भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत प्रस्तुत प्रार्थनापत्र में चाहे गये दस्तावेजात की प्रमाणित प्रतिलिपि उपलब्ध नहीं कराना "सेवा में कमी" है, राजस्थान राज्य उपभोक्ता आयोग के जोधपुर बेंच ने प्रतिवादी को इस सेवा में कमी के लिए 21 हजार रूपये का जुर्माना लगाया है.
संजय कुमार मिश्रा/पंचकुला-चंडीगढ़
राजस्थान राज्य उपभोक्ता आयोग के जोधपुर बैंच ने अपील संख्या - 186/2023 का निपटारा करते हुए पंचायत प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी जवाली, जिला पाली को भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 76 के तहत प्रस्तुत प्रार्थनापत्र में चाहे गये दस्तावेजात की प्रमाणित प्रतिलिपि उपलब्ध नही कराये जाने को "सेवा में कमी" के लिए उत्तरदायी ठहराया।
जस्टिस देवेंद्र कच्छावाहा अध्यक्ष और सदस्य लियाकत अली की खंडपीठ ने शिक्षा अधिकारी को शिकायतकर्ता के द्वारा साक्ष्य अधिनियम के तहत नियमानुसार प्रस्तुत प्रार्थनापत्र में चाहे गये दस्तावेजात की *प्रमाणित नकलें* प्रदान करने का आदेश दिया है, साथ ही अपीलार्थी/परिवादी को मानसिक व शारीरिक वेदना के लिए 10,000 /- रूपये, परिवाद व्यय के लिए 5000/- रूपये एवं अपील व्यय के लिए 6000/- रूपये कुल 21,000/- रूपये का भुगतान 45 दिन के अंदर करने का आदेश दिया है।
यह है पूरा मामला
आवेदक राकेश दवे ने प्रतिवादी को भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत एक आवेदन एवं फीस भेजकर, वेतन भुगतान पंजिका एवं उपस्थिति पंजिका की सत्यापित प्रतिलिपि मांगी। लेकिन प्रतिवादी ने ये दस्तावेज आवेदक को मुहैया नहीं कराया। तत्पश्चात शिकायतकर्ता/परिवादी ने जिला उपभोक्ता आयोग पाली के समक्ष परिवाद पेश कर प्रकट किया कि, अप्रार्थी पंचायत प्रारम्भिक शिक्षा अधिकारी पदेन प्रधानाचार्य रा.उ.मा.वि. पाली ने परिवादी द्वारा भारतीय साक्ष्य अधिनियम *1872* की धारा *76* के तहत चाहे गये दस्तावेजात उपलब्ध नहीं करवाये तथा न ही कोई जवाब भिजवाया ।
परिवादी द्वारा भेजे गये *100* रूपये का भारतीय पोस्टल ऑर्डर भी अप्रार्थी के पास ही जमा है। दस्तावेजात उपलबध नहीं करवाने से परिवादी को मानसिक एवं आर्थिक क्षति हुई। अप्रार्थी के उक्त कृत्य को सेवा में कमी बताते हुए परिवाद में वर्णित मुआवजा दिलाये जाने की प्रार्थना की।
जिला आयोग ने अपीलार्थी / परिवादी के अभिवचनों लिखित / मौखिक बहस के आधार पर निर्णय पारित कर परिवादी का परिवाद ग्रहणार्थ स्तर पर ही अस्वीकार कर दिया। जिला उपभोक्ता आयोग ने अपने निर्णय में कहा कि प्रार्थी का सूचना अधिकार आवेदन अगर निस्तारित नहीं हुआ तो उसे कानूनन प्रथम अपील एवं दूसरी अपील में जाना चाहिए ना कि उपभोक्ता आयोग में आना चाहिए, क्योंकि सूचना अधिकार आवेदन से संबंधित सेवा में कमी का शिकायत निवारण उपभोक्ता आयोग के क्षेत्राधिकार में नहीं है। जिला उपभोक्ता आयोग के इस निर्णय से व्यथित होकर अपीलार्थी द्वारा राज्य आयोग के सम्मुख अपील पेश की गयी।
