संजय कुमार मिश्रा:
सुप्रीम कोर्ट ने आज एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसमें नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए राजनीतिक फंडिंग के लिए चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित कर दिया। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने इस योजना को मनमाना करार दिया और राजनीतिक दलों और दानदाताओं के बीच बदले की भावना पैदा करने के इसके प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की। अदालत ने अपने फैसले में कहा, "चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द किया जाना चाहिए। यह नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है।
चुनावी बांड योजना क्या है?
2017 के केंद्रीय बजट में घोषित, चुनावी बांड ब्याज मुक्त वाहक उपकरण हैं जिनका उपयोग राजनीतिक दलों को गुमनाम रूप से धन दान करने के लिए किया जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो कोई भी इनके जरिए राजनीतिक पार्टियों को चंदा दे सकता है।
ऐसे बांड, जो 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के गुणकों में बेचे जाते हैं, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की अधिकृत शाखाओं से खरीदे जा सकते हैं। इस प्रकार, एक दाता को राशि का भुगतान करना पड़ता है- मान लीजिए 10 लाख रुपये - चेक या डिजिटल तंत्र के माध्यम से (नकद की अनुमति नहीं है) अधिकृत एसबीआई शाखा को।
राजनीतिक दल ऐसे बांडों को प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर भुनाने और अपने चुनावी खर्चों को निधि देने का विकल्प चुन सकते हैं। कोई व्यक्ति या कंपनी कितने बांड खरीद सकता है, इसकी कोई सीमा नहीं है। यदि किसी पार्टी ने 15 दिनों के भीतर कोई बांड जमा नहीं कराया है, तो एसबीआई इसे प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा कर देता है।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, "राजनीतिक दलों में वित्तीय योगदान दो पक्षों के लिए किया जाता है- राजनीतिक दल को समर्थन देने के लिए, या योगदान कुछ पाने की भावना से हो सकता है।" फैसले के महत्वपूर्ण पहलू के रूप में मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को चुनावी बॉन्ड जारी करना तुरंत बंद करने का निर्देश दिया। इसके अतिरिक्त, अदालत ने आदेश दिया कि एसबीआई को 2018 में योजना की शुरुआत के बाद से चुनावी बॉन्ड प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों के विवरण का खुलासा करना होगा। इन विवरणों में खरीद की तारीख, खरीदार का नाम, मूल्यवर्ग और चुनाव के माध्यम से योगदान प्राप्त करने वाले दलों का विवरण शामिल है। चुनावी बॉन्ड से जुड़ी ये जानकारी एसबीआई 6 मार्च तक भारत के चुनाव आयोग (ECI) को देगी।
इसके अलावा, एसबीआई को प्रत्येक कैश कराए गए बॉन्ड पर जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया गया है। मुख्य न्यायाधीश ने राजनीतिक फंडिंग प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्व पर जोर दिया। साथ ही अदालत ने 15 दिनों की वैधता अवधि वाले कैश नहीं किये गए चुनावी बॉन्ड को लेकर भी बड़ा आदेश दिया है। आदेश दिया गया कि इन बॉन्डों को वापस किया जाना चाहिए और खरीदारों को वापस कर दिया जाना चाहिए, जो कैश नहीं कराए गए हैं। इस प्रक्रिया में बैंक बिना भुनाए बॉन्ड वापस लेगा और फिर खरीदार को पैसे दिये जाएंगे।