5 वर्ष पूर्व तत्कालीन हरियाणा कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सैलजा ने 16 बागियों को किया था पार्टी से निष्कासित
फेस2न्यूज/चंडीगढ़
दो सप्ताह बाद 5 अक्टूबर को 15वी हरियाणा विधानसभा आम चुनाव के लिए निर्धारित मतदान में प्रदेश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल- कांग्रेस और भाजपा के प्रदेश की कुल 90 विधानसभा सीटों में से 89-89 पर ही उम्मीदवार हैं.
जहाँ कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश की 57-भिवानी वि.स. सीट से सीपीआई (एम) अर्थात कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से चुनाव लड़ रहे कॉमरेड ओम प्रकाश का समर्थन करते हुए पार्टी उम्मीदवार ही नहीं उतारा है, वहीं 45-सिरसा वि.स. सीट से भाजपा से नामांकन कर चुके पार्टी प्रत्याशी रोहताश जांगड़ा ने 16 सितम्बर अर्थात उम्मीदवारी वापसी के अंतिम दिन अपना नाम वापिस ले लिया हालांकि इसका वास्तविक कारण क्या भाजपा द्वारा इस सीट पर हलोपा से चुनाव लड़ रहे गोपाल कांडा का समर्थन करना है या कुछ और वजह, यह स्पष्ट नहीं हो पाया है.
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट और चुनावी-राजनीतिक विश्लेषक हेमंत कुमार का कहना है कि रोचक बात यह है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारी वापसी के पांच दिन बीत जाने के बाद भी न तो कांग्रेस पार्टी और न ही भाजपा दोनों पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व द्वारा ऐसे पार्टी के बागी नेताओं के विरूद्ध कोई सख्त कार्रवाई जैसे पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से छ: वर्ष के लिए निष्कासित करना नहीं की गई है. इससे ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों राजनीतिक दलों को लगता है कि 8 अक्टूबर को चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद सरकार बनाने के लिए ऐसे निर्दलीय के तौर पर लड़ने वाले और चुनाव जीते बागी नेताओं का समर्थन लेने की आवश्यकता पड़ सकती है.
गौरतलब है कि कांग्रेस एवं भाजपा दोनों राजनीतिक पार्टियों के अनेक नेताओ और कार्यकर्ताओं ने इस बार पार्टी टिकट न मिलने कारण अथवा टिकट कटने के कारण अपनी अपनी पार्टी से बागी होकर निर्दलीय के तौर पर चुनाव के लिए नामांकन भर दिया था जिनमें से कईयों को तो पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा मान-मुनव्वल कर 16 सितम्बर अर्थात उम्मीदवारी वापसी लेने के अंतिम दिन तक उनका नामांकन वापिस लेने के लिए मन लिया गया परन्तु आज भी कांग्रेस के करीब अढाई दर्जन और भाजपा के करीब डेढ़ दर्जन बागी नेता निर्दलीय अथवा किसी अन्य राजनीतिक दल से अपनी मूल पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार विरूद्ध चुनावी मैदान में हैं.
बहरहाल, इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट और चुनावी-राजनीतिक विश्लेषक हेमंत कुमार का कहना है कि रोचक बात यह है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारी वापसी के पांच दिन बीत जाने के बाद भी न तो कांग्रेस पार्टी और न ही भाजपा दोनों पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व द्वारा ऐसे पार्टी के बागी नेताओं के विरूद्ध कोई सख्त कार्रवाई जैसे पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से छ: वर्ष के लिए निष्कासित करना नहीं की गई है. इससे ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों राजनीतिक दलों को लगता है कि 8 अक्टूबर को चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद सरकार बनाने के लिए ऐसे निर्दलीय के तौर पर लड़ने वाले और चुनाव जीते बागी नेताओं का समर्थन लेने की आवश्यकता पड़ सकती है.
यह पूछे जाने पर कि अगर कोई पार्टी नेता या कार्यकर्ता पार्टी टिकट न मिलने कारण या टिकट कटने कारण स्वयं ही पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र देकर पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार के विरूद्ध निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ता है, तो क्या फिर भी ऐसे बागी नेता के विरूद्ध उसकी मूल पार्टी द्वारा कार्रवाई की जा सकती है, हेमंत का कहना है कि चूँकि हर राजनीतिक दल का संगठन और पार्टी संविधान किसी भी व्यक्ति से ऊपर होता है, इसलिए बेशक अगर कोई पार्टी नेता या कार्यकर्ता बेशक पार्टी छोड़कर अपनी पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार विरूद्ध चुनाव लड़ता है, तो उसकी मूल पार्टी को ऐसे बागी नेता को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से छ: वर्ष के लिए निष्काषित कर देना बनता है.
हेमंत ने इस सम्बन्ध में उदाहरण देते हुए बताया कि 5 पूर्व अक्टूबर, 2019 में जब निवर्तमान 14 वीं हरियाणा विधानसभा के आम चुनाव हुए थे, तब कांग्रेस पार्टी के चौधरी निर्मल सिंह, जो प्रदेश सरकार में पूर्व मंत्री और चार बार अम्बाला की तत्कालीन नग्गल वि.स. सीट से विधायक रहे और उनकी सुपुत्री चित्रा सरवारा दोनों को क्रमश: अम्बाला शहर और अम्बाला कैंट विधानसभा सीटों से कांग्रेस पार्टी का टिकट नहीं मिला जिसके बावजूद उन्होंने उन दो सीटों से कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवारों के विरूद्ध निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन भर दिया था जिस कारण मतदान से दस दिन पूर्व कांग्रेस पार्टी की तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष कुमारी शैलजा द्वारा उन दोनों सहित पार्टी के कुल 16 बागी नेताओं को 6 वर्षो से कांग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित कर दिया था. उसके बाद इन दोनों ने पहले हरियाणा डेमोक्रेटिक फ्रंट के नाम से अपनी अलग राजनीतिक पार्टी बना कर चुनाव आयोग से रजिस्टर कराई एवं उसके बाद अप्रैल, 2022 में दोनों आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल हो गये थे. दिसम्बर, 2023 में इन दोनों ने आप पार्टी छोड़ दी.
तत्पश्चात जनवरी,2024 में पिता-पुत्री निर्मल-चित्रा की कांग्रेस पार्टी से निष्कासन के सवा चार वर्ष बाद ही पार्टी में घर-वापसी हो गयी थी. रोचक बात है कि इस बार के हरियाणा विधानसभा चुनाव में निर्मल सिंह को तो अम्बाला शहर सीट से कांग्रेस पार्टी का टिकट मिल गया है एवं वो कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर शहर से चुनाव लड़ रहे हैं परन्तु उनकी सुपुत्री चित्रा सरवारा जिन्हें कांग्रेस टिकट नहीं मिली वह पुन: एक बार बागी होकर अम्बाला कैंट वि.स. सीट से कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार परविंदर सिंह परी के विरूद्ध निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रही हैं.