राज्य आयोग द्वारा विपक्षी को पंजीकृत डाक से नोटिस प्रेषित किया गया प्रत्यर्थी की ओर से दिनांक *02.02.2024, 15.04.2024 एवं 27.06.2024* को प्रतिनिधि अवश्य उपस्थित आए लेकिन तत्पश्चात दिनांक *23.08.2024, 09.10 2024 एवं 22.10.2024* को प्रत्यर्थी की ओर से कोई भी उपस्थित नहीं आने से अपीलार्थी श्री राकेश दवे स्वयं की बहस सुनी गयी ।
सुनवाई के दौरान राज्य आयोग ने पाया कि अपीलाधीन निर्णय में अपीलार्थी/ परिवादी की ओर से भारतीय साक्ष्य अधिनियम में प्रस्तुत प्रार्थनापत्र को गलत रूप से सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत प्रस्तुत प्रार्थनापत्र होना मानते हुए विद्वान जिला आयोग ने तथ्यों व विधि की भूल की है । अतः अपील अपीलार्थी स्वीकार किये जाने योग्य है एवं विद्वान जिला आयोग का अपीलाधीन निर्णय दिनांक 27.06.2023 अपास्त किये जाने योग्य है ।
शिकायतकर्ता ने यह तर्क भी दिया गया कि अपीलार्थी/ परिवादी ने विद्वान जिला आयोग के समक्ष *माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग नई दिल्ली द्वारा पारित न्यायिक दृष्टांत (2008) सीपीजे 427 एन.सी. श्री प्रभाकर व्यांकोबा बनाम अधीक्षक, सिविल कोर्ट निर्णय दिनांक 08. 07.2002 में पारित निर्णय की छायाप्रति प्रस्तुत की* परन्तु उसके संबंध में भी कोई उल्लेख अपीलाधीन निर्णय में नहीं किया गया है और विद्वान जिला आयोग ने अपील को प्रारम्भिक रूप से ग्रहणार्थ अवस्था पर ही खारिज करने में तथ्यों व विधि की भूल की है एवं उक्त न्यायिक दृष्टांत को लागू नहीं किये जाने के संबंध में कोई उल्लेख नहीं किया है।
अतः अपील अपीलार्थी स्वीकार की जाकर विद्वान जिला आयोग का अपीलाधीन निर्णय दिनांक 27.06.2023 अपास्त किया जावे । उपरोक्त न्यायिक दृष्टांत के अलावा *अपीलार्थी/ परिवादी की ओर से एक अन्य न्यायिक दृष्टांत बोम्बे उच्च न्यायालय - क्रिमीनल रिट पिटिशन नंबर 1194/2008 एवं 2331/2006 सुहाश भांड बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य निर्णय दिनांक 18.04.2009* की छायाप्रति भी पेश की गयी ।
सुनवाई के दौरान राज्य आयोग ने पाया कि अपीलाधीन निर्णय में अपीलार्थी/ परिवादी की ओर से भारतीय साक्ष्य अधिनियम में प्रस्तुत प्रार्थनापत्र को गलत रूप से सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत प्रस्तुत प्रार्थनापत्र होना मानते हुए विद्वान जिला आयोग ने तथ्यों व विधि की भूल की है । अतः अपील अपीलार्थी स्वीकार किये जाने योग्य है एवं विद्वान जिला आयोग का अपीलाधीन निर्णय दिनांक 27.06.2023 अपास्त किये जाने योग्य है ।
अतः अपीलार्थी/परिवादी को उसके द्वारा चाहे गये दस्तावेजात एवं नियमानुसार प्रार्थनापत्र प्रस्तुत किये जाने के बावजूद उक्त नकलें उपलबध नहीं कराये जाने के कारण से अपीलार्थी/ परिवादी को मानसिक व शारीरिक वेदना पेटे 10,000 /- रूपये, परिवाद व्यय पेटे 5000/- रूपये एवं अपील व्यय पेटे 6000/- रूपये कुल 21,000/- रूपये भी दिलाये जाना न्यायोचित प्रतीत होता है। इसलिए उपरोक्त आदेश के साथ यह अपील स्वीकार किया जाता है और प्रतिवादी को आदेशित किया जाता है कि वो वांछित प्रतिलिपि के साथ कुल 21000 रुपए का भुगतान वादी को 45 दिन के भीतर करे। समय सीमा के बाद 9 प्रतिशत का ब्याज भी देय होगा।