्त नरेंद्र कुमार श्रीवास्तव एवं सूचना आयोग के सचिव जगदीश प्रसाद को पार्टी बनाते हुए एक करोड़ दो लाख पचास हजार रुपए के मुआवजे की मांग की गई।

उत्तर प्रदेश राज्य उपभोक्ता आयोग के इस फैसले को शिकायतकर्ता रवि शंकर ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में चुनौती दी है जिसपर सुनवाई करते हुए 30 मई 2024 को राष्ट्रिय उपभोक्ता आयोग ने कहा, अधिकारियों को उनके नाम से पार्टी बनाना गलत हो सकता है लेकिन सेवा में कमी की शिकायत को खारिज करना सरासर गलत है इसलिए उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के सचिव को इस अपील का जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया जाए। 

उत्तर प्रदेश राज्य उपभोक्ता आयोग ने इस शिकायत संख्या CC/22/2024 पर सुनवाई की एवं 21 फरवरी 2024 को इस परिवाद को खारिज कर दिया। आयोग के अध्यक्ष अशोक कुमार ने परिवाद खारिज करते हुए दो तर्क दिए पहला, सूचना आयुक्त एवं सूचना आयोग के सचिव को उनके नाम से पार्टी बनाना गलत है, दूसरा भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत सेवा में कमी की शिकायत उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत पोषणीय नहीं है।

उत्तर प्रदेश राज्य उपभोक्ता आयोग के इस फैसले को शिकायतकर्ता रवि शंकर ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में चुनौती दी है जिसपर सुनवाई करते हुए 30 मई 2024 को राष्ट्रिय उपभोक्ता आयोग ने कहा, अधिकारियों को उनके नाम से पार्टी बनाना गलत हो सकता है लेकिन सेवा में कमी की शिकायत को खारिज करना सरासर गलत है इसलिए उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के सचिव को इस अपील का जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया जाए। लेकिन जब नोटिस के बावजूद भी सूचना आयोग के सचिव 29 अक्टूबर 2024 को अपना जवाब दाखिल करने में विफल रहे तो उपभोक्ता आयोग ने सूचना आयोग के सचिव को 31 जनवरी 2025 के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया है।

 
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