संजय कुमार मिश्रा
अजमेर जिला उपभोक्ता आयोग ने जवाहरलाल नेहरू अस्पताल अजमेर के प्रांगण में स्थित लाइफलाइन ड्रग स्टोर पर 40 रूपये के इंजेक्शन का बिल नहीं देने पर कुल 7000 रूपये का जुर्माना किया है। आयोग ने शिकायत संख्या 223 ऑफ़ 2022 को निस्तारित करते हुए 20 मार्च 2024 को अपने आदेश में कहा, सेवा देने के पश्चात या वस्तु के बिक्रय के बाद उसका बिल ग्राहकों को दिया जाना चाहिए, ग्राहक द्वारा मांगने पर भी बिल नहीं दिया गया जो की उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 2 (47)VII के तहत अनुचित व्यापार ब्यवहार है और इसके लिए सेवा प्रदाता या विक्रेता दंड के पात्र है।
मामला कुछ इस तरह का है कि अजमेर निवासी तरुण अग्रवाल ने 15 मार्च 2022 को उपरोक्त मेडिकल स्टोर से 2 इंजेक्शन ख़रीदे जिसकी कीमत 40 रूपये का भुगतान किया गया लेकिन जब ग्राहक ने बिल मांगे तो बोला गया की इंजेक्शन का बिल नहीं देते , और प्रेस्क्रिप्शन पर्ची पर ही बिल की कीमत 40 रुपया दर्ज कर दिया बोलै यही बिल हो गया। ग्राहक द्वारा जोर देकर पक्का बिल माँगा गया तो स्टोर संचालक ने कहा बिल नहीं मिलेगा, जो करना है कर लो। निराश होकर तरुण अग्रवाल ने मामले की शिकायत अस्पताल अधीक्षक, मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल, ड्रग नियंत्रक राजस्थान आदि को भेजा।
27 मार्च 2022 को पुनः स्मरण पत्र भेजते हुए तरुण अग्रवाल ने बिल की मांग की लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। थक हारकर इस अनुचित ब्यापार ब्यवहार की शिकायत अजमेर जिला उपभोक्ता आयोग में दिया गया। नोटिस पर उपस्थित होकर सभी प्रतिपक्ष ने अपने जवाब दाखिल किये।
मेडिकल स्टोर संचालक ने कहा उस दिन स्टोर का बिलिंग मशीन खराब था जिस कारण बिल जारी नहीं किया जा सका लेकिन क्रेता को बिल लेने हेतु आगे कभी भी आने को कहा गया था लेकिन वो बिल लेने नहीं आया। इसमें विक्रेता का कोई सेवा दोष नहीं है अतः इस शिकायत को ख़ारिज कर दिया जाए।
ड्रग नियंत्रक ने अपने जवाब में आयोग को बताया की तरुण अग्रवाल के शिकायत पर उक्त मेडिकल स्टोर का निरिक्षण किया गया और पाया गया की स्टोर के पास उपरोक्त इंजेक्शन के खरीद का कोई रिकॉर्ड ही नहीं है यानि ये इंजेक्शन ख़रीदा ही नहीं गया है। इस इंजेक्शन के विक्रय से सम्बंधित कच्चा बिल रसीद तो स्टोर में पाया गया लेकिन पक्का बिल रसीद बुक नहीं पाया गया।
मेडिकल स्टोर संचालक ने कहा उस दिन स्टोर का बिलिंग मशीन खराब था जिस कारण बिल जारी नहीं किया जा सका लेकिन क्रेता को बिल लेने हेतु आगे कभी भी आने को कहा गया था लेकिन वो बिल लेने नहीं आया। इसमें विक्रेता का कोई सेवा दोष नहीं है अतः इस शिकायत को ख़ारिज कर दिया जाए। ड्रग नियंत्रक ने अपने जवाब में आयोग को बताया की तरुण अग्रवाल के शिकायत पर उक्त मेडिकल स्टोर का निरिक्षण किया गया और पाया गया की स्टोर के पास उपरोक्त इंजेक्शन के खरीद का कोई रिकॉर्ड ही नहीं है यानि ये इंजेक्शन ख़रीदा ही नहीं गया है। इस इंजेक्शन के विक्रय से सम्बंधित कच्चा बिल रसीद तो स्टोर में पाया गया लेकिन पक्का बिल रसीद बुक नहीं पाया गया।
अस्पताल अधीक्षक एवं मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल ने कोई जवाब नहीं दिया। तरुण अग्रवाल ने आयोग को बताया की अगर मेडिकल स्टोर बिल देना चाहता था तो 27 मार्च के ईमेल स्मरण पत्र के जवाब में वो बिल की कॉपी मुहैया करा सकते थे लेकिन उसे तो बिल देना ही नहीं था और इस तरह से उपरोक्त जवाब कुछ और नहीं बल्कि झूठ का पुलिंदा मात्र है।
बाद में कोई भी प्रतिपक्षी आयोग के समक्ष बहस के लिए आया ही नहीं तो मामले को एकपक्षीय सुना गया और सभी दस्तावेज के अवलोकन के पश्चात आयोग ने पाया की मेडिकल स्टोर द्वारा ग्राहकों को बिल जारी नहीं करना कानूनन अनुचित ब्यापार व्यवहार है इसके लिए उसे 5000 रूपये का जुर्माना लगाया जाता है एवं परिवाद खर्च एवं मानसिक संताप के लिए 2000 रुपया का अलग से जुर्माना लगाया जाता है।