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आयकर विभाग द्वारा कांग्रेस पार्टी के बैंक खाते सीज, महज एक संयोग या दिल्ली का प्रयोग?

February 17, 2024 10:35 AM

चंडीगढ, संजय कुमार मिश्रा:
गुरुवार 15 फरवरी 2024 को सर्वोच्च न्यायालय ने भाजपा प्रायोजित 2018 का चुनावी बांड कानून को अवैध घोषित किया और अगले ही दिन आयकर विभाग ने 2018-19 के एक नकद चुनावी चंदा के केस में प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के सभी बैंक खाते को फ्रीज कर दिया। जानकार जानना चाहते हैं कि 5 साल तक सोइ हुई आयकर विभाग का अभी चुनाव से ठीक पहले जागना और कार्रवाई करना क्या महज एक संयोग है या दिल्ली दरबार का प्रयोग है?
आयकर विभाग ने कांग्रेस पार्टी के जिस खाते को सीज किया उसमे कुल 164 करोड़ रुपया जमा है और विभाग ने पार्टी से 210 करोड़ रूपये का डिमांड किया है। कांग्रेस पार्टी के नेता अजय माकन ने जानकारी देते हुए बताया कि 2024 का चुनाव सर पर है और बैंक खाता फ्रीज हो गया जिस कारण पार्टी चुनाव प्रचार के खर्च, बिजली बिल, एवं अपने स्टाफ आदि के सैलरी भी देने में असमर्थ है। पार्टी नेता कहते है कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस चुनावी बॉन्ड को अवैध घोषित किया उस अवैध चुनावी बॉन्ड का जो अवैध पैसा करीब 6566 करोड़ भाजपा के खाते में है विभाग को उसे फ्रीज करना चाहिए लेकिन भाजपा के खाते को फ्रीज करने के बजाय आयकर विभाग ने कांग्रेस के खाते को फ्रीज कर दिया। जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड को अवैध घोषित करके भाजपा को जो आर्थिक चोट पहुंचाई है उससे भाजपा बिलबिला गई है और 2024 के आम चुनाव में किसी भी प्रकार से विपक्ष को रोकने का प्रयास कर रही है।
ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता पर अपना फ़ैसला सुनाते हुए इसकी बिक्री पर ना सिर्फ रोक लगाईं बल्कि सर्वोच्च अदालत ने इस चुनावी बॉन्ड योजना को ही असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने हलफनामा देते हुए कहा था कि देश की जनता को चुनावी बॉन्ड के बारे में जानने का कोई हक़ नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड को अज्ञात रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों को आर्थिक मदद से उसके बदले में कुछ और प्रबंध करने की व्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है. इलेक्टोरल बॉन्ड कोई इकलौता कदम नहीं था जो सरकार ने उठाया था बल्कि इसका रास्ता साफ़ करने के लिए 2017 के फ़ाइनेन्स एक्ट में कई क़ानूनों में संशोधन किए गए. जिसमे भारतीय रिजर्व बैंक क़ानून, कंपनी एक्ट, इनकम टैक्स एक्ट, फ़ॉरेन कॉन्ट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट और रीप्रेज़ेन्टेशन ऑफ़ पीपल एक्ट भी शामिल हैं, सुप्रीम कोर्ट ने उपरोक्त कानूनों में किये गए सभी संशोधनों को भी रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक को आदेश दिया कि वो 2019 से अबतक के चुनावी बॉन्ड का पूरा ब्यौरा 6 मार्च तक चुनाव आयोग को उपलब्ध कराये जिसमे सभी खरीददार के नाम एवं बांड के मूल्य एवं किस पार्टी को ये बॉन्ड दिया गया शामिल है। फिर चुनाव आयोग इन सभी डाटा को 31 मार्च तक अपने वेबसाइट पर अपलोड करेगा।
जानकार समझाते हैं कि - कंपनियों के लिए पहले चंदे की सीमा तय थी कि वो अपने मुनाफे़ का 7.5 फ़ीसदी हिस्सा ही दान कर सकते हैं, मोदी सरकार ने कानून में संशोधन कर इसे हटा दिया गया जिससे अब वो अपने मुनाफे़ का 100 फ़ीसदी राजनीतिक पार्टी को दान कर सकते थे, यही नहीं नुक़सान में जा रही कंपनियां भी इस बांड के जरिये दान कर सकती थीं, क्यों? अब ये तो स्टेट बैंक का डाटा चुनाव आयोग को मिलने के बाद जब वो वेबसाइट पर आम जनता के लिए उपलब्ध होगा तभी असल खेल समझ में आएगा की किस किस घराने ने बॉन्ड के जरिये किसे कितना चंदा दिया और उसके बदले में उसे कितने की कर्जमाफी या भ्रष्टाचार करने की छूट मिली।

 
